उष्णकटिबंधीय ओजोन छिद्र | 16 Jul 2022

प्रिलिम्स के लिये:

ओज़ोन परत, वायुमंडल की परतें, ओज़ोन परत का क्षरण, ग्रीनहाउस गैसें, अच्छा ओज़ोन, खराब ओज़ोन, क्षरण से निपटने हेतु पहल

मेन्स के लिये:

वायुमंडल के मूल तत्त्व, ओज़ोन परत के क्षय के पीछे का विज्ञान, ओज़ोन परत के क्षरण के प्रभाव, संबंधित पहल

चर्चा में क्यों?

हाल के एक अध्ययन के अनुसार, उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में 30 डिग्री दक्षिणी अक्षांश  से 30 डिग्री उत्तरी  अक्षांश पर एक नए ओज़ोन छिद्र का पता चला है।

अध्ययन से ज्ञात तथ्य:

  • उष्णकटिबंधीय ओज़ोन छिद्र अंटार्कटिक से लगभग सात गुना बड़ा है।
    • उष्णकटिबंधीय ओज़ोन छिद्र सभी मौसमों में दिखाई देता है, जबकि अंटार्कटिक पर बना ओज़ोन छिद्र केवल वसंत ऋतु में ही दिखाई देता है।
  • उष्णकटिबंधीय ओज़ोन छिद्र, जो पृथ्वी की सतह का 50% हिस्से का निर्माण करता है, इससे जुड़े जोखिमों के कारण वैश्विक चिंता का कारण बन सकता है।
    • इससे उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में त्वचा कैंसर, मोतियाबिंद और स्वास्थ्य पारिस्थितिकी तंत्र पर अन्य नकारात्मक प्रभाव पड़ने की संभावना है।

ओज़ोन परत

  • परिचय:
    • यह ऑक्सीजन का एक विशेष रूप है जिसका रासायनिक सूत्र O3 है। 
      • हम श्वास के लिये जिस ऑक्सीजन को ग्रहण करते हैं और जो पृथ्वी पर जीवन के लिये बहुत महत्त्वपूर्ण है, वह O2 है।
    • अधिकांश ओज़ोन पृथ्वी की सतह से 10 से 40 किमी. के बीच वायुमंडल में उच्च स्तर पर रहती है। इस क्षेत्र को समताप मंडल (Stratosphere) कहा जाता है और वायुमंडल में पाई जाने वाली समग्र ओज़ोन का लगभग 90% हिस्सा यहाँ पाया जाता है।
  • वर्गीकरण:
    • गुड ओज़ोन:
      • ओज़ोन प्राकृतिक रूप से पृथ्वी के ऊपरी वायुमंडल (समताप मंडल) में होती है जहाँ यह एक सुरक्षात्मक परत बनाती है। यह परत हमें सूर्य की हानिकारक पराबैंगनी किरणों से बचाती है।
      • मानव निर्मित रसायनों जिन्हें ओज़ोन क्षयकारी पदार्थं (ODS) कहा जाता है, के कारण यह ओज़ोन धीरे-धीरे नष्ट हो रही है। ओज़ोन क्षयकारी पदार्थों में क्लोरोफ्लोरोकार्बन (CFC), हाइड्रोक्लोरोफ्लोरोकार्बन (HCFC), हैलोन, मिथाइल ब्रोमाइड, कार्बन टेट्राक्लोराइड और मिथाइल क्लोरोफॉर्म शामिल हैं।
    • बैड ओज़ोन:
      • ज़मीनी स्तर के पास पृथ्वी के निचले वायुमंडल (क्षोभमंडल) में ओज़ोन का निर्माण तब होता है जब कारों, बिजली संयंत्रों, औद्योगिक बॉयलरों, रिफाइनरियों, रासायनिक संयंत्रों और अन्य स्रोतों द्वारा उत्सर्जित प्रदूषक सूर्य के प्रकाश की उपस्थिति में रासायनिक रूप से प्रतिक्रिया करते हैं।
      • सतही स्तर का ओज़ोन एक हानिकारक वायु प्रदूषक है।

Ozone

ओज़ोन परत का क्षरण:

