हस्तशिल्प उद्योग के मज़बूतीकरण का प्रयास | 16 Oct 2017

चर्चा में क्यों?

केंद्रीय वस्त्र मंत्रालय द्वारा 11 दिवसीय ‘हस्तकला सहयोग शिविर’ का आयोजन किया जा रहा है। 7 अक्तूबर से शुरू हुए ये शिविर देश के हर कोने में लगाए जा रहे हैं। यह पहल पंडित दीनदयाल की जन्म शताब्दी के मौके पर आयोजित ‘पंडित दीनदयाल उपाध्याय गरीब कल्याण वर्ष’ के लिये समर्पित है।

क्यों महत्त्वपूर्ण है हस्तशिल्प उद्योग?

  • भारत हस्त निर्मित वस्त्रों और हस्तशिल्प के मामले में खासा समृद्ध है, जिसको लेकर उसे न केवल घरेलू स्तर पर बल्कि विदेश से भी सराहना मिलती रही है और खरीदार भी इनकी ओर आकर्षित होते रहे हैं।
  • भारत में आंध्र प्रदेश और ओडिशा की इकात साड़ी, गुजरात की पाटन पटोलास, उत्तर प्रदेश की बनारसी साड़ी, मध्य प्रदेश की माहेश्वरी या तमिलनाडु की काष्ठ या पत्थर से बनी मूर्तिकारी के अलावