वन-चाइल्ड पॉलिसी का विकास पर सीमित प्रभाव | 24 May 2018

संदर्भ

जनसंख्या नियंत्रण के चार दशकों के बाद चीन में युवा आबादी के कम होते जाने और वृद्ध आबादी में बढ़ोतरी संबंधी चिंताएँ बढ़ने लगी हैं। पिछले कुछ दिनों में सामने आई कई रिपोर्टों में यह संभावना व्यक्त की गई है कि चीन 2019 में अपने जनसंख्या नियंत्रण संबंधी प्रावधानों को समाप्त कर सकता है। हालाँकि, इस परिवर्तन से चीन की वृद्ध होती जनसंख्या के परिदृश्य में बहुत जल्दी कोई भी बदलाव होने की संभावना न के बराबर है।

प्रमुख बिंदु 

  • चीन की कार्यशील आयुवर्ग की जनसंख्या 2014 में अपने शीर्ष स्तर पर पहुँच चुकी है।
  • चीन का यह उदाहरण अन्य विकासशील देशों के लिये काफी लाभदायक हो सकता है, जहाँ जनसंख्या नियंत्रण पर काफी जोर दिया जा रहा है।
  • चीन में वन चाइल्ड पॉलिसी वर्ष 1979 में डेंग शाओपिंग द्वारा शुरू की गई थी। उस समय चीन दुनिया की एक-चौथाई आबादी का घर था और उसके दो-तिहाई जनसंख्या की उम्र 30 वर्ष से कम थी।
  • 1960 के दशक के शुरुआती उच्च प्रजनन वर्षों के दौरान पैदा हुए बच्चे उस समय प्रजनन क्षमता वाले वर्षों (reproductive years) में प्रवेश कर रहे थे।
  • शाओपिंग ने इस अवसर को उसके द्वारा चीन में व्याप्त उच्च गरीबी को समाप्त करने हेतु लागू किये जा रहे आर्थिक सुधारों के पूरक के रूप में देखा। 
  • एक साथ इतनी बड़ी युवा आबादी चीन के तीन दशकों के आर्थिक विकास की नींव बन गई।
  • वर्ष 2011 में चीन बाजार विनिमय दर के संदर्भ में जापान को पीछे छोड़कर दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन गया। 
  • लेकिन, वर्ष 2015 में 2 बच्चे पैदा करने की छूट, आबादी नियंत्रण उपायों की संभावित समाप्ति, इस बात का मूक संकेत है कि जिस नीति ने चीन के विकास में प्रत्यक्ष योगदान दिया था, वही अब उसके लिये समस्या बनती जा रही है। 
  • 1970 के दशक के अंत में चीन की प्रजनन दर (fertility rate) लगभग 2.7 थी, जो 2015 में घटकर 1.57 हो चुकी है। यह प्रतिस्थापन दर (rate of replacement) से काफी कम है। 
  • प्रतिस्थापन दर, वह दर होती है जो जनसंख्या के आकार को स्थिर रखने के लिये आवश्यक होती है। चीन के लिये यह दर वर्तमान में 2.1 होनी चाहिये। अर्थात चीन अभी भी इस दर से 0.7 प्रतिशत अंक पीछे है। 
  • चीन की आबादी की संरचना प्रतिकूल रूप से परिवर्तित हो रही है। जो कार्यशील आयुवर्ग की जनसंख्या 2014 में शीर्ष पर पहुँच चुकी थी, वह वर्तमान में घटकर 2010 के स्तर पर पहुँच चुकी है तथा इसके 2050 तक 23 प्रतिशत तक कम होने की संभावना है।
  • दूसरी ओर, जीवन प्रत्याशा में वृद्धि का अर्थ है कि आने वाले समय में चीन में वृद्ध लोग और अधिक समय तक जीवित रहेंगे, जिससे उसकी सामाजिक सुरक्षा प्रणाली पर दबाब में वृद्धि होगी।
  • अतः सामाजिक योजनाकारों के नजरिये से आकर्षक लगने वाली चीन की ‘वन-चाइल्ड पॉलिसी’ की खामियाँ अब स्पष्ट होने लगी हैं।
  • प्रश्न उठता है कि यदि चीन की सरकार ने बच्चे पैदा करने संबंधी सीमा आरोपित न की होती, तो क्या चीन की प्रजनन दर में गिरावट आती ? 
  • दरअसल, 1970 से 1978 के मध्य चीन की आर्थिक संवृद्धि दर धीमी थी, लेकिन उसकी समग्र  प्रजनन दर 5.8 से 2.7 हो गई। इसके पीछे मुख्य कारण परिवार नियोजन अभियान था।
  • 1978 और 1995 के बीच यह दर घटकर 1.8 हो गई, लेकिन इस दौरान चीन ने तेज़ी से प्रगति की।
  • जिन देशों ने वन-चाइल्ड पॉलिसी को नहीं अपनाया था, उनमें भी प्रजनन दर में कमी आई। लेकिन इन देशों में गिरावट की दर काफी धीमी थी।
  • 2010 में दक्षिण कोरिया और थाईलैंड में प्रजनन दर चीन जितनी ही कम थी। लेकिन इनकी प्रजनन दर में देर से गिरावट के कारण इनकी कार्यशील आयुवर्ग की जनसंख्या में सतत् गिरावट आएगी। वहीं चीन में यह आगे भी तेजी से कम होगी|
  • आज या कल, जनसंख्या वृद्धावस्था की समस्या हर विकसित देश को प्रभावित करने जा रही है।
  • यूरोप में जनसंख्या में गिरावट हो रही है। साथ ही, वहाँ की सरकारें भी सामाजिक सुरक्षा जैसे कारणों से ऋण के दबाव से ग्रस्त हैं। 
  • अमेरिका की स्थिति अन्य विकसित देशों की तुलना में थोड़ी बेहतर है, क्योंकि वहाँ पर पूर्व समय से प्रवास के लिये अन्य देशों से लोग जाते रहे हैं , जिनकी प्रजनन दर सामान्यतः अधिक रहती है।

भारतीय परिप्रेक्ष्य 

  • विश्वभर में वृद्धावस्था की विशाल होती जा रही इस समस्या से यह बिलकुल स्पष्ट हो जाता है कि भारत एक बड़े जनांकिकीय लाभांश की स्थिति में है।
  • भारत की कार्यशील आयुवर्ग की जनसंख्या का भाग बढ़ता जा रहा है, जबकि चीन में स्थिति इसके बिलकुल विपरीत है।
  • लेकिन, चीन ने जहाँ अपने जनांकिकीय लाभांश के माध्यम से विनिर्माण क्षेत्र में नौकरियों में बढ़ोतरी की है, वहीं भारत में विनिर्माण क्षेत्र की नौकरियों का हिस्सा पिछले तीन दशकों से 10 प्रतिशत पर ही अटका हुआ है। 
  • भारत में औपचारिक क्षेत्र की नौकरियों में भी वृद्धि अपेक्षानुसार नहीं हो पा रही है।
  • यदि भारत ने समय रहते अपनी नीतियों में परिवर्तन नहीं किया, तो वह अपने जनांकिकीय लाभांश का पूर्ण दोहन नहीं कर पाएगा।