सार्वजनिक व सत्यापित वन आवरण डेटा की उपलब्धता | 02 Mar 2023

प्रिलिम्स के लिये:

वृक्षावरण, वनावारण, भारत वन रिपोर्ट-2021, भारतीय वन सर्वेक्षण, वन (संरक्षण) नियम, 2022

मेन्स के लिये:

भारत वन रिपोर्ट-2021, भारत में वनों से संबंधित मुद्दे, वन संरक्षण के लिये सरकारी पहल

चर्चा में क्यों? 

वर्ष 2010 और 2020 के बीच औसत शुद्ध वन लाभ के मामले में भारत ने विश्व स्तर पर तीसरा स्थान प्राप्त किया, लेकिन इस क्षेत्र के विशेषज्ञों और जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क अभिसमय (United Nations Framework Convention on Climate Change -UNFCCC) ने भारत द्वारा वृक्षारोपण एवं प्राकृतिक वनों के आँकड़ों को मिश्रित किये जाने के कारण वन संबंधी डेटा की वैधता पर सवाल उठाया है।

  • भारत का वन आवरण वर्ष 1980 के दशक के 19.53% से बढ़कर वर्ष 2021 में 21.71% हो गया है और वृक्षों सहित इसका कुल हरित आवरण अब 24.62% है।

हरित आवरण (Green Cover) के आकलन की प्रक्रिया: 

  • परिचय: 
    • भारतीय वन सर्वेक्षण (Forest Survey of India- FSI) अपनी द्विवार्षिक भारत वन स्थिति रिपोर्ट (India State of Forest Report - ISFR) में देश के 'वन आवरण' और 'वृक्ष आवरण' की नवीनतम स्थिति प्रस्तुत करता है।
      • FSI पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (MoEFCC) के तहत एक संगठन है।
    • भारत एक हेक्टेयर या उससे अधिक के सभी भूखंडों में न्यूनतम 10% वृक्ष आवरण वाले क्षेत्र, चाहे वह भूमि उपयोग के लिये हो अथवा स्वामित्त्व वाली, को वन आवरण के तहत मानता है।
      • यह संयुक्त राष्ट्र के बेंचमार्क की अवहेलना करता है जिसमें वनों में मुख्य रूप से कृषि और शहरी भूमि उपयोग के तहत क्षेत्र शामिल नहीं हैं।
  • वर्गीकरण: 
    • अति सघन वन: 70% या अधिक वृक्ष आवरण घनत्त्व वाली भूमि।
    • घने वन: 40% और उससे अधिक वृक्ष आवरण घनत्त्व वाले सभी भूमि क्षेत्र।
    • खुले वन: 10-40% के बीच वृक्ष आवरण घनत्त्व वाले सभी भूमि क्षेत्र
    • वृक्ष आवरण (Tree Cover): वृक्ष आवरण की गणना किसी समूह अथवा अलग-थलग क्षेत्र में सभी पेड़ों के शीर्ष भाग का आकलन करते हुए की जाती है जो आकार में 1 हेक्टेयर से छोटे होते हैं और इसे वन की श्रेणी में नहीं रखा जाता है।

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  • वैश्विक मानक:  
    • संयुक्त राष्ट्र के खाद्य और कृषि संगठन (Food and Agriculture Organisation- FAO) द्वारा "वन" हेतु वैश्विक मानक प्रदान किया गया है, जिसके अनुसार, कम-से- कम 1 हेक्टेयर भूमि जिसमें न्यूनतम 10% वृक्ष वितान (Canopy) का आवरण हो।
    • इसमें वन में "मुख्य रूप से कृषि या शहरी भूमि उपयोग के तहत" क्षेत्रों को शामिल नहीं किया गया है।

भारत में वनों की स्थिति:

