रीम (चीन-कंबोडिया संधि) | 27 Jul 2019

चर्चा में क्यों ?

हाल ही में चीन-कंबोडिया के मध्य एक नौसैनिक समझौता हुआ, जिसमें चीन को कंबोडिया के रीम नौसैनिक अड्डे (Ream Naval Base) का इस्तेमाल करने का अधिकार प्राप्त हो गया है। हालाँकि दोनों देशों ने इस समझौते को सार्वजनिक नहीं किया है।

china & cambodia

प्रमुख बिंदु

  • चीन इस नौसैनिक अड्डे का प्रयोग 30 वर्षों के लिये कर सकेगा और इसके बाद प्रत्येक 10 वर्षों के लिए इस समझौते का स्वतः ही नवीकरण हो जाएगा।
  • समझौते के प्रारूप के अनुसार चीन इस नौसैनिक अड्डे का प्रयोग अपने नौसैनिको की तैनाती, हथियारों का भण्डारण और नौसैनिक जहाजों का लंगर डालने के लिये करेगा।
  • इस समझौते से चीन की सैन्य पहुँच थाईलैंड की खाड़ी तक हो जाएगी। इससे चीन को नौसैनिक व हवाई अड्डों के एक साथ इस्तेमाल की सुविधा मिल जाएगी तथा दक्षिण चीन सागर में इसके आर्थिक हितों व क्षेत्रीय दावों को मज़बूती मिलेगी।
  • साथ ही अमेरिका व उसके सहयोगियों के लिये भी यह एक चुनौती होगी तथा रणनीतिक रूप से महत्त्वपूर्ण मल्लका जलडमरूमध्य क्षेत्र में भी चीन के प्रभाव में वृद्धि होगी।
  • यह दक्षिण-पूर्व एशिया में चीन का पहला समर्पित नौसैनिक अड्डा होगा और वैश्विक नेटवर्क की दृष्टि से यह चीन का दूसरा प्रमुख अड्डा होगा जिसका उपयोग सैन्य व असैन्य उद्देश्यों के लिये किया जा सकेगा है।
  • इस समझौते में चीन के लोगों को हथियार और कंबोडियन पासपोर्ट ले जाने की सुविधा होगी, जबकि कंबोडियाई लोगों को रीम के 62 एकड़ चीनी भाग में प्रवेश करने के लिये चीन की अनुमति लेनी होगी।
  • अमेरिका और उसके सहयोगियों की चिंता का एक अन्य कारण रीम से मात्र 40 मील की दुरी पर चीन की कंपनी द्वारा दारा सकोर (Dara Sakor) हवाई अड्डे का निर्माण किया जाना है जो विरल जनसंख्या वाला क्षेत्र है और चीनी कंपनी ने इसे 99 साल की लीज़ पर लिया है। इस हवाईअड्डे का इस्तेमाल चीनी युद्धक विमान थाईलैंड, वियतनाम, सिंगापुर तथा आसपास के क्षेत्र पर हमले के लिये कर सकते हैं।

कम्बोडिया में चीन के सैन्य अड्डे के रणनीतिक प्रभाव

  • कम्बोडिया में चीन के सैन्य अड्डे की मौजूदगी इस क्षेत्र के और विशेष रूप से हिंद-प्रशांत क्षेत्र के शक्ति संतुलन को प्रभावित कर सकती है।
  • चीन दक्षिण-पूर्व एशिया में वार्ताओं तथा युद्ध अभ्यासों द्वारा अपने क्षेत्रीय सुरक्षा ढाँचे को निरंतर मज़बूत कर रहा है जो इस क्षेत्र की स्थिरता के लिये चिंता का कारण बन सकता है।
  • इस समझौते से दक्षिण-पूर्व एशिया की मुख्य भूमि (Main Land) पर भी तनाव व संघर्ष की स्थिति पैदा हो सकती है क्योंकि थाईलैंड और वियतनाम, जो कि इस भू-भाग के प्रमुख देश हैं, इस क्षेत्र में चीन की मौजूदगी को लेकर चिंतित हैं। वियतनाम पूर्व में भी मेकोंग उपक्षेत्र में चीन के विकास कार्यो के प्रति चिंता जाहिर कर चुका है।
  • वर्ष 2017 में चीन ने अपना पहला सैन्य अड्डा पूर्वी अफ्रीकी देश जिबूती में बनाया था, जो उसे हिंद महासागर और अफ्रीका में अपनी मौजूदगी दर्ज कराने की सुविधा प्रदान करता है। इसके साथ ही चीन ने दक्षिण चीन सागर में सात कृत्रिम द्वीपोँ का निर्माण किया है, जिनमें से तीन में हवाई पट्टियाँ भी बनाई गई हैं।

स्रौत : द वाल स्ट्रीट जर्नल