ट्रांस-अटलांटिक गठबंधन | 22 Feb 2021

चर्चा में क्यों?

अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने हाल ही में ‘म्यूनिख सुरक्षा सम्मेलन’ के दौरान ‘ट्रांस-अटलांटिक गठबंधन’ की वापसी की घोषणा करते हुए विश्व भर में लोकतंत्र की रक्षा की आवश्यकता पर ज़ोर दिया।
राष्ट्रपति जो बाइडेन ने संयुक्त राज्य अमेरिका और अन्य यूरोपीय सहयोगियों के बीच मौजूदा तनावपूर्ण संबंधों को सुधारने की इच्छा व्यक्त की।

  • ‘म्यूनिख सुरक्षा सम्मेलन’ अंतर्राष्ट्रीय सुरक्षा नीति पर आयोजित होने वाला एक वार्षिक सम्मेलन है, जिसका आयोजन वर्ष 1963 से जर्मनी के म्यूनिख शहर में किया जा रहा है।

प्रमुख बिंदु

  • परिचय
    • ‘ट्रांस-अटलांटिक गठबंधन’ को द्वितीय विश्व युद्ध (WWII) के बाद से विश्व व्यवस्था की आधारशिला माना जाता रहा है।
      • यह पश्चिमी विश्व की एक वास्तविक अभिव्यक्ति है, जो कि अटलांटिक के दोनों ओर स्थित देशों की एकजुटता को प्रदर्शित करता है।
    • ‘ट्रांस-अटलांटिक गठबंधन’ की नींव पर ही अमेरिका और यूरोप की सामूहिक सुरक्षा और साझा समृद्धि का निर्माण किया गया है।
      • हालाँकि दुनिया की दो सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं (अमेरिका और यूरोप) के बीच बीते कुछ समय से तनावपूर्ण स्थिति देखी जा रही थी।
  • ट्रांस-अटलांटिक व्यापार और निवेश भागीदारी (T-TIP)
    • यह अमेरिका और यूरोपीय संघ (EU) के बीच एक महत्त्वाकांक्षी एवं व्यापक व्यापार और निवेश समझौता है।
    • यह स्वास्थ्य और सुरक्षा के उच्च स्तर को बनाए रखते हुए व्यापार एवं निवेश विनियमन में अधिक अनुकूलता और पारदर्शिता प्रदान करने के उद्देश्य से किया गया एक अत्याधुनिक समझौता है।
  • तनावपूर्ण संबंधों का कारण
    • अमेरिका और यूरोप के मध्य तनावपूर्ण संबंधों का प्राथमिक कारण पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की विदेश नीति में ‘अमेरिका फर्स्ट’ के दृष्टिकोण को माना जा सकता है।
    • पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति ने न केवल उत्तरी अटलांटिक संधि संगठन (NATO) की आलोचना की, जिसे कि ट्रांस-अटलांटिक गठबंधन का आधार माना जाता है, बल्कि उन लगभग सभी बहुराष्ट्रीय समझौतों जैसे- ईरान परमाणु समझौता और पेरिस जलवायु समझौता आदि से भी स्वयं को अलग कर लिया, जिन्हें कि यूरोपीय संघ का समर्थन प्राप्त था।
    • हालाँकि अमेरिका और यूरोपीय संघ चीन के कारण उनके हितों पर उत्पन्न खतरों की वजह से साथ आए हैं, खासकर आर्थिक और व्यापार के मोर्चे पर।
  • हालिया घोषणा का महत्त्व
    • इससे वैश्विक स्तर पर बहुपक्षवाद को बढ़ावा मिलेगा।
    • इस गठबंधन की वापसी यूरोपीय संघ-अमेरिका कार्बन सीमा समायोजन तंत्र के विकास की दिशा में महत्त्वपूर्ण हो सकती है, जो कि भविष्य में जलवायु परिवर्तन के भयावह प्रभावों को कम करने में मददगार हो सकता है।
    • ईरान को लेकर यूरोपीय संघ संपूर्ण मध्य-पूर्व क्षेत्र में तनाव को कम करने के उद्देश्य से परमाणु समझौते पर नए सिरे से वार्ता शुरू करने में मदद कर सकता है।
    • जर्मनी की चांसलर एंजेला मर्केल ने रूस के संदर्भ में एक ट्रांस-अटलांटिक नीति की आवश्यकता पर ज़ोर दिया है।

उत्तरी अटलांटिक संधि संगठन (NATO)

  • स्थापना: उत्तरी अटलांटिक संधि संगठन (NATO) की स्थापना 4 अप्रैल, 1949 को संयुक्त राज्य अमेरिका, कनाडा और कई पश्चिमी यूरोपीय देशों द्वारा सोवियत संघ के विरुद्ध सामूहिक सुरक्षा सुनिश्चित करने के उद्देश्य से उत्तरी अटलांटिक संधि (जिसे वाशिंगटन संधि भी कहा जाता है) के माध्यम से की गई थी।
    • नाटो राजनीतिक और सुरक्षा सहयोग के लिये एक महत्त्वपूर्ण ट्रांस-अटलांटिक संपर्क प्रदान करता है।
  • मुख्यालय: ब्रुसेल्स, बेल्जियम
  • कार्य पद्धति:
    • नाटो एक राजनीतिक और सैन्य गठबंधन है जिसका प्राथमिक लक्ष्य अपने सदस्यों की सामूहिक रक्षा तथा उत्तरी अटलांटिक क्षेत्र में एक लोकतांत्रिक व्यवस्था एवं शांति बनाए रखना है।
    • नाटो के पास एक एकीकृत सैन्य कमान संरचना है, हालाँकि इसमें नाटो की स्वयं की हिस्सेदारी काफी कम है।
    • अधिकांश बल पूर्णतः सदस्य देशों की कमान के अधीन रहते हैं और सदस्य देशों के नाटो-संबंधी कार्यों से सहमत होने पर उनका प्रयोग किया जाता है।
    • संगठन में सभी 30 सहयोगियों का एक समान प्रतिनिधित्व है और इसके तहत सभी निर्णय सर्वसम्मति एवं सहमति से लिये जाते हैं। संगठन के सभी सदस्यों को इसके बुनियादी मूल्यों अर्थात् लोकतंत्र, व्यक्तिगत स्वतंत्रता और कानून के शासन आदि का सम्मान करना चाहिये।
  • सदस्य: वर्ष 2020 तक नाटो में कुल 30 सदस्य देश शामिल हैं, जिसमें उत्तरी मेसेडोनिया (2020) संगठन में शामिल होने वाला सबसे नवीनतम सदस्य है।
  • सदस्य देश: अल्बानिया, बुल्गारिया, बेल्जियम, क्रोएशिया, चेक गणराज्य, कनाडा, डेनमार्क, एस्टोनिया, फ्राँस, आइसलैंड, इटली, लक्ज़मबर्ग, नीदरलैंड, नॉर्वे, पुर्तगाल, यूनाइटेड किंगडम, अमेरिका, जर्मनी, ग्रीस, हंगरी, लातविया, लिथुआनिया, रोमानिया, स्लोवाकिया, स्लोवेनिया, पोलैंड, स्पेन, तुर्की और मॉन्टेनेग्रो।

स्रोत: द हिंदू