प्रेस की स्वतंत्रता के लिये खतरे | 17 Dec 2020

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में ‘कमिटी टू प्रोटेक्ट जर्नलिस्ट्स’ (Committee to Protect Journalists) नामक एक संस्था द्वारा जारी एक रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 2020 के दौरान रिकार्ड संख्या में पत्रकारों को जेलों में बंद किया गया। 

  • ‘कमिटी टू प्रोटेक्ट जर्नलिस्ट्स’  एक स्वतंत्र और गैर-लाभकारी संगठन है जो विश्व भर में प्रेस की स्वतंत्रता को बढ़ावा देने के लिये कार्य करती है।
  • यह पत्रकारों के सुरक्षित रूप से और बिना किसी हिंसा या प्रतिशोध के भय के समाचार को रिपोर्ट करने के अधिकार का समर्थन करती है। 

प्रमुख बिंदु:  

  • वर्ष 2020 में जेलों में बंद पत्रकारों की कुल संख्या 272 तक पहुँच गई।
  • तुर्की राज्य विरोधी आरोपों में कम-से-कम 68 पत्रकारों को कैद करने के साथ प्रेस की स्वतंत्रता के खिलाफ दुनिया का सबसे बड़ा अपराधी बना हुआ है। इसके अतिरिक्त मिस्र में कम-से-कम 25 पत्रकार जेलों में बंद हैं।
  • यमन में हूती विद्रोहियों द्वारा बंदी बनाए गए कई पत्रकारों सहित मध्य-पूर्व और उत्तरी अफ्रीका में दर्जनों पत्रकार लापता या अपहृत हैं।
  • COVID-19 महामारी के दौरान सत्तावादी नेताओं ने पत्रकारों को गिरफ्तार करके रिपोर्टिंग को नियंत्रित करने की कोशिश की है।

मीडिया की स्वतंत्रता का महत्त्व: 

  •  स्वतंत्र मीडिया जनता की आवाज़ होने के नाते उन्हें अपनी राय व्यक्त करने के अधिकार के साथ सशक्त बनाता है। इस तरह लोकतंत्र में स्वतंत्र मीडिया की भूमिका बहुत ही महत्त्वपूर्ण है।
  • लोकतंत्र के सुचारु संचालन के लिये विचारों, सूचनाओं, ज्ञान, बहस और विभिन्न दृष्टिकोणों की अभिव्यक्ति का निर्बाध आदान-प्रदान होना बहुत ही महत्त्वपूर्ण है।
    •  स्वतंत्र मीडिया विचारों की खुली चर्चा को बढ़ावा देता है जो व्यक्तियों को राजनीतिक जीवन में पूरी तरह से भाग लेने, सूचित निर्णय लेने की अनुमति देता है तथा इसके परिणामस्वरूप यह एक मज़बूत समाज (विशेष रूप से भारत जैसे बड़े लोकतंत्र) की स्थापना का मार्ग प्रसस्त करता है 
  • मीडिया के स्वतंत्र होने से लोग सरकार के निर्णयों पर प्रश्न करने के अपने अधिकारों का उपयोग करने में सक्षम होंगे। ऐसा माहौल तभी बनाया जा सकता है जब प्रेस/मीडिया को  स्वतंत्रता हासिल हो।
  • इसलिये मीडिया को सही रूप में लोकतंत्र का चौथा स्तंभ माना जा सकता है, जहाँ अन्य तीन स्तंभ- विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका हैं।

मीडिया की स्वतंत्रता के लिये खतरे:

  • मीडिया के प्रति शत्रुता/विद्वेष जिसे राजनीतिक नेताओं द्वारा खुले तौर पर प्रोत्साहित किया जाता है, लोकतंत्र के लिये एक बड़ा खतरा है।
  • सरकार द्वारा विनियमन,  फर्ज़ी खबरों और सोशल मीडिया के अधिक प्रभाव पर नियंत्रण के नाम पर मीडिया पर दबाव बनाया जाना इस क्षेत्र के लिये बहुत ही खतरनाक है। भ्रष्टाचार से प्रेरित पेड न्यूज़, एडवर्टोरियल (लेख/संपादकीय  के रूप में विज्ञापन का प्रकाशन) और फर्ज़ी खबरें स्वतंत्र तथा निष्पक्ष मीडिया के लिये बड़ा खतरा हैं।
  • पत्रकारों की सुरक्षा सबसे बड़ा मुद्दा है, संवेदनशील मुद्दों को कवर करने वाले पत्रकारों पर हमले या उनकी हत्या बहुत आम बात है।
  • कई मामलों में सोशल मीडिया पर पत्रकारों को लक्षित करने वाले घृणास्पद/द्वेषपूर्ण भाषणों को साझा एवं प्रसारित किया जाता है, साथ ही इनके माध्यम से सोशल मीडिया का  उपयोग करने वाले पत्रकारों को लक्षित और प्रताड़ित किया जाता है।
  • व्यावसायिक समूहों और राजनीतिक शक्तियों  का मीडिया के बड़े हिस्से (प्रिंट और विज़ुअल दोनों) पर मज़बूत हस्तक्षेप है,  जिससे निहित स्वार्थ में वृद्धि और मीडिया की स्वतंत्रता को क्षति पहुँचती है।

