यूनेस्को की 50 प्रतिष्ठित वस्त्र शिल्पों की सूची | 01 Oct 2022

प्रिलिम्स के लिये:

यूनेस्को, हैंडलूम, रेशम कीट पालन/सेरीकल्चर

मेन्स के लिये:

वृद्धि और विकास, समावेशी विकास

चर्चा में क्यों?

हाल ही में यूनेस्को ने देश के 50 विशिष्ट और प्रतिष्ठित विरासत वस्त्र शिल्पों की सूची जारी की है।

कुछ महत्त्वपूर्ण सूचीबद्ध वस्त्र शिल्प:

  • तमिलनाडु की टोडा कढ़ाई और सुंगुडी
  • हैदराबाद की हिमरू बुनाई
  • ओडिशा के संबलपुर की बंधा टाई और डाई बुनाई
  • गोवा की कुनबी बुनाई
  • गुजरात की मशरू बुनाई और पटोला
  • महाराष्ट्र की हिमरू
  • पश्चिम बंगाल की गरद-कोरियल
  • कर्नाटक की इलकल और लंबाडी या बंजारा कढ़ाई
  • तमिलनाडु की सिकलनायकनपेट कलमकारी
  • हरियाणा की खेस
  • हिमाचल प्रदेश के चंबा के रुमाल
  • लद्दाख के थिग्मा या ऊन की टाई और डाई
  • वाराणसी की अवध जामदानी

यूनेस्को

अमूर्त सांस्कृतिक विरासत:

  • अमूर्त सांस्कृतिक विरासत वे प्रथाएँ, अभिव्यक्तियाँ, ज्ञान और कौशल हैं जिन्हें समुदाय, समूह तथा कभी-कभी व्यक्ति अपनी सांस्कृतिक विरासत के हिस्से के रूप में पहचानते हैं।
    • इसे जीवित सांस्कृतिक विरासत भी कहा जाता है, इसे आमतौर पर निम्नलिखित रूपों में से एक में व्यक्त किया जाता है:
    • मौखिक परंपराएँ
    • कला प्रदर्शन
    • सामाजिक प्रथाएँ
    • अनुष्ठान और उत्सव कार्यक्रम
    • प्रकृति और ब्रह्मांड से संबंधित ज्ञान एवं अभ्यास
    • पारंपरिक शिल्प कौशल
  • मानवता की अमूर्त सांस्कृतिक विरासत की प्रतिष्ठित यूनेस्को प्रतिनिधि सूची में भारत के 14 अमूर्त सांस्कृतिक विरासत शमिल हैं।

यूनेस्को द्वारा मान्यता प्राप्त 14 अमूर्त सांस्कृतिक विरासतें

1.

वैदिक जप की परंपरा, 2008

8.

लद्दाख का बौद्ध जप: हिमालय के लद्दाख क्षेत्र, जम्मू और कश्मीर, भारत में पवित्र बौद्ध ग्रंथों का पाठ, 2012

2.

रामलीला, रामायण का पारंपरिक प्रदर्शन, 2008

9.

मणिपुर का संकीर्तन, अनुष्‍ठान, गायन, ढोलक बजाना और नृत्य करना, 2013

3.

कुटियाट्टम, संस्कृत थिएटर, 2008

10.

जंडियाला गुरु, पंजाब, भारत के ठठेरों के बीच पारंपरिक तौर पर पीतल और तांबे के बर्तन बनाने का शिल्प, 2014

4.

रम्माण, गढ़वाल हिमालय (भारत) के धार्मिक उत्‍सव और परंपरा का मंचन, 2009

11.

योग, 2016

5.

मुदियेट्टू, अनुष्ठान थियेटर और केरल का नृत्य नाटक, 2010

12.

नवरोज़, 2016

6.

कालबेलिया राजस्थान का लोकगीत और नृत्य, 2010

13.

कुंभ मेला, 2017

7.

छऊ नृत्य, 2010

14.

दुर्गा पूजा, 2021

भारत के वस्त्र क्षेत्र की स्थिति:

  • परिचय:
    • वस्त्र एवं परिधान उद्योग एक श्रम-प्रधान क्षेत्र है, जो भारत में 45 मिलियन लोगों को रोज़गार प्रदान करता है और रोज़गार के मामले में कृषि क्षेत्र के बाद दूसरा प्रमुख क्षेत्र है।
    • वस्त्र क्षेत्र भारतीय अर्थव्यवस्था के सबसे पुराने उद्योगों में से एक है और पारंपरिक कौशल, विरासत एवं संस्कृति का निधान और वाहक है।
    • इसे दो खंडों में विभाजित किया जा सकता है:
      • असंगठित क्षेत्र छोटे पैमाने पर है और पारंपरिक उपकरणों एवं विधियों का उपयोग करता है। इसमें हथकरघा, हस्तशिल्प तथा रेशम उत्पादन (रेशम का उत्पादन) शामिल हैं।
      • संगठित क्षेत्र आधुनिक मशीनरी और तकनीकों का उपयोग करता है एवं इसमें कताई, परिधान और वस्त्र शामिल हैं।
  • वस्त्र उद्योग का महत्त्व:
    • यह भारतीय सकल घरेलू उत्पाद (GDP) में 2.3%, औद्योगिक उत्पादन का 7%, भारत की निर्यात आय में 12% और कुल रोज़गार में 21% से अधिक का योगदान देता है।
    • भारत 6% वैश्विक हिस्सेदारी के साथ तकनीकी वस्त्रों (Technical Textile) का छठा (विश्व में कपास और जूट का सबसे बड़ा उत्पादक) बड़ा उत्पादक देश है।
      • तकनीकी वस्त्र कार्यात्मक कपड़े होते हैं जो ऑटोमोबाइल, सिविल इंजीनियरिंग और निर्माण, कृषि, स्वास्थ्य देखभाल, औद्योगिक सुरक्षा, व्यक्तिगत सुरक्षा आदि सहित विभिन्न उद्योगों में अनुप्रयोग होते हैं।
    • भारत विश्व में रेशम का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक देश भी है जिसकी विश्व में हाथ से बुने हुए कपड़े के मामले में 95% हिस्सेदारी है।

प्रमुख पहल:

  • संशोधित प्रौद्योगिकी उन्नयन कोष योजना (Amended Technology Upgradation Fund Scheme- ATUFS): वर्ष 2015 में सरकार ने कपड़ा उद्योग के प्रौद्योगिकी उन्नयन हेतु "संशोधित प्रौद्योगिकी उन्नयन कोष योजना (ATUFS) को मंज़ूरी दी।
  • एकीकृत वस्त्र पार्क योजना (Scheme for Integrated Textile Parks- SITP): यह योजना कपड़ा इकाइयों की स्थापना के लिये विश्व स्तरीय बुनियादी सुविधाओं के निर्माण हेतु सहायता प्रदान करती है।
  • पावर-टेक्स इंडिया: इसमें पावरलूम टेक्सटाइल में नए अनुसंधान और विकास, नए बाज़ार, ब्रांडिंग, सब्सिडी और श्रमिकों हेतु कल्याणकारी योजनाएंँ शामिल हैं।
  • रेशम समग्र योजना: यह योजना घरेलू रेशम की गुणवत्ता और उत्पादकता में सुधार लाने पर ध्यान केंद्रित करती है ताकि आयातित रेशम पर देश की निर्भरता कम हो सके।
  • जूट आईकेयर: वर्ष 2015 में शुरू की गई इस पायलट परियोजना का उद्देश्य जूट की खेती करने वालों को रियायती दरों पर प्रमाणित बीज प्रदान करना और सीमित पानी परिस्थितियों में कई नई विकसित रेटिंग प्रौद्योगिकियों को लोकप्रिय बनाने के मार्ग में आने वाली कठिनाइयों को दूर करना है।
  • राष्ट्रीय तकनीकी वस्त्र मिशन: इसका उद्देश्य देश को तकनीकी वस्त्रों के क्षेत्र में वैश्विक नेता के रूप में स्थान प्रदान करना और घरेलू बाज़ार में तकनीकी वस्त्रों के उपयोग को बढ़ाना है। इसका लक्ष्य वर्ष 2024 तक घरेलू बाज़ार का आकार 40 बिलियन अमेरिकी डॉलर से 50 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक बढ़ाना है।

आगे की राह

  • सदियों से, भारतीय कपड़ा शिल्प ने अपनी सुंदरता से विश्व में प्रमुख स्थान बनाया है।
  • औद्योगिक स्तर पर  बड़े पैमाने पर उत्पादन और नए देशों से प्रतिस्पर्द्धा के दबाव के बावजूद, यह आवश्यक है कि इन प्रतिष्ठित विरासत शिल्पों पर ध्यान देकर इन्हे प्रोत्साहन दिया जाए।
  • वस्त्र क्षेत्र में काफी संभावनाएँ हैं और इसमें नवाचारों, नवीनतम प्रौद्योगिकी एवं सुविधाओं का उपयोग किया जाना चाहिये।

स्रोत:  द हिंदू