  • राष्ट्रीय सुदूर संवेदन एजेंसी (National Remote Sensing Agency- NRSA) बनाम FSI: 
    • NRSA ने भारत के वन आवरण का अनुमान लगाने हेतु उपग्रह इमेजरी का उपयोग किया, जिसमें पाया गया कि यह वर्ष 1971-1975 में 16.89% और 1980-1982 में 14.10% हो गया अर्थात् केवल सात वर्षों में 2.79% की गिरावट आई।
    • सरकारी रिकॉर्ड बताते हैं कि वर्ष 1951 और 1980 के बीच 42,380 वर्ग किमी. वन भूमि को गैर-वन उपयोग हेतु परिवर्तित किया गया था, हालाँकि अतिक्रमण के विश्वसनीय आँकड़े उपलब्ध नहीं हैं।
    • सरकार शुरू में NRSA के निष्कर्षों को स्वीकार करने हेतु अनिच्छुक थी, लेकिन संवाद के बाद NRSA और नव स्थापित FSI ने वर्ष 1987 में भारत के वन आवरण को 19.53% ‘स्वीकार’ (Reconciled)" कर लिया।
  • पुराने वन क्षेत्र में कमी: 
    • रिकॉर्ड किये गए वन क्षेत्र में आरक्षित, संरक्षित और अवर्गीकृत वन भारत के कुल वन क्षेत्र का 23.58% है।
      • ये राजस्व रिकॉर्ड में वन के रूप में दर्ज या वन कानून के तहत वन के रूप में घोषित क्षेत्र हैं।
    • वर्ष 2011 में FSI ने बताया कि लगभग एक-तिहाई (2.44 लाख वर्ग किमी. से अधिक, उत्तर प्रदेश के क्षेत्र से बड़ा या भारत का 7.43%) रिकॉर्ड किये गए वन क्षेत्रों में कोई वन नहीं था और वे अतिक्रमण, परिवर्तन, वनाग्नि आदि के कारण नष्ट हो गए थे।
  • प्राकृतिक वन क्षेत्रों में कमी: 
    • रिकॉर्ड किये गए वन क्षेत्रों के भीतर घने वन वर्ष 1987 में 10.88% से घटकर वर्ष 2021 में 9.96% अर्थात् दसवाँ हिस्सा रह गए।
    • ग्लोबल फाॅरेस्ट वॉच के अनुसार, भारत में वर्ष 2010 और 2021 के बीच प्राकृतिक वन क्षेत्र में 1,270 वर्ग किमी. की कमी आई।
      • हालाँकि FSI ने इसी अवधि के दौरान घने वन क्षेत्र में 2,462 वर्ग किमी. और समग्र वन क्षेत्र में 21,762 वर्ग किमी. की वृद्धि दर्ज की।

वर्तमान वन आवरण डेटा से संबंधित मुद्दे:

  • वन डेटा में वृक्षारोपण का समावेश:
    • वृक्षारोपण, बागानों और शहरी आवासों को घने जंगलों के रूप में शामिल किये जाने के कारण, प्राकृतिक वनों की हानि पर ध्यान नहीं दिया जाता है।
      • उदाहरण के लिये SFR 2021 ने किसी भी हरित क्षेत्र को सम्मिलित करते हुए सघन वनों का आवरण 12.37% दर्शाया है।
    • वृक्षारोपण वाले वनों में एक समान आयु वर्ग के वृक्ष होते हैं जो आगजनी, कीट और प्रकोप के प्रति अधिक संवेदनशील होते हैं तथा प्रायः प्राकृतिक वनों के पुनरुथान में बाधा के रूप में कार्य करते हैं। 
    • प्राकृतिक वन पुराने होते हैं, अतः इन वनों में और वहाँ की मृदा में बहुत अधिक कार्बन संचित होता है तथा वे अधिक जैव-विविधता का पोषण करते हैं।
    • पुराने प्राकृतिक वनों की तुलना में वृक्षारोपण से वन बहुत अधिक तीव्रता से वृद्धि कर सकते हैं जिसका अर्थ है कि वृक्षारोपण अतिरिक्त कार्बन लक्ष्यों को तेज़ी से प्राप्त कर सकता है।  
      • हालाँकि जब प्राकृतिक वनों की तुलना में वृक्षारोपण संबंधी वन तेज़ी से नष्ट किये जाते हैं तो दीर्घकालिक कार्बन उत्सर्जन लक्ष्य प्राप्ति में अधिक समय लगता है।

