फ्रेंड्स ऑफ पुलिस: अवधारणा और महत्त्व | 06 Jul 2020

प्रीलिम्स के लिये

फ्रेंड्स ऑफ पुलिस

मेन्स के लिये

सामुदायिक पुलिस व्यवस्था का महत्त्व और इसकी चुनौतियाँ

चर्चा में क्यों?

तमिलनाडु में ‘फ्रेंड्स ऑफ पुलिस’ (Friends of Police-FoP) की सेवाओं को अगली सूचना तक निलंबित कर दिया गया है। राज्य सरकार ने यह निर्णय पुलिस द्वारा हिरासत में लिये गए दो व्यापारियों की मृत्यु (Custodial Death) और यातना की घटना के बाद लिया है, क्योंकि जाँच के दौरान इस घटना में कुछ फ्रेंड्स ऑफ पुलिस (FoP) स्वयंसेवकों की भूमिका भी पाई गई है।

प्रमुख बिंदु

  • दरअसल तमिलनाडु पुलिस ने दोनों लोगों को 19 जून की रात कथित तौर पर COVID-19 लॉकडाउन के दौरान अपनी दुकानों को अनुमति की अवधि से अधिक समय के लिये खोलने हेतु गिरफ्तार किया था।
  • गिरफ्तारी के पश्चात् पुलिस ने दोनों लोगों को बेरहमी से पीटा और हिरासत में रहते हुए पुलिसकर्मियों द्वारा उन्हें अत्यधिक यातनाएँ दी गईं, इसके बाद दोनों लोगों को पास के सरकारी अस्पताल में भर्ती करवाया गया और कुछ समय बाद उनकी मृत्यु हो गई।
  • तमिलनाडु की अपराध जाँच शाखा द्वारा दोनों लोगों की पुलिस यातना के कारण हुई मृत्यु की जाँच करने पर कुछ FoP स्वयंसेवकों की भूमिका भी सामने आई है, जो दैनिक कार्यों में पुलिस अधिकारियों की सहायता कर रहे थे।

‘फ्रेंड्स ऑफ पुलिस’ की अवधारणा

  • फ्रेंड्स ऑफ पुलिस (FoP) एक सामुदायिक पुलिसिंग पहल और एक संयुक्त सरकारी संगठन (JGO) है जिसका उद्देश्य पुलिस और जनता को करीब लाना है।
  • एक स्वयंसेवा प्रणाली के रूप में फ्रेंड्स ऑफ पुलिस (FoP) की शुरुआत वर्ष 1993 में तमिलनाडु के रामनाथपुरम ज़िले से हुई थी।
  • एक अनुमान के अनुसार, पूरे तमिलनाडु के सभी पुलिस थानों में लगभग 4000 सक्रिय FoP स्वयंसेवी सदस्य हैं।
  • FoP स्वयंसेवी राज्य के आम लोगों में अपराध जागरूकता को बढ़ावा देने में मदद करते हैं और राज्य पुलिस प्रशासन को अपराधों की रोकथाम में सक्षम बनाते हैं। 
  • इसके साथ ही यह पुलिस के काम में निष्पक्षता, पारदर्शिता और तटस्थता लाने का भी प्रयास करते हैं।

‘फ्रेंड्स ऑफ पुलिस’ (FoP) का उद्देश्य

  • पुलिस सेवाओं को समुदाय में रहने वाले आम लोगों तक पहुँचाना।
  • आम लोगों को सामुदायिक पुलिसिंग में भाग लेने के लिये प्रोत्साहित करना।
  • पुलिस और समुदाय को एक साथ एक मंच पर लाना।
  • राज्य की पुलिस सेवा को और अधिक पेशेवर तथा समुदाय उन्मुख बनाना।
  • पुलिस अधिकारियों को राज्य के साथ-साथ समुदाय के प्रति भी जवाबदेह बनाना।
  • पुलिस में जनता के खोए हुए विश्वास को बहाल करने में सहायता करना।

‘फ्रेंड्स ऑफ पुलिस’ अवधारणा का महत्त्व

  • विशेषज्ञ मानते हैं कि सामुदायिक पुलिसिंग के रूप में ‘फ्रेंड्स ऑफ पुलिस’ (FoP) की अवधारणा एक समग्र रूप से उपयोगी अवधारणा है।
  • साथ ही आम जनता के बीच पुलिस की छवि को बदलने तथा राज्य के पुलिस बल को मज़बूत करने हेतु यह अवधारणा काफी उपयोगी साबित हो रही है।
  • इस अवधारणा को राज्य के पुलिस बल और आम जनता के बीच एक सेतु के रूप में प्रयोग किया जा सकता है।

‘फ्रेंड्स ऑफ पुलिस’ की आलोचना

  • राज्य के कई वरिष्ठ अधिकारियों का मानना है कि राज्य के छोटे शहरों और ग्रामीण क्षेत्रों में व्यापक रूप से ‘फ्रेंड्स ऑफ पुलिस’ (FoP) स्वयंसेवकों की कार्यक्षमता का दुरुपयोग किया जा रहा है, जहाँ पुलिस अधिकारी FOP स्वयंसेवकों को एक सहायक के रूप में देखते हैं।
    • इन क्षेत्रों में FOP स्वयंसेवकों का प्रयोग केवल चाय या भोजन खरीदने, वाहन की जाँच में मदद करने, ज़ब्त वाहनों को थाने तक ले जाने और स्थानीय लोगों को अवैध रूप से हिरासत में लेने के लिये ही किया जाता है, जहाँ वे अधिकारियों के आदेश मानने हेतु बाध्य होते हैं।

सामुदायिक पुलिस व्यवस्था और इसका महत्त्व

  • सामुदायिक पुलिस व्यवस्था, पुलिस के कार्यों में नागरिकों की भागीदारी बढ़ाने का एक तरीका है। इसके तहत एक ऐसे वातावरण का निर्माण किया जाता है, जिसमें आम नागरिक समुदाय की सुरक्षा में अपनी भागीदारी सुनिश्चित करते हैं।
  • सामुदायिक पुलिसिंग से अपराधों की सुभेद्यता की पहचान करना संभव हो जाता है। नशीली दवाओं के दुरुपयोग, मानव तस्करी और अन्य संदिग्ध गतिविधियों की पहचान कर उनके विरुद्ध कार्यवाही करना भी अपेक्षाकृत आसान हो जाता है।
  • गौरतलब है कि भारत के कई राज्यों ने सामुदायिक पुलिस व्यवस्था स्थापित करने का प्रयास किया है, जिसमें तमिलनाडु के ‘फ्रेंड्स ऑफ पुलिस’ (FoP), असम में ‘प्रहरी’ (Prahari) और बंगलुरु सिटी पुलिस की ‘स्पंदन’ (Spandana) नामक पहल शामिल हैं।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस