भारत-ईरान संबंध और ट्रंप | 13 Jun 2018

संदर्भ

8 मई, 2018 को अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने अमेरिका के ईरान परमाणु समझौते से बाहर होने की घोषणा कर दी। इस समझौते को ज्वाइंट कॉम्प्रिहेंसिव प्लान ऑफ एक्शन (JCPOA) के नाम से भी जाना जाता है। इसे ईरान के कथित परमाणु हथियार कार्यक्रम के मद्देनजर तेहरान, संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के स्थाई सदस्य एवं जर्मनी (P5+1) के मध्य संपन्न किया गया था।

प्रमुख बिंदु

  • ट्रंप के निर्णय के बाद इस बात की संभावना और अधिक हो गई है कि अब अमेरिकी कॉन्ग्रेस द्वारा ईरान पर और अधिक प्रतिबंध लगाए जाएंगे।
  • ये प्रतिबंध, पहले की तरह, भारत-ईरान संबंधों को एक और चुनौतीपूर्ण चौराहे पर ले जाएंगे।
  • प्रतिबंधों के कारण, ईरान से खरीदी और बेची जाने वाली वस्तुओं में तेल एक ऐसी वस्तु है, जो सबसे अधिक प्रभावित हो सकती है।
  • यूएस ट्रेजरी ने कहा है कि ईरान से कच्चा तेल खरीदने और बेचने वाली संस्थाओं को ब्लैकलिस्ट किया जा सकता है। कई वैश्विक कंपनियाँ ईरानी व्यवसाय से खुद को दूर कर चुकी हैं। 
  • ध्यान देने योग्य बात है कि भारत द्वारा आयातित तेल का 80 प्रतिशत से अधिक भाग विदेशी तेल टैंकरों के माध्यम से लाया जाता है। ऐसे में इन पर कोई भी अमेरिकी प्रतिबंध भारत के लिये नुकसानदेह साबित हो सकता है।
  • हालाँकि, भारत के लिये यह स्थिति नई नहीं है। भारत ओबामा प्रशासन के समय भी ऐसी स्थिति का सामना कर चुका है जब अमेरिका और ईरान के संबंध बेहद खराब थे और भारत को दोनों देशों के साथ संबंधों में संतुलन बनाना बेहद आवश्यक था। 
  • प्रतिबंधों के पहले चरण के पूर्व ईरान भारत को तेल आपूर्ति करने वाले शीर्ष के तीन देशों में शामिल था। 
  • भारत-ईरान संबंधों के मध्य तेल केवल एक व्यापारिक वस्तु नहीं है, बल्कि दोनों देशों के संबंधों को बनाए रखने का एक महत्त्वपूर्ण कारक है। 
  • यदि दोनों देशों के मध्य से तेल व्यापार को हटा दिया जाए, तो इनके बीच होने वाले अन्य व्यापार की मात्रा बहुत कम है।
  • यह बात भी तर्कसंगत है कि जेसीपीओए के पतन के कारण यदि दोनों देशों के बीच तेल व्यापार में कमी आ गई, तो भारत द्वारा चाबहार बंदरगाह के विकास का महत्त्व भी बहुत कम हो जाएगा। 
  • ओबामा प्रशासन के दौरान भी, जब अमेरिका के साथ भारत के संबंध तुलनात्मक रूप से अच्छे थे, अमेरिका ने तत्कालीन भारतीय सरकार पर शिकंजा कसते हुए, भारत द्वारा ईरान से आयात किये गए तेल के लिये लगभग $6 बिलियन डॉलर की भुगतान राशि के हिस्सों को स्थानांतरित करने में अडंगा डाल दिया था।
  • तेल एक विश्व स्तरीय व्यापारिक वस्तु है और अमेरिका अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय प्रणालियों में एक प्रबल शक्ति है। इसे ध्यान में रखते हुए इंश्योरेंस और शिपिंग संस्थानों ने ईरानी तेल व्यापार से दूरी बना ली है।
  • पूर्व में भारत और ईरान द्वारा संयुक्त रूप से ईरानो-हिंद नामक एक शिपिंग कंपनी चलाई थी, जिसे 2013 में बंद कर दिया गया था। इसे 2016 में पुनर्जीवित करने की बात चली थी, लेकिन ऐसा नहीं हो पाया। यदि उस समय इसका संरक्षण किया गया होता, तो यह आज एक वरदान साबित हो सकती थी।
  • हालाँकि, ईरान अमेरिकी संबंधों के उतार-चढ़ाव वाले पुराने अनुभव के बावजूद वर्तमान सरकार प्रतिबंधों की स्थिति में अपनी पूर्ववर्ती सरकार से भिन्न प्रतिक्रिया कर सकती है।
  • इस बार ईरानी समस्या के समाधान के बहुपक्षीय प्रयासों को तबाह करने के लिये अमेरिका स्वयं जिम्मेदार है।  इस वजह से वह अपने कुछ करीबी यूरोपीय सहयोगियों से भी दूरी बना बैठा है।
  • अमेरिका के साथ बेहतर संबंध होने के बावजूद वर्तमान सरकार का ट्रंप प्रशासन के साथ तालमेल उतना अच्छा नहीं है। भारत ने कई बार संकेत दिये हैं कि वह अमेरिकी नाराजगी के बावजूद ईरान से तेल खरीदना जारी रखेगा।
  • क्योंकि अमेरिका केवल ईरान के मामले में ही भारतीय संस्थाओं को नहीं रोक रहा है, बल्कि रूस के साथ व्यापार करने पर भी इन्हें धमका रहा है, अतः भारत को अमेरिका का यह कदम बिलकुल पसंद नहीं आ रहा। 
  • चीन और रूस के साथ प्रधानमंत्री मोदी द्वारा किये गए अनौपचारिक सम्मेलन, केंद्रीय मंत्री वी के सिंह की उत्तर कोरिया की अचानक यात्रा इस बात का संकेत देते हैं कि भारत ट्रंप प्रशासन के व्यापार और कूटनीति के संबंध में ‘यूएस फर्स्ट’ के अतिवादी दृष्टिकोण से खुश नहीं है।
  • फरवरी में ईरानी राष्ट्रपति की भारत यात्रा के दौरान, प्रतिबंधों की आशंका के मद्देनजर, दोनों देशों ने ऐसे तंत्र की स्थापना करने का निर्णय लिया जो कंपनियों को रुपये में कारोबार करने में सक्षम बनाएगा।
  • हालाँकि, यह तंत्र कुछ वस्तुओं के संदर्भ में मुद्रा हस्तांतरण के डर को कम कर देगा, लेकिन तेल व्यापार सघनता से अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय तंत्र और वैश्विक भू-राजनीति से संबद्ध है, जहाँ अमेरिका हस्तक्षेप की  अभूतपूर्व क्षमता रखता है।
  • भले ही भारत-अमेरिकी संबंध सुधार के रास्ते पर हैं, लेकिन ईरान पर नए प्रतिबंधों की दशा में भारत ट्रंप प्रशासन को यह स्पष्ट संदेश दे सकता है कि भारत केवल ट्रंप प्रशासन की नाराजगी से बचने के लिये अपने वैश्विक संबंधों और व्यापार संबंधों के गुणों के स्वतंत्र मूल्यांकन के संदर्भ में समझौता नहीं करेगा।