आंध्र प्रदेश का ‘तीन राजधानी’ विवाद | 08 Mar 2022

प्रिलिम्स के लिये:

संसद, राज्यसभा, अनुच्छेद 226, पहली अनुसूची, चौथी अनुसूची

मेन्स के लिये:

मल्टीपल स्टेट कैपिटल आइडिया और गवर्नेंस पर इसका प्रभाव, मल्टीपल स्टेट कैपिटल की मांग के कारण।

चर्चा में क्यों?

हाल ही में आंध्र प्रदेश उच्च न्यायालय ने राज्य सरकार को छह महीने के भीतर राज्य की राजधानी अमरावती और राजधानी क्षेत्र के निर्माण एवं विकास करने का निर्देश दिया।

पृष्ठभूमि:

  • आंध्र प्रदेश विधानसभा द्वारा ‘आंध्र प्रदेश विकेंद्रीकरण एवं सभी क्षेत्रों का समावेशी विकास अधिनियम (AP Decentralisation and Inclusive Development of All Regions Act), 2020 (तीन राजधानियों की स्थापना के उद्देश्य से) विधेयक पारित किया गया था।
    • यह अधिनियम आंध्र प्रदेश राज्य के लिये तीन राजधानियों का मार्ग प्रशस्त करता है- विशाखापत्तनम में कार्यकारी राजधानी, अमरावती में विधायी और कुरनूल में न्यायिक।
    • सरकार के अनुसार, कई राजधानियाँ राज्य के कई क्षेत्रों के विकास में सहायता करेंगी और समावेशी विकास की ओर अग्रसर होंगी।
  • पहले आंध्र सरकार ने अमरावती क्षेत्र और उसके आसपास के किसानों से लगभग 30 हज़ार एकड़ भूमि का अधिग्रहण किया था। इसलिये राजधानी बदलने के फैसले का असर वहाँ रहने वाले ज़्यादातर किसानों पर पड़ सकता है।
  • नवंबर, 2021 में आंध्र प्रदेश विकेंद्रीकरण और सभी क्षेत्रों का समावेशी विकास निरसन विधेयक, 2021 राज्य के लिये तीन-राजधानियों की योजना को निर्धारित करने वाले पहले के कानूनों को निरस्त करने के उद्देश्य से पारित किया गया था।
    • साथ ही पिछले संस्करण में खामियों को दूर करने के बाद एक "बेहतर" और "व्यापक" विधेयक पेश करने का वादा किया गया था।

सर्वोच्च न्यायालय का वर्तमान निर्णय

  • उच्च न्यायालय ने माना कि राज्य विधायिका में राजधानी को स्थानांतरित करने, विभाजित करने के लिये कानून बनाने की क्षमता का अभाव है।
  • न्यायालय ने सरकार और राजधानी क्षेत्र विकास प्राधिकरण (CRDA) को आंध्र प्रदेश राजधानी क्षेत्र विकास प्राधिकरण अधिनियम तथा लैंड पूलिंग नियमों के तहत निहित अपने कर्तव्यों का निर्वहन करने का निर्देश दिया।
    • न्यायालय ने राज्य को भूस्वामियों से संबंधित पुनर्गठन भूखंडों को विकसित करने और उन्हें तीन महीने के भीतर भूस्वामियों को सौंपने का निर्देश दिया।
    • आंध्र प्रदेश राजधानी क्षेत्र विकास प्राधिकरण अधिनियम, 2014 की धारा 10(1)(c)(i) के तहत विकास योजनाओं और विनियमों के अनुसार विकास गतिविधियों के नियमन का प्रावधान करता है, और इस प्रक्रिया में सौंदर्य, दक्षता व मितव्ययिता लाने का प्रावधान करता है।
  • सर्वोच्च न्यायालय ने यह विचार रखा कि किसानों और CRDA के बीच हस्ताक्षरित समझौता एक विकास समझौता-सह-अपरिवर्तनीय जनरल पावर ऑफ अटॉर्नी है और यह एक वैधानिक अनुबंध है।
    • संबंधित राज्य और एपीसीआरडीए (APCRDA) द्वारा नियमों एवं शर्तों का उल्लंघन संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत शक्ति का प्रयोग करते समय इस अदालत को हस्तक्षेप का अधिकार प्रदान करता है।
      • संविधान का अनुच्छेद 226 उच्च न्यायालय को नागरिकों के मौलिक अधिकारों के प्रवर्तन तथा किसी अन्य उद्देश्य के लिये बंदी प्रत्यक्षीकरण, परमादेश, प्रमाणिकता, निषेध तथा वारंट सहित रिट जारी करने का अधिकार देता है।
  • अदालत ने माना कि केवल संसद ही राज्य की विधायिका, कार्यकारी और न्यायिक अंगों की स्थापना से संबंधित विवादों से निपटने के लिये सक्षम है तथा यह संविधान के अनुच्छेद 4 में निहित है।
    • अनुच्छेद 4 पहली अनुसूची अर्थात् भारत संघ में राज्यों के नाम और चौथी अनुसूची यानी प्रत्येक राज्य के लिये राज्यसभा में आवंटित सीटों की संख्या में परिणामी परिवर्तन की अनुमति देता है।

एकाधिक राज्यों से संबंधित चिंताएँ:

  • विधायी और कार्यकारी कार्य को संतुलित करना:
    • कार्यकारी और विधायी पूंजी को अलग करना चुनौतीपूर्ण हो सकता है। सरकार की संसदीय प्रणाली जिसे भारत में अपनाया गया है, में कार्यपालिका और विधायिका के कार्य परस्पर जुड़े हुए हैं। उदाहरण के लिये:
      • जब विधानसभा का सत्र चल रहा होता है, तब मंत्रियों आदि को वार्ता के लिये बिल पेश करने हेतु हर समय प्रशासनिक अधिकारियों की आवश्यकता होती है।
      • जब विधानसभा सत्र में नहीं होती है तो कार्यपालिका द्वारा निर्णय लेने हेतु विभिन्न स्रोतों के माध्यम से कई प्रकार की जानकारी की आवश्यकता होती है जिसमें विधायक भी शामिल हैं जो लोगों का प्रतिनिधित्व करते हैं।
  • तार्किक रूप से कठिन:
    • किसी क्षेत्र का विकास औद्योगिक नीति जैसे नीतिगत हस्तक्षेपों के माध्यम से किया जा सकता है। हालांँकि राजधानियों को अलग करना प्रशासन के साथ-साथ लोगों की लिये असुविधाजनक हो सकता है, साथ ही इसे लागू करना भी तार्किक रूप से कठिन होगा।

आगे की राह

  • राज्य में विकेंद्रीकरण स्थानीय सरकारों यानी पंचायतों और नगर निगमों को सशक्त बनाकर होना चाहिये, जिनका गठन 73वें और 74वें संविधान संशोधन अधिनियम के लागू होने के बाद हुआ था।
  • क्षेत्र के विकास के लिये एक से अधिक राजधानियों का उपयोग एक उपकरण के रूप में नहीं किया जाना चाहिये।
  • क्षेत्र का विकास विनिर्माण और सेवा क्षेत्रों में निवेश करके किसानों को लाभान्वित करने वाली विभिन्न नीतियों को लाकर व व्यवसाय करने में आसानी, बुनियादी ढाँचे के विकास, सामाजिक-सांस्कृतिक संस्थानों जैसे विश्वविद्यालयों, अस्पतालों आदि के विकास द्वारा किया जा सकता है।

स्रोत: द हिंदू