पुलिस सुधार: आवश्यकता और प्रयास | 30 Jun 2020

प्रीलिम्स के लिये

राष्ट्रमंडल मानवाधिकार पहल, उत्पीड़न के विरुद्ध संयुक्त राष्ट्र कन्वेंशन, पुलिस सुधार से संबंधित विभिन्न आयोग और समितियाँ

मेन्स के लिये

पुलिस सुधार की आवश्यकता, इस संबंध में विभिन्न समितियों की सिफारिशें

चर्चा में क्यों?

हाल ही में राष्ट्रमंडल मानवाधिकार पहल (Commonwealth Human Rights Initiative- CHRI) की कार्यकारी समिति (भारत) द्वारा जारी आधिकारिक बयान के अनुसार, बीते सप्ताह पुलिस द्वारा तमिलनाडु के दो व्यापारियों की कथित हत्या और यातना भारत की विघटित आपराधिक न्याय प्रणाली की ओर इशारा करती है और देश में पुलिस सुधार की आवश्यकता को रेखांकित करती है।

प्रमुख बिंदु

  • राष्ट्रमंडल मानवाधिकार पहल (CHRI) की कार्यकारी समिति के अनुसार, तमिलनाडु के तूतीकोरिन ज़िले में पिता-पुत्र की पुलिस हिरासत में हुई कथित हत्या देश में कानूनी दायित्त्वों की पूर्ति के लिये एक मज़बूत कानून की तत्काल आवश्यकता को रेखांकित करती है।
  • ध्यातव्य है कि दोनों लोगों को तमिलनाडु पुलिस ने कथित तौर पर COVID-19 लॉकडाउन के दौरान अपनी दुकानों को अनुमति की अवधि से अधिक समय के लिये खोलने हेतु गिरफ्तार किया था।
  • CHRI के आधिकारिक बयान के अनुसार, ‘भारत उन कुछ विशेष देशों में शामिल है, जिन्होंने अभी तक उत्पीड़न के विरुद्ध संयुक्त राष्ट्र कन्वेंशन (UN Convention Against Torture-UNCAT) की पुष्टि नहीं की है।’
  • उल्लेखनीय है कि भारत ने वर्ष 1997 में इस कन्वेंशन पर हस्ताक्षर किये थे, किंतु अभी तक भारत ने इस कन्वेंशन की पुष्टि नहीं की है।

पुलिस व्यवस्था

  • संविधान के तहत, पुलिस राज्य द्वारा अभिशासित विषय है, इसलिये भारत के प्रत्येक राज्य के पास अपना एक पुलिस बल है। राज्यों की सहायता के लिये केंद्र को भी पुलिस बलों के रखरखाव की अनुमति दी गई है ताकि कानून और व्यवस्था की स्थिति सुनिश्चित की जा सके।
  • इस प्रकार हम कह सकते हैं कि पुलिस बल, राज्य द्वारा अधिकार प्रदत्त व्यक्तियों का एक निकाय है, जो राज्य द्वारा निर्मित कानूनों को लागू करने, संपत्ति की रक्षा और नागरिक अव्यवस्था को सीमित रखने का कार्य करता है।

पुलिस सुधार की आवश्यकता

  • भारत के अधिकांश राज्यों ने अपने पुलिस संबंधी कानून ब्रिटिश काल के 1861 के अधिनियम के आधार पर बनाए हैं, जिसके कारण ये सभी कानून भारत की मौजूदा लोकतांत्रिक व्यवस्था के अनुरूप नहीं है।
  • देश में अधिकांश राज्यों में पुलिस की छवि तानाशाहीपूर्ण, जनता के साथ मित्रवत न होना और अपने अधिकारों का दुरुपयोग करने की रही है। ऐसे में पुलिस सुधार के माध्यम से आम जनता के बीच पुलिस की छवि में सुधार करना काफी महत्त्वपूर्ण है, ताकि आम जनता स्वयं को पुलिस के साथ जोड़ सके।
  • विदित है कि मौजूदा दौर में गुणवत्तापूर्ण जाँच के लिये नवीन तकनीकी क्षमताओं की आवश्यकता होती है, किंतु भारतीय पुलिस व्यवस्था में आवश्यक तकनीक के अभाव में सही ढंग से जाँच संभव नहीं हो पाती है और कभी-कभी इसका असर उचित न्याय मिलने की प्रक्रिया पर भी पड़ता है।
  • भारत में पुलिस-जनसंख्या अनुपात काफी कम है, जिसके कारण लोग असुरक्षित महसूस करते हैं और पुलिस को मानव संसाधन की कमी से जूझना पड़ता है।
  • विशेषज्ञों के अनुसार, भारतीय पुलिस व्यवस्था में प्रभावी जवाबदेही तंत्र का भी अभाव है।

पुलिस सुधार हेतु गठित समितियाँ

  • धर्मवीर आयोग अथवा राष्ट्रीय पुलिस आयोग
    • पुलिस सुधारों को लेकर वर्ष 1977 में धर्मवीर की अध्यक्षता में गठित आयोग को राष्ट्रीय पुलिस आयोग कहा जाता है। चार वर्षों में इस आयोग ने केंद्र सरकार को आठ रिपोर्टें सौंपी थीं, लेकिन इसकी सिफारिशों पर अमल नहीं किया गया।
    • इस आयोग की सिफारिशों में प्रत्येक राज्य में एक प्रदेश सुरक्षा आयोग का गठन, पुलिस प्रमुख का कार्यकाल तय करना और एक नया पुलिस अधिनियम बनाया जाना आदि शामिल था।
  • पद्मनाभैया समिति
    • वर्ष 2000 में पुलिस सुधारों पर पद्मनाभैया समिति का गठन किया गया था, इस समिति का मुख्य कार्य पुलिस बल की भर्ती प्रक्रियाओं, प्रशिक्षण, कर्तव्यों और ज़िम्मेदारियों, पुलिस अधिकारियों के व्यवहार और पुलिस जाँच आदि विषयों का अध्ययन करना था।
  • अन्य समितियाँ
    • देश में आपातकाल के दौरान हुई ज़्यादतियों की जाँच के लिये गठित शाह आयोग ने भी ऐसी घटनाओं की पुनरावृत्ति से बचने के लिये पुलिस को राजनैतिक प्रभाव से मुक्त करने की बात कही थी।
    • इसके अलावा राज्य स्तर पर गठित कई पुलिस आयोगों ने भी पुलिस को बाहरी दबावों से बचाने की सिफारिशें की थीं।

प्रकाश सिंह बनाम भारत सरकार

  • वर्ष 1996 में सर्वोच्च न्यायालय में एक याचिका दायर की गई थी जिनमें पुलिस पर यह आरोप लगाया गया था कि पुलिसकर्मी राजनैतिक रूप से पक्षपातपूर्ण तरीके से अपने कर्तव्यों का निर्वाह करते हैं।
  • वर्ष 2006 में सर्वोच्च न्यायालय ने अपने निर्णय में केंद्र एवं राज्यों को पुलिस के कामकाज के लिये दिशा-निर्देश तय करने, पुलिस के प्रदर्शन का मूल्यांकन करने, नियुक्ति और हस्तांतरण का निर्णय लेने तथा पुलिस के दुर्व्यवहार की शिकायतें दर्ज करने के लिये प्राधिकरणों के गठन का आदेश दिया था।
  • न्यायालय ने मुख्य पुलिस अधिकारियों को मनमाने हस्तांतरण और नियुक्ति से बचाने के लिये उनकी सेवा की न्यूनतम अवधि तय करने को भी अनिवार्य किया था।
  • हालाँकि देश के अधिकांश राज्यों ने अभी तक इन दिशा-निर्देशों का पालन नहीं किया है।

आगे की राह

  • भारत सरकार को सर्वोच्च प्राथमिकता के तौर पर संसद के समक्ष पुलिस हिरासत में होने वाली यातना से संबंधित एक मसौदा कानून तैयार करने का प्रयास करने चाहिये, साथ ही सरकार को UNCAT के प्रति अपनी प्रतिबद्धता की घोषणा करनी चाहिये।
  • वर्तमान में भारतीय पुलिस व्यवस्था को एक नई दिशा, नई सोच और नए आयाम की आवश्यकता है। समय की मांग है कि पुलिस नागरिक स्वतंत्रता और मानव अधिकारों के प्रति जागरूक हो और समाज के सताए हुए तथा वंचित वर्ग के लोगों के प्रति संवेदनशील बने।

स्रोत: द हिंदू