भारत में मीडिया की स्वतंत्रता:

  • वर्ष 1950 के रोमेश थापर बनाम मद्रास राज्य मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि सभी लोकतांत्रिक संगठनों की नींव प्रेस की स्वतंत्रता पर आधारित होती है।
  • भारतीय संविधान के अनुच्छेद-19 के तहत भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की गारंटी दी गई है।
  • प्रेस की स्वतंत्रता को भारतीय कानूनी प्रणाली द्वारा स्पष्ट रूप से संरक्षित नहीं किया गया है, परंतु यह संविधान के अनुच्छेद 19 (1) (ए) के तहत संरक्षित (उपलक्षित रूप में) है, जिसमें कहा गया है - "सभी नागरिकों को अभिव्यक्ति और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार होगा"।
  • हालाँकि प्रेस की स्वतंत्रता भी असीमित नहीं है। अनुच्छेद-19(2) के तहत कुछ विशेष मामलों में इस पर प्रतिबंध लागू किये जा सकते हैं, जो इस प्रकार हैं-
    • भारत की संप्रभुता और अखंडता से संबंधित मामले, राज्य की सुरक्षा, विदेशी राज्यों के साथ मैत्रीपूर्ण संबंध, सार्वजनिक व्यवस्था, शालीनता या नैतिकता या न्यायालय की अवमानना, मानहानि या अपराध के जुड़े मामलों में आदि।
  • भारतीय प्रेस परिषद (PCI):
    • यह एक नियामकीय संस्था है जिसे 'भारतीय प्रेस परिषद अधिनियम 1978' के तहत स्थापित किया गया है।
    • इसका उद्देश्य प्रेस की स्वतंत्रता को बनाए रखना और भारत में समाचार पत्रों तथा समाचार एजेंसियों के मानकों को बनाए रखना और इसमें सुधार करना है।

प्रेस की स्वतंत्रता के लिये अंतर्राष्ट्रीय पहल:

  • विश्व के 180 देशों में मीडिया के लिये उपलब्ध स्वतंत्रता के स्तर का मूल्यांकन करने हेतु पेरिस स्थित 'रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स' (RWB) वार्षिक रूप से 'विश्व प्रेस स्वतंत्रता सूचकांक’  (WPFI) प्रकाशित करता है, जो सरकारों और अधिकारियों को स्वतंत्रता के खिलाफ उनकी नीतियों  और प्रेस की स्वतंत्रता के बारे में  जागरूक बनाता है। 
    • भारत वर्ष 2020 में 'विश्व प्रेस स्वतंत्रता सूचकांक’ में दो पायदान नीचे गिरकर 180 देशों में 142वें स्थान पर पहुँच गया।

आगे की राह: 

  • पिछले एक दशक में विश्व भर में मीडिया की स्वतंत्रता में लगातार गिरावट देखी गई है। 
  • मीडिया की स्वतंत्रता को प्रभावित किये बगैर इसके प्रति पुनः लोगों के विश्वास को मज़बूत कर सूचनाओं में हेरफेर और फेक न्यूज़ की चुनौती का सामना करने के लिये सार्वजनिक जागरूकता, मज़बूत विनियमन आदि प्रयासों की आवश्यकता होगी।
    • फेक न्यूज़ पर अंकुश लगाने हेतु भविष्य के किसी भी कानून को लागू किये जाने से पहले मीडिया को दोष देने और त्वरित प्रतिक्रिया की बजाय सभी पक्षों का ध्यान रखते हुए  पूरी स्थिति की समीक्षा की जानी चाहिये और वर्तमान में नए मीडिया के इस युग में कोई भी व्यक्ति अपने निजी लाभ के लिये समाचार बना और प्रसारित कर सकता है।
  • मीडिया के लिये सत्य, सटीकता, पारदर्शिता, स्वतंत्रता, निष्पक्षता और  ज़िम्मेदारी जैसे मुख्य सिद्धांतों के साथ खड़े रहना बहुत ही महत्त्वपूर्ण है  ताकि उन्हें  विश्वसनीयता प्राप्त हो सके।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस