यूनेस्को ने पश्चिमी घाट की जैव विविधता को संकट में बताया | 21 May 2018

हाल ही में यूनेस्को के इंटरनेशनल यूनियन फॉर कन्जर्वेशन ऑफ नेचर (IUCN-आईयूसीएन) ने Significant Additional Conservation Measures नामक वर्ल्ड हेरिटेज आउटलुक-2 रिपोर्ट जारी की है, जिसमें पर्यावरण तथा जैव विविधता की दृष्टि से बेहद संवेदनशील पश्चिमी घाट क्षेत्र को लेकर गहरी चिंता जताते हुए इसे वैश्विक मूल्यांकन में दूसरी सबसे ज़्यादा जोखिम वाली श्रेणी में रखा।  असम स्थित मानस वन्यजीव अभयारण्य को भी इसी श्रेणी में रखा गया है।

  • आईयूसीएन ने इस सूची में शामिल 241 स्थानों की स्थिति पर विचार किया था और भारत के उपरोक्त दो क्षेत्रों को उनकी खराब होती जा रही स्थिति के कारण इंगित किया गया है।
  • रिपोर्ट में कहा गया है कि वास्तविकता तो यह है कि आस-पास के क्षेत्रों में जनसंख्या दबाव बेहद अधिक होने के बावजूद पश्चिमी घाट में जैव विविधता काफी अधिक है। यह एक आश्चर्यजनक विरोधाभास है।
  • कई कारकों की वज़ह से इस क्षेत्र के उत्कृष्ट सार्वभौमिक मानकों (Outstanding Universal Value) को गंभीर क्षति पहुँच सकती है और इनसे बचाव के लिये समन्वित संरक्षण की आवश्यकता है।
  • यह रिपोर्ट मध्यम से दीर्घावधि तक वैश्विक मानकों को बनाए रखने या उन्हें बहाल करने के उद्देश्य से जारी की गई है।
  • इस रिपोर्ट में काज़ीरंगा तथा सुंदरबन राष्ट्रीय उद्यान को कुछ चिंताओं के साथ 'बेहतर' श्रेणी में रखा गया है। 
  • 'बेहद चिंताजनक' श्रेणी में भारत का कोई भी धरोहर स्थल नहीं है।

जोखिम के संभावित कारक

  • पशुओं को चराना, तीर्थ पर्यटन और खनन ऐसे प्रमुख जोखिम हैं जिनकी पहचान की गई है। हालाँकि अधिकांश खनन गतिविधियाँ संरक्षित संवेदनशील क्षेत्र से बाहर चलती हैं, लेकिन महाराष्ट्र के सिंधुदुर्ग क्षेत्र में चल रही गतिविधियों पर रिपोर्ट में चिंता जताई गई है।
  • इसी प्रकार कुद्रेमुख राष्ट्रीय उद्यान के बीचो-बीच एक बड़ी लौह अयस्क खदान है, जिसके बारे में कहा जा रहा है कि फिलहाल यहाँ खनन गतिविधियाँ नहीं चल रही हैं, लेकिन यह कभी भी शुरू हो सकती है, जो गंभीर चिंता का विषय हो सकता है। 
  • रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि पश्चिमी घाट के क्षेत्र में लगभग 5 करोड़ लोग निवास करते हैं, जिसके परिणामस्वरूप कई संरक्षित क्षेत्रों में सामान्य की तुलना में अधिक दबाव पड़ता है।
  • इसके अलावा वन कटान, अतिक्रमण और क्षेत्र की स्थिति में बदलाव ने भी पश्चिमी घाट को दुष्प्रभावित किया है।
  • मानस वन्यजीव अभयारण्य के लिये रिपोर्ट में कहा गया है कि यहाँ जोखिम अपेक्षाकृत कम है, जिसका प्रमुख कारण अवैध वन कटान है। क्षेत्र में निगरानी की ठीक-ठाक व्यवस्था है, फिर भी हालिया वर्षों में अवैध शिकार की संख्या में पुनः वृद्धि हुई है। गैंडे के शिकार के हालिया मामले विद्रोही गुटों की गतिविधियों से जुड़े थे।

पश्चिमी घाट के बारे में 

  • पश्चिमी घाट महाराष्ट्र और गुजरात की सीमा पर ताप्ती नदी से शुरू होकर देश के धुर दक्षिणी सिरे, तमिलनाडु के कन्याकुमारी तक फैले हुए हैं। 
  • यूनेस्को विश्व धरोहर समिति ने 1 जुलाई को इन्हें विश्व धरोहर स्थल की सूची में शामिल किया था। 
  • यहाँ के कुल 39 स्थल उस क्षेत्र का हिस्सा हैं जिसे विश्व धरोहर सूची में जगह दी गई है। इसमें केरल में 20 स्थल, कर्नाटक में 10 स्थल, तमिलनाडु में 5 स्थल और महाराष्ट्र में 4 स्थल हैं।  
  • लगभग 1600 किलोमीटर की इस लम्बाई में 6 राज्यों--तमिलनाडु, कर्नाटक, केरल, गोवा, महाराष्ट्र और गुजरात (दोनों वन क्षेत्र का भाग) के तटवर्ती इलाके शामिल हैं। 
  • पश्चिमी घाट का कुल क्षेत्रफल लगभग 1.60 लाख वर्ग किलोमीटर है। 
  • पश्चिमी घाट वर्षा बहुल क्षेत्र है तथा प्रायद्वीपीय भारत की अधिकांश नदियों का उद्गम पश्चिमी घाट से ही होता है। 
  • इनमें से गोदावरी, कृष्णा, कावेरी, काली नदी और पेरियार प्रमुख हैं, जो अंतरराज्यीय महत्त्व की नदियाँ हैं। 
  • इन नदियों के जल का उपयोग सिंचाई और विद्युत उत्पादन के लिये किया जाता है। 

पश्चिमी घाट की समृद्ध जैव विविधता 

  • पश्चिमी घाट की गिनती विश्व की जैव विविधता के उन चार प्रमुख केंद्रों में होती है जिन्हें हॉट स्पॉट के रूप में जाना जाता है। 
  • जैव विविधता वाला हॉट स्पॉट उस जैव भौगालिक क्षेत्र को कहते हैं, जहाँ ऐसे नानाविध जीव बड़ी संख्या में पाए जाते हैं, जो कि अब लुप्तप्राय: होने को हैं। 
  • इस क्षेत्र का लगभग 30 प्रतिशत भाग वनाच्छादित है और इसमें उष्णकटिबंधीय नमी वाले सदाबहार वन और नमी वाले पतझड़ वन पाए जाते हैं। 
  • पश्चिमी घाट के ऊपरी हिस्से में पाया जाने वाला घास का प्राकृतिक मैदान-शोला इस क्षेत्र की बेजोड़ विशेषता है। 
  • इस क्षेत्र में पाई जाने वाली स्थानिक प्रजातियों का प्रतिशत काफी अधिक है। जल-थल दोनों में जीवित रहने वाले देश के सभी उभयचर जीवों का 78 प्रतिशत, 62 प्रतिशत सर्पश्रेणी के जीव, एन्जियोस्पर्म जीवों के 38 प्रतिशत, 53 प्रतिशत मछलियों और स्तनपायी जीवों में से 12 प्रतिशत केवल पश्चिमी घाट में पाए जाते हैं। 

सर्वाधिक पौधे उगाए जाते हैं पश्चिमी घाट में 

पश्चिमी घाट क्षेत्र एक ऐसा क्षेत्र है जहाँ विश्व में सबसे अधिक पौधे उगाए जाते हैं। यहाँ बागानों की बहुतायत है और पारंपरिक रूप से इस क्षेत्र के पहाड़ी भाग में सुपारी, काली मिर्च और इलायची की खेती होती है, जबकि तटीय क्षेत्र में नारियल के साथ-साथ आम और कटहल की फसल ली जाती है। इस क्षेत्र की अन्य महत्त्वपूर्ण फसलों में चाय, कॉफी, रबड़, काजू और टेपिओका शामिल हैं ।

सरकार की कार्ययोजना 

पश्चिमी घाट क्षेत्र की जैव विविधता के संरक्षण के लिये सरकार ने कार्ययोजना तैयार की है, जिसमें उन खतरों और दबावों का उल्लेख किया गया है जो जैव विविधता के संरक्षण की राह में बाधक बनते हैं। देश में जैव विविधता के संरक्षण के लिये किये जाने वाले कार्यों का विवरण भी इस कार्ययोजना में दिया गया है।

आईयूसीएन का परिचय 

  • आईयूसीएन पर्यावरण संरक्षण की दिशा में काम करने वाला विश्व का सबसे पुराना और सबसे बड़ा संगठन है।
  • आईयूसीएन की स्थापना 5 अक्तूबर, 1948 को फ्राँस में हुई थी। इसकी पहली बैठक में दुनिया के 18 देशों के सरकारी प्रतिनिधियों, 7 अंतरराष्ट्रीय संगठनों और पर्यावरण संरक्षण की दिशा में काम करने वाले 107 राष्ट्रीय संगठनों ने भाग लिया था। 
  • इसका मुख्यालय स्विट्ज़रलैंड के ग्लांड शहर में अवस्थित है।
  • इसका मूल लक्ष्य एक ऐसे विश्व का निर्माण करना है, जहाँ मूल्यों और प्रकृति का संरक्षण हो सके। इसी उद्देश्य की प्राप्ति के लिये आईयूसीएन  प्रकृति की अखंडता और विविधता को अक्षुण्ण बनाए रखने के लिये वैश्विक समाज को प्रोत्साहित करता है।
  • साथ ही, यह प्राकृतिक संसाधनों के न्यायसंगत उपयोग और पारिस्थितिकीय संरचना को बेहतर बनाने की दिशा में भी सक्रिय है। रेड लिस्ट इसी प्रक्रिया का हिस्सा है, जिसकी शुरुआत वर्ष 1963 में की गई थी। इसके अतिरिक्त, जैव विविधता, सतत ऊर्जा, हरित अर्थव्यवस्था आदि भी इसके महत्त्वपूर्ण कार्यक्षेत्र हैं।
  • आईयूसीएन हर चौथे वर्ष पृथ्वी पर उपस्थित उन सभी प्रजातियों की सूची प्रकाशित करता है जो संकट में हैं। इस सूची को ‘आईयूसीएन रेड लिस्ट ऑफ थ्रेटेंड स्पीसीज़’ (IUCN Red List of Threatened Species) कहा जाता है। 
  • गौरतलब है कि रेड लिस्ट दुनियाभर में फैले हज़ारों वैज्ञानिकों की रिपोर्ट के आधार पर तैयार की जाती है, इसलिये दुनिया में जैव विविधता पर इसे सबसे प्रामाणिक और विश्वसनीय सूची माना जाता है। 
  • आईयूसीएन  द्वारा जारी की जाने वाली इसी रेड लिस्ट के अंतर्गत भारत में उड़ने वाली गिलहरी, एशियाई सिंह, काले हिरण, गेंडे, गंगा डॉल्फिन, बर्फीले तेंदुए सहित अनेक जीवों को संकटग्रस्त करार दिया गया है।