  • परिचय:
    • ओज़ोन परत का क्षरण प्राकृतिक प्रतिक्रियाओं से परे समताप मंडल की ओज़ोन परत के रासायनिक विनाश को संदर्भित करता है।
    • स्ट्रैटोस्फेरिक ओज़ोन को प्राकृतिक चक्रों के माध्यम से लगातार बनाया और नष्ट किया जा रहा है।
      • विभिन्न ओज़ोन क्षयकारी पदार्थ (ODS) हालाँकि विनाश प्रक्रिया को तेज़ करते हैं, जिसके परिणामस्वरूप सामान्य ओज़ोन स्तर में कमी आती है।
      • ODS में क्लोरोफ्लोरोकार्बन (CFC), ब्रोमीन युक्त हैलोन और मिथाइल ब्रोमाइड, HCFC, कार्बन टेट्राक्लोराइड (CCl4) तथा मिथाइल क्लोरोफॉर्म शामिल हैं।
      • इन पदार्थों का पहले उपयोग किया जाता था और कभी-कभी अब भी शीतलक, फोमिंग एजेंट, अग्निशामक, सॉल्वैंट्स, कीटनाशकों एवं एरोसोल प्रणोदक में उपयोग किया जाता है।
        • एक बार हवा में छोड़े जाने के बाद इन ओज़ोन-क्षयकारी पधार्थों का बहुत धीरे-धीरे क्षय होता है।
        • वास्तव में जब तक वे समताप मंडल तक नहीं पहुँच जाते, तब तक क्षोभमंडल से गुज़रते हुए वर्षों तक बरकरार रह सकते हैं।
        • वहाँ वे सूर्य की UV-किरणों की तीव्रता से टूट जाते हैं और क्लोरीन एवं ब्रोमीन अणु छोड़ते हैं, जो समताप मंडल के ओज़ोन को नष्ट कर देते हैं।
  • क्षरण का प्रभाव:
    • मानव स्वास्थ्य पर:
      • यह UV किरण की मात्रा को बढ़ाता है जो पृथ्वी की सतह तक पहुँचती है।
        • UV गैर-मेलेनोमा त्वचा कैंसर का कारण बनता है और घातक मेलेनोमा विकास में प्रमुख भूमिका निभाता है।
        • इसके अलावा UV को मोतियाबिंद के विकास से जोड़ा गया है, जो आँखों के लेंस को धुँधला करता है।
    • पौधों पर:
      • UV विकिरण पौधों की भौतिक और विकासात्मक प्रक्रियाओं को प्रभावित करता है। इन प्रभावों को कम करने या सुधारने के तंत्र के बावजूद पौधों की वृद्धि सीधे UV विकिरण से प्रभावित हो सकती है।
      • UV के कारण अप्रत्यक्ष परिवर्तन (जैसे पौधे के रूप में परिवर्तन, पौधे के भीतर पोषक तत्त्व कैसे वितरित किये जाते हैं, विकास के चरणों का समय और द्वितीयक चयापचय) UV के हानिकारक प्रभावों की तुलना में समान रूप से या कभी-कभी अधिक महत्त्वपूर्ण हो सकते हैं।
    • समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र पर:
      • फाइटोप्लांकटन जलीय खाद्य जाल शृंखला का निर्माण करते हैं। फाइटोप्लांकटन उत्पादकता यूफोटिक ज़ोन तक सीमित है, जल के ऊपरी सतह जिसमें शुद्ध उत्पादकता के लिये पर्याप्त धूप उपलब्ध होती है।
        • सौर UV विकिरण के संपर्क से फाइटोप्लांकटन में अभिविन्यास और गतिशीलता दोनों को प्रभावित करता है, जिसके परिणामस्वरूप इन जीवों के जीवित रहने की दर कम हो गई है।
    • जैव रासायनिक चक्र पर:
      • UV विकिरण में वृद्धि स्थलीय और जलीय जैव-भू-रासायनिक चक्रों को प्रभावित कर सकती है, इस प्रकार ग्रीनहाउस तथा रासायनिक रूप से महत्त्वपूर्ण ट्रेस गैसों (जैसे, कार्बन डाइऑक्साइड, कार्बन मोनोऑक्साइड, कार्बोनिल सल्फाइड, ओज़ोन और संभवतः अन्य गैसों) में परिवर्तन कर सकती है।
    • पदार्थों पर:
      • सिंथेटिक पॉलिमर, प्राकृतिक रूप से पाए जाने वाले बायोपॉलिमर, साथ ही व्यावसायिक हित की कुछ अन्य पदार्थ UV विकिरण से प्रतिकूल रूप से प्रभावित होती हैं।
        • UV स्तरों में वृद्धि उनके टूटने में तेज़ी लाएगी, जिससे उनकी समय अवधि सीमित हो जाएगी जिसके लिये वे उपयोगी हैं।

