अमेरिकी-चीन व्यापार युद्ध से आ सकती है वैश्विक विकास दर में गिरावट | 27 Jun 2019

चर्चा में क्यों?

फिच रेटिंग्स के अनुसार, वर्ष 2020 तक अमेरिकी-चीन व्यापार युद्ध से विश्व GDP वृद्धि दर में 0.4 प्रतिशत की कमी हो सकती है और संभवतः वर्ष 2009 के बाद यह सबसे कम वैश्विक GDP वृद्धि दर हो सकती है।

प्रमुख बिंदु

  • फिच रेटिंग्स द्वारा जारी रिपोर्ट के अनुसार, चीन से आयातित 300 बिलियन डॉलर की वस्तुओं पर अमेरिका द्वारा लगाए गए 25% शुल्क (टैरिफ) से वर्ष 2020 में विश्व आर्थिक उत्पादन में 0.4 प्रतिशत अंक की कमी आएगी। वैश्विक GDP की वृद्धि वर्ष 2019 के लिये 2.7% और वर्ष 2020के लिये 2.4% हो जाएगी जबकि हमारे नवीनतम वैश्विक आर्थिक परिदृश्य (Global EConomic) के पूर्वानुमान क्रमशः 2.8% और 2.7% थे।
  • वर्ष 2020 में चीन की विकास दर में 0.6 प्रतिशत और अमेरिकी विकास दर में 0.4 प्रतिशत कमी होने की संभावना है।
  • अमेरिका ने चीन से आयातित 300 बिलियन डॉलर के माल पर 25% आयात शुल्क लगाया है और बदले में चीन ने 20 बिलियन डॉलर के अमेरिकी आयातित माल पर 25% आयात शुल्क लगाया है।
  • फिच की रिपोर्ट के अनुसार, कम निर्यात मांग से प्रमुख निर्यातकों पर नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा और निर्यात क्षेत्र में आय कम हो जाएगी।
  • इन बढ़े आयात शुल्कों का प्रभाव अन्य व्यापारिक भागीदारों को भी प्रभावित करेगा जो कि प्रत्यक्ष रूप से आयात शुल्क से संबंधित भी नहीं है। मौद्रिक नीति की सहज प्रतिक्रिया के बावज़ूद भी वैश्विक विकास में गिरावट आएगी। यह 2009 के बाद से सबसे कमज़ोर वैश्विक विकास दर होगी और वर्ष 2012 की तुलना में थोड़ी खराब होगी, जब यूरोज़ोन संप्रभु ऋण संकट अपने चरम पर था।

फिच रेटिंग:

  • यह न्यूयॉर्क और लंदन स्थित एक अंतर्राष्ट्रीय क्रेडिट रेटिंग एजेंसी है।
  • फिच ने रेटिंग के लिये कुछ पैमाने बनाए हैं जैसे कि कंपनी किस तरह का ऋण रखती है और ब्याज दरों जैसे प्रणालीगत परिवर्तनों के प्रति कितनी संवेदनशील है।

यूरोज़ोन संप्रभु ऋण संकट

(Eurozone sovereign debt crisis)

  • आर्थिक सहयोग और विकास संगठन (Organization for Economic Cooperation and Development- OECD) के अनुसार, वर्ष 2011 में यूरोज़ोन ऋण संकट दुनिया का सबसे बड़ा आर्थिक संकट था।
  • वर्ष 2009 में यह आर्थिक संकट शुरू हुआ था तब ऐसा माना जा रहा था कि ग्रीस दिवालिया हो सकता है।
  • तीन वर्षों में, यह पुर्तगाल, इटली, आयरलैंड और स्पेन तक बढ़ गया।
  • जर्मनी और फ्राँस के नेतृत्व में यूरोपीय संघ ने इन सदस्यों का समर्थन करने के लिये संघर्ष किया। उन्होंने यूरोपीय सेंट्रल बैंक और अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष से सहायता ली।

स्रोत: द हिंदू