भारत में ‘मर्सिया’ कविता की परंपरा | 28 Sep 2019

चर्चा में क्यों?

हाल ही में पूर्व उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी ने नई दिल्ली में 'दास्तान-ए-मर्सिया: कर्बला से काशी तक' समारोह को संबोधित करते हुए उर्दू कविता की मर्सिया परंपरा की प्रशंसा कर इसे 'अदब' (साहित्य) का एक महत्त्वपूर्ण हिस्सा बताया।

उर्दू कविता की मर्सिया विधा

  • मर्सिया कविता साहित्यिक अभिव्यक्ति का एक रूप है जिसका शिया मुसलमानों के लिये विशेष महत्त्व है।
  • कर्बला के ऐतिहासिक युद्ध में इमाम हुसैन के व्यक्तित्व और उनकी शहादत को समर्पित मर्सिया कविता का पाठ प्राय: मुहर्रम के महीने में किया जाता है।
  • मर्सिया शब्द का अर्थ है शोक-गीत (Elegy) अर्थात् ये मृतकों की याद में लिखे गए शोक गीत होते है।
  • मर्सिया को आमतौर पर संगीत और कविता के संयोजन से भारतीय रागों पर गाया जाता है।
  • उर्दू साहित्य में मर्सिया को मुख्य रूप से पैगंबर के दोहिते इमाम हुसैन और उनके परिवार के सदस्यों की प्रशंसा में लिखा गया है, जो 680 ईस्वी में कर्बला (वर्तमान इराक में) की लड़ाई में मारे गए थे।
  • मर्सिया कविता का ऐसा रूप है जिसमें न केवल इमाम हुसैन की शहादत और अन्य घटनाओं का ज़िक्र है बल्कि इसमें क्षमा और करुणा जैसे नैतिक आदर्शों एवं व्यवहार की भी चर्चा है।

मर्सिया परंपरा का विकास

  • मर्सिया परंपरा का प्रारंभ पहले दिल्ली और दक्कन में हुआ लेकिन लखनऊ के नवाबों के संरक्षण में यह अपने सर्वोच्च शिखर पर पहुँच गई।
  • नवाबों ने पतनशील मुगल सत्ता के समय 18वीं और 19वीं शताब्दी में इस कला को प्रोत्साहित किया।
  • 19वीं शताब्दी के मीर अनीस और मिर्ज़ा दाबीर मर्सिया के सबसे प्रतिष्ठित कवि हैं जिन्होंने छह-पंक्ति वाली छंद रचना को बढ़ावा दिया।
  • मर्सिया 7वीं शताब्दी के अरब की घटनाओं के चित्रण के लिये भी महत्त्वपूर्ण है जो दक्षिण एशिया में दर्शकों के बीच इसे लोकप्रिय बना सकता है।

स्रोत : द इंडियन एक्सप्रेस