यातना के खिलाफ यू.एन. कन्वेंशन | 30 Nov 2017

UN Convention against Tortureचर्चा में क्यों ?
हाल ही में अत्याचार और हिरासत में हिंसा को रोकने के लिये एक सांविधिक रूपरेखा तैयार करने की मांग करने वाली जनहित याचिका के जवाब में सर्वोच्च न्यायालय ने स्पष्ट किया कि वह केंद्र सरकार को अत्याचार के खिलाफ यू.एन. कन्वेंशन को मंजू़री देने या एक अत्याचार विरोधी कानून बनाने के लिये मबूर नहीं कर सकती।

अत्याचार के खिलाफ संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन

  • ध्यातव्य है कि वर्ष 1997 में भारत ने यातना के खिलाफ यू.एन. कन्वेंशन पर हस्ताक्षर किये थे। हालाँकि, अभी तक इसकी पुष्टि नहीं की गई है। 
  • इस कन्वेंशन के अंतर्गत यातना को एक दण्डित अपराध के रूप में परिभाषित किया गया है। 
  • यह कन्वेंशन राज्यों को अपने क्षेत्राधिकार के अंदर किसी भी क्षेत्र में यातना को रोकने के लिये प्रभावी उपाय करने की आवश्यकता पर बल देता है, साथ ही यह ऐसे लोगों को जिनके संबंध में यह विश्वास है कि जहाँ भी जाएंगे ऐसी ही समस्या उत्पन्न करेंगे, को किसी भी देश में परिवहन के लिये प्रतिबंधित भी करता है।

इस संबंध में भारतीय प्रयास

  • Prevention of Torture Billभारत में इस संबंध में एक विधेयक (Prevention of Torture Bill) भी प्रस्तावित किया गया, लेकिन  6 मई, 2010 को लोकसभा द्वारा पारित होने के 6 साल बाद भी इस विधेयक के संबंध में कोई कार्रवाही नहीं की गई। 

यातना निवारण विधेयक (Prevention of Torture Bill), 2010

  • यातना निवारण विधेयक के अंतर्गत यातना को एक दंडनीय अपराध माना गया है। इस विधेयक के उद्देश्यों और कारणों के विवरण में यह स्पष्ट किया गया है कि यह विधेयक वर्ष 1975 के अत्याचार के खिलाफ यू.एन. कन्वेंशन की पुष्टि के संदर्भ में प्रस्तुत किया गया। 

विधेयक की मुख्य विशेषताएँ

  • यह विधेयक सरकारी अधिकारियों द्वारा किये गए अत्याचार के लिये सज़ा की व्यवस्था करता है।
  • विधेयक के अंतर्गत यातना को "गंभीर चोट" या जीवन, अंग और स्वास्थ्य के खतरे के रूप में परिभाषित किया गया है।
  • यातना के संदर्भ में छह महीने के भीतर शिकायत दर्ज़ कराई जानी चाहिये। न्यायालय द्वारा किसी भी शिकायत के संबंध में कार्यवाही करने से पहले उपयुक्त सरकार की मंज़ूरी लेना आवश्यक होगा।

आगे की राह

  • यातना के मुद्दे को अनुच्छेद 21 (जीवन और गरिमा का मौलिक अधिकार) और अंतरराष्ट्रीय ख्याति दोनों को ध्यान में रखते हुए सरकार को “यातना” की स्पष्ट परिभाषा स्पष्ट करनी चाहिये। 
  • इसके अतिरिक्त राज्य के अधिकारियों द्वारा यातना को "मानव गिरावट" का एक उपकरण मानते हुए के इस संबंध में सज़ा देने के लिये एक एकल एवं व्यापक कानून को लागू करने पर विचार करना चाहिये, ताकि इसके विषय में किसी भी तरह के संदेह अथवा दुविधा की स्थिति न बने।