ओजोन परत संरक्षण हेतु शुरू की गई पहल:

  • वियना कन्वेंशन:
    • ओज़ोन परत के संरक्षण के लिये वर्ष 1985 में वियना कन्वेंशन एक अंतर्राष्ट्रीय समझौता था जिसमें संयुक्त राष्ट्र के सदस्यों ने समताप मंडल की ओज़ोन परत में हो रहे क्षरण को रोकने के लिये मौलिक महत्त्व को मान्यता दी थी।
    • भारत 18 मार्च, 1991 को ओज़ोन परत के संरक्षण के लिये वियना कन्वेंशन का एक पक्षकार बना।
  • मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल:
    • ओज़ोन परत को नुकसान पहुँचाने वाले पदार्थों पर वर्ष 1987 मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल में तथा इसके सफल संशोधनों को बाद में मानवजनित (ODS) और कुछ हाइड्रोफ्लोरोकार्बन (HFCs) की खपत एवं उत्पादन को नियंत्रित करने के लिये बातचीत की गई थी।
    • भारत 19 जून, 1992 को ओज़ोन परत को नुकसान पहुँचाने वाले पदार्थों पर मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल का पक्षकार बना।
  • किगाली संशोधन:
    • मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल में किगाली संशोधन, 2016 को अपनाने से कुछ HFCs के उत्पादन और खपत में कमी आएगी तथा अनुमानित वैश्विक वृद्धि एवं संबंधित जलवायु परिवर्तन से बचा जा सकेगा।
  • यूरोपीय संघ विनियमन:
    • ओज़ोन-क्षयकारी पदार्थों पर यूरोपीय संघ का कानून विश्व में सबसे सख्त और सबसे उन्नत कानूनों में से एक है। नियमों की एक शृंखला के माध्यम से यूरोपीय संघ ने न केवल मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल को लागू किया है, बल्कि आवश्यकता से अधिक खतरनाक पदार्थों को तेज़ी से नष्ट कर दिया है।
    • यूरोपीय संघ ओज़ोन विनियमन ओज़ोन- अवक्षय पदार्थों के सभी निर्यात और आयात हेतु लाइसेंसिंग आवश्यकताओं को निर्धारित करता है तथा न केवल मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल (90 से अधिक रसायनों) द्वारा कवर किये गए पदार्थों बल्कि कुछ ऐसे पदार्थ जो कवर नहीं किये गए हैं (पाँच अतिरिक्त रसायन जिन्हें 'नए पदार्थ' कहा जाता है), को भी नियंत्रित व मॉनिटर करता है।
  • गैर-ओडीएस विकल्पों के रूप में हाइड्रोकार्बन के सुरक्षित उपयोग हेतु भारत के नियम:
    • आइसोब्यूटेन और साइक्लोपेंटेन सहित हाइड्रोकार्बन एरोसोल, फोम-ब्लोइंग तथा प्रशीतन (Refrigeration) क्षेत्रों में उपयोग के लिये गैर-ओडीएस विकल्पों के रूप में उपलब्ध हैं।
    • हाइड्रोकार्बन का सुरक्षित उपयोग भारत में पेट्रोलियम कानूनों द्वारा विनियमित किया जाता है।
      • पेट्रोलियम अधिनियम, 1934 और पेट्रोलियम नियम, 1976 विभिन्न प्रकार के पेट्रोलियम उत्पादों के संचालन से संबंधित हैं।
      • यह हाइड्रोकार्बन के प्रबंधन हेतु लाइसेंसिंग आवश्यकताओं को भी निर्दिष्ट करता है।
      • गैस सिलेंडर नियम, 1981, सिलेंडर भरने, रखने, आयात और परिवहन को संबोधित करता है।

यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा विगत वर्षों के प्रश्न (PYQs)

प्रश्न. निम्नलिखित में से कौन-सा एक, ओजोन का अवक्षय करने वाले पदार्थों के प्रयोग पर नियंत्रण करने और उन्हें चरणबद्ध रूप से प्रयोग से बाहर करने (फेजिंग आउट) के मुद्दे से संबंद्ध है? (2015)

(a) ब्रेटन वुड्स सम्मेलन
(b) मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल
(c) क्योटो प्रोटोकॉल
(d) नागोया प्रोटोकॉल

उत्तर: (b)

  • ब्रेटन वुड्स सम्मेलन को आधिकारिक तौर पर संयुक्त राष्ट्र मौद्रिक और वित्तीय सम्मेलन (United Nations Monetary and Financial Conference) के रूप में जाना जाता है। वर्ष 1944 तक 44 देशों के प्रतिनिधि इस सम्मलेन में शामिल हुए थे। इसका तात्कालिक उद्देश्य द्वितीय विश्वयुद्ध एवं विश्वव्यापी संकट से जूझ रहे देशों की मदद करना था।
  • सम्मेलन की दो प्रमुख उपलब्धियाँ अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) और अंतर्राष्ट्रीय पुनर्निर्माण एवं विकास बैंक (IBRD) की स्थापना थीं।
  • मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल ओज़ोन को कम करने वाले पदार्थों के उपयोग को समाप्त करके पृथ्वी की ओज़ोन परत की रक्षा के लिये एक अंतर्राष्ट्रीय पर्यावरण समझौता है। 15 सितंबर, 1987 को अपनाया गया यह प्रोटोकॉल आज तक की एकमात्र संयुक्त राष्ट्र संधि है जिसे पृथ्वी पर हर देश द्वारा संयुक्त राष्ट्र के सभी 197 सदस्य देशों द्वारा अनुमोदित किया गया है।
  • क्योटो प्रोटोकॉल UNFCCC से जुड़ा एक अंतर्राष्ट्रीय समझौता है, जो अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर बाध्यकारी GHG (ग्रीनहाउस गैसों) उत्सर्जन में कमी के लक्ष्य निर्धारित करके पार्टियों के लिये प्रतिबद्धता सुनिश्चित करता है।
    • क्योटो प्रोटोकॉल 11 दिसंबर, 1997 को क्योटो, जापान में अपनाया गया और 16 फरवरी, 2005 से प्रभाव में आया।
    • प्रोटोकॉल के कार्यान्वयन के लिये विस्तृत नियमों को 2001 में माराकेश (Marrakesh), मोरक्को में CoP7 के रूप में अपनाया गया था और इसे माराकेश समझौते के रूप में संदर्भित किया गया था।
    • भारत ने क्योटो प्रोटोकॉल की दूसरी प्रतिबद्धता अवधि (2008-2012) की पुष्टि की है, जो देशों को ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन को रोकने के लिये प्रतिबद्ध करता है और जलवायु कार्रवाई पर अपने रुख की पुष्टि करता है।
  • आनुवंशिक संसाधनों तक पहुँच पर नागोया प्रोटोकॉल और उनके उपयोग से उत्पन्न होने वाले लाभों का उचित एवं न्यायसंगत साझाकरण जैविक विविधता पर कन्वेंशन के तीन उद्देश्यों में से एक के प्रभावी कार्यान्वयन हेतु एक पारदर्शी कानूनी ढाँचा प्रदान करता है। साथ ही जैविक विविधता के सतत् उपयोग को बढ़ावा देने के लिये आनुवंशिक संसाधनों के उपयोग से होने वाले लाभों के उचित तथा न्यायसंगत बँटवारे का प्रावधान करता है। भारत ने 2011 में इस प्रोटोकॉल पर हस्ताक्षर किये।
  • अतः विकल्प (b) सही उत्तर है।

स्रोत: डाउन टू अर्थ