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  • पारदर्शी और सहभागी डेटा का अभाव: 
    • FSI ने कभी भी अपने डेटा को स्वतंत्र रूप से सार्वजनिक समीक्षा के लिये उपलब्ध नहीं कराया।
    • बिना किसी स्पष्टीकरण के यह मीडिया को अपने भू-संदर्भित मानचित्रों तक पहुँचने से भी रोकती है। 
    • वर्ष 2021 में इसने गैर-वनों के साथ वनों की पहचान करने में 95.79% की समग्र सटीकता स्थापित करने का दावा किया था। यद्यपि सीमित संसाधनों को देखते हुए यह प्रयास 6,000 सैंपल अंकों से भी कम तक सीमित था। 
  • वन भूमि का परिवर्तन/विचलन: 
    • वर्ष 1980 में वन संरक्षण अधिनियम लागू होने के बाद से विकास परियोजनाओं के लिये कम-से-कम 10,000 वर्ग किमी. वनों का विचलन कर दिया गया है।  
    • हाल में अधिनियम के तहत वन (संरक्षण) नियम, 2022 आवेदन के दायरे को सीमित करने, वनों को काटने के लिये अनुमति की आवश्यकता जैसी कुछ गतिविधियों को छोड़ने और वन भूमि पर निजी वृक्षारोपण आदि की अनुमति देने की मांग करते हैं।
    • भले ही देश ने 2017-2021 के दौरान 700 वर्ग किमी. से अधिक वन भूमि को डायवर्ट किया हो, फिर भी वर्ष 2019 के बाद से प्रतिवर्ष 145.6 मिलियन टन कार्बन डाइऑक्साइड के बराबर कार्बन स्टॉक बढ़ता जा रहा है। 
      • FSI ने अनुमान लगाया कि भारत वन कार्बन सिंक बढ़ाने के लिये अतिरिक्त उपायों को लागू किये बिना वर्ष 2030 तक अतिरिक्त वन और वृक्ष आवरण के माध्यम से 2.5 से 3 बिलियन टन कार्बन डाइऑक्साइड के बराबर अतिरिक्त कार्बन सिंक की अपनी कार्बन प्रतिबद्धता को आसानी से प्राप्त  कर लेगा। 
  • आवासीय और शहरी क्षेत्रों का समावेश: 
    • कुछ स्वतंत्र जाँचों के अनुसार, मंत्रियों और वरिष्ठ अधिकारियों के बंगले, यहाँ तक कि संसद मार्ग पर भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) की इमारत, भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (IIT) तथा अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (AIIMS) के परिसरों के कुछ हिस्से एवं दिल्ली के कुछ आवासीय क्षेत्र आधिकारिक वन कवर मानचित्र में ‘वन’ के रूप में सूचीबद्ध हैं। 

आगे की राह

  • डेटा पारदर्शिता: यह महत्त्वपूर्ण है कि नक्शों को जाँच के लिये सार्वजनिक डोमेन में उपलब्ध कराया जाए। हम ब्राज़ील का उदाहरण ले सकते हैं, जो अपने वन डेटा को ओपन वेब पर उपलब्ध कराता है।
  • व्यापक मूल्यांकन: चूँकि वन सर्वेक्षण रिपोर्ट द्वि-वार्षिक रूप से प्रकाशित होती है; अतः इसे जल्दबाज़ी में तैयार किया जाता है। आवशयक है कि रिपोर्ट को हर 5 वर्ष में व्यापक मूल्यांकन के साथ प्रदर्शित किया जाए।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रश्न. भारत के वन संसाधनों की स्थिति और जलवायु परिवर्तन पर इसके परिणामी प्रभावों का परीक्षण कीजिये। (2020)

प्रश्न. "विभिन्न प्रतियोगी क्षेत्रों और साझेदारों के मध्य नीतिगत विरोधाभासों के परिणामस्वरूप ‘पर्यावरण के संरक्षण तथा उसके निम्नीकरण की रोकथाम’ अपर्याप्त रही है।" सुसंगत उदाहरणों सहित टिप्पणी कीजिये। (2018)

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस