द ग्रीन गोल्ड कलेक्शन | 07 Jun 2021

प्रिलिम्स के लिये:

द ग्रीन गोल्ड कलेक्शन, गवर्नमेंट ई-मार्केटप्लेस

मेन्स के लिये:

राष्ट्रीय बाँस मिशन एवं इसका महत्त्व

चर्चा में क्यों?

हाल ही में भारत सरकार ने बाँस के सामानों के विपणन के लिये GeM (गवर्नमेंट ई-मार्केटप्लेस) पोर्टल पर एक विंडो 'द ग्रीन गोल्ड कलेक्शन' शुरू करने के लिये कार्य प्रारंभ किया है।

  • यह विंडो राष्ट्रीय बाँस मिशन (NBM) और GeM के सामूहिक प्रयास से शुरू किया जा रहा है।

प्रमुख बिंदु:

  • “द ग्रीन गोल्ड कलेक्शन” [https://gem.gov.in/national-bamboo-mission] के माध्यम से जीईएम पर उत्कृष्ट दस्तकारी वाले बाँस और बाँस से बने उत्पादों, हस्तशिल्प, डिस्पोज़ल और कार्यालय में उपयोग होने वाले उत्पादों का प्रदर्शन किया जाता है।
  • इसका उद्देश्य ग्रामीण क्षेत्रों में बाँस के कारीगरों, बुनकरों और उद्यमियों को सरकारी खरीदारों हेतु बाज़ार तक पहुँच प्रदान करना है।
  • यह सरकारी खरीदारों के बीच बाँस उत्पादों को अपनाने और इनके उपयोग को बढ़ावा देने तथा आत्मनिर्भर भारत के निर्माण हेतु एक स्थायी ग्रामीण अर्थव्यवस्था की शुरुआत करने का प्रयास करता है।

राष्ट्रीय बाँस मिशन:

  • लॉन्च:
    • प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में मंत्रिमंडल की आर्थिक मामलों की समिति द्वारा 14वें वित्त आयोग (2018-19 तथा 2019-20) की शेष अवधि के दौरान सतत् कृषि के लिये राष्ट्रीय मिशन (National Mission for Sustainable Agriculture - NMSA) के अंतर्गत केंद्र प्रायोजित पुर्नगठित राष्ट्रीय बाँस मिशन (National Bamboo Mission - NBM) को स्वीकृति दी गई थी। यह ‘हब एंड स्पोक’ मॉडल पर आधारित है।
      • "हब एंड स्पोक" मॉडल जिसमें मेंटर इंस्टीट्यूशन, जिसे "हब" कहा जाता है, केंद्रीकृत है और इस पर माध्यमिक शाखाओं द्वारा "स्पोक" यानी ‘मेंटी’ को प्रदान की गई सेवाओं के माध्यम से इन संस्थानों का मार्गदर्शन करने की ज़िम्मेदारी होगी।
  • उद्देश्य:
    • कृषि आय के पूरक के रूप में गैर-वन सरकारी और निजी भूमि में बाँस पौधरोपण क्षेत्र में वृद्धि करना और जलवायु परिवर्तन की दिशा में मज़बूती से योगदान करना।
    • नवाचारी प्राथमिक प्रोसेसिंग इकाइयों की स्थापना करके, शोधन तथा मौसमी पौधे लगाकर, प्राथमिक शोधन करके, संरक्षण प्रौद्योगिकी तथा बाज़ार अवसंरचना स्थापित करके फसल के बाद के प्रबंधन में सुधार करना।
    • सूक्ष्म, लघु और मझौले स्तरों पर उत्पाद के विकास को प्रोत्साहित करना और बड़े उद्योगों की पूर्ति करना।
    • भारत में अविकसित बाँस उद्योग का कायाकल्प करना।
    • कौशल विकास, क्षमता सृजन और बाँस क्षेत्र के विकास के बारे में जागरूकता को प्रोत्साहित करना।
  • नोडल मंत्रालय:
    • कृषि और किसान कल्याण मंत्रालय। 

गवर्नमेंट ई-मार्केटप्लेस:

  • GeM विभिन्न केंद्रीय और राज्य सरकार के विभागों/संगठनों/सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों (PSU) द्वारा आवश्यक सामान्य उपयोग की वस्तुओं और सेवाओं की ऑनलाइन खरीद की सुविधा के लिये वन-स्टॉप राष्ट्रीय सार्वजनिक खरीद पोर्टल है।
  • GeM पर उपलब्ध वस्तुओं और सेवाओं के लिये मंत्रालयों और केंद्रीय सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यमों (CPSEs) द्वारा वस्तुओं और सेवाओं की खरीद करना अनिवार्य है।
  • यह सरकारी उपयोगकर्त्ताओं को उनके पैसे का सर्वोत्तम मूल्य प्राप्त करने की सुविधा के लिये ई-बोली और रिवर्स ई-नीलामी के उपकरण भी प्रदान करता है।
  • वर्तमान में GeM के पास 30 लाख से अधिक उत्पाद हैं, इसके पोर्टल पर अब तक 10 लाख करोड़ रुपए का लेन-देन हो चुका है।

लॉन्च;

  • इसे वर्ष 2016 में सरकारी खरीद प्रक्रिया में पारदर्शिता और दक्षता लाने के लिये लॉन्च किया गया था।

नोडल मंत्रालय:

  • वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय

बाँस:

  • विश्व बाँस संगठन द्वारा 18 सितंबर को विश्व बाँस दिवस के रूप में मनाया जाता है।
  • स्टेट ऑफ एन्वायरनमेंट रिपोर्ट 2018 के अनुसार, भारत चीन के बाद दुनिया में दूसरा सबसे बड़ा बाँस की खेती करने वाला देश है, इसकी 136 प्रजातियाँ और 23 वंश 13.96 मिलियन हेक्टेयर में फैले हुए हैं।
  • बाँस को प्रायः ‘हरा सोना’ नाम से जाना जाता है, यह भारत में हर जगह पाया जाता है।
  • इसे 'गरीब आदमी की लकड़ी' के रूप में जाना जाता है, बाँस आदिवासी संस्कृतियों और सामुदायिक जीवन में सर्वव्यापी स्थान रखता है। ग्रामीण समुदाय प्रायः बाँस हस्तशिल्प, वस्त्र, कलाकृतियों और घरेलू उपयोगिताओं में संलग्न होते हैं।
    • उदाहरणों में त्रिपुरा बाँस रेशम, भुना हुआ और मसालेदार बाँस व्यंजन, असमिया 'जापी' (बाँस, बेंत और हथेली से बने) जैसे सांस्कृतिक प्रतीक, व्यापक रूप से लोकप्रिय बाँस के पेड़ के घर, मचान, आधुनिक टिकाऊ वास्तुशिल्प अवधारणाओं और संगीत वाद्ययंत्र आदि।
  • नई पहल: राष्ट्रीय बाँस मिशन के तहत बाँस समूह को 'वृक्ष' श्रेणी से हटाना (भारतीय वन अधिनियम 1927 को 2017 में संशोधित किया गया था)।

स्रोत-पीआईबी