तिलहन क्षेत्र की संरचनात्मक समस्याओं को दूर करने का समय | 13 Jun 2018

संदर्भ

यह अपेक्षा करना तर्कसंगत है कि कम आपूर्ति में वस्तुओं का बाज़ार मूल्य उच्च रहेगा लेकिन तिलहन हमारे देश में एक अपवाद है। विभिन्न तिलहनों (सोयाबीन, मूंगफली, सरसों) की कीमतें काफी लंबे समय से कम रही हैं जो उत्पादकों के हितों को चोट पहुँचा रही हैं।

घरेलू तिलहन की उदासीन कीमतों का प्रमुख कारण

  • घरेलू तिलहनों की उदासीन कीमतों का एक प्रमुख कारण विदेशों से कम कीमत वाले तेलों का निरंतर बड़े पैमाने पर आयात है।
  • पाम ऑयल का देश के वार्षिक आयात के लगभग दो-तिहाई हिस्से के हिसाब से 14 मिलियन टन का आयात किया जाता है जो कि 11 अरब डॉलर ( 70,000 करोड़ रुपए) से अधिक है और यह भारत को दुनिया का सबसे बड़ा आयातक बना रहा है।
  • पिछले दो दशकों में हमारी नीतिगत चूक का परिणाम यह है कि खाद्य तेल में हमारी आत्मनिर्भरता आयात-निर्भरता के साथ कम हो गई है, जबकि हमारी उपभोग आवश्यकताएँ 70 प्रतिशत तक बढ़ गई हैं।
  • घरेलू तिलहन उत्पादकों का समर्थन करने के लिये  सरकार ने 1 फरवरी को प्रस्तुत केंद्रीय बजट में खाद्य तेल आयात पर सीमा शुल्क बढ़ाने की घोषणा की है। यह एक महीने बाद पाम आयल समूह पर कर में बढ़ोतरी के साथ हुआ है।
  • अंतिम शुल्क वृद्धि (पाम आयल पर) ने व्यापार के एक वर्ग की मुश्किलों  को बढ़ाया है, जिसने मांग की है कि सोयाबीन, सूरजमुखी और रैपसीड आयल जैसे गैर-पाम आयल पर भी शुल्क बढ़ाया जाना चाहिये|

अतार्किक मांग

  • एक तरफ जब उद्योग, व्यापार, नीति निर्माताओं, वैज्ञानिकों और उत्पादकों को घरेलू उत्पादन को अधिकतम करने और आयात निर्भरता को कम करने के लिये मिलकर काम करना चाहिये, वहीँ दूसरी तरफ कुछ लोग विदेशी मूल के सामानों के लिये भी खेल के मैदान की तलाश करने में लगे हैं।
  • वास्तव में पाम आयल पर आयात शुल्क बढ़ाने को लेकर मार्च में लिया गया सरकार का निर्णय राजस्व उत्पादन और घरेलू उत्पादकों के संरक्षण के मामले में मज़बूत कदम है।
  • पाम आयल का घरेलू उत्पादन नगण्य है। यह तेल विदेश से आता है|
  • आयातित उत्पाद से राजस्व वसूलने पर कोई आपत्ति नहीं होनी चाहिये क्योंकि यह देश के भीतर नहीं बनाया जाता है।
  • आयातकों के अनुकूल शुल्क दरों के साथ लंबे समय तक इस तरह के आयात ने घरेलू तिलहन अर्थव्यवस्था को बर्बाद कर दिया है।
  • निःसंदेह  आयात अपरिहार्य है क्योंकि घरेलू खाद्य तेल की स्पष्ट कमी है। इसलिये  ऐसा मामला नहीं है कि सामान्य रूप से खाद्य तेल आयात या पाम आयल के आयात को रोक दिया जाना चाहिये।
  • इस क्षेत्र में एक मज़बूत विनियमन की आवश्यकता है जो आयात की आवश्यकता पर आधारित होनी चाहिये न कि अटकलबाज़ीयों पर आधारित हो|

संरचनात्मक समस्याओं की उपेक्षा 

  • सरकारों ने निरंतर तिलहन उत्पादन को बढ़ाने वाले संरचनात्मक मुद्दों को नज़रअंदाज़ कर दिया है।
  • दीर्घकालिक परिप्रेक्ष्य से घरेलू तिलहन और तेल उत्पादन को बढ़ावा देने के लिये प्रभावी रणनीतियों पर काम करने की बजाय, सरकारों का झुकाव व्यापार और टैरिफ नीतियों की ओर रहा है| अक्सर, सरकार लॉबी के दबाव में झुक जाती है।
  • हाल ही में कृषि सचिव द्वारा दिये गए स्पष्ट बयान में कहा गया है कि सोयाबीन, रैपसीड और सूरजमुखी के तेलों पर सीमा शुल्क जल्द ही बढ़ाया जाएगा। यह बयान इसके औचित्य पर गंभीर सवाल खड़ा करता है।
  • सीमा शुल्क के मामले में वित्त मंत्रालय निर्णय लेता है और घोषणा करता है जबकि कृषि अधिकारी इसके दायरे से बाहर हैं|
  • शुल्क वृद्धि पर बयान देकर  कृषि सचिव ने बाज़ार प्रतिभागियों, विशेष रूप से सट्टेबाजों को अनुचित लाभ उठाने का मौका दे दिया है|
  • दूसरी तरफ, यदि कृषि मंत्रालय तिलहन उत्पादकों को समर्थन देने के लिये  वास्तव में गंभीर है, तो उसे अपनी खरीद प्रणाली को मज़बूत करना चाहिये।
  • अब समय आ गया है कि देश व्यापार और टैरिफ नीतियों में सुधार के प्रयास करे तथा तिलहन क्षेत्र की संरचनात्मक समस्याओं को दूर करने पर ध्यान केंद्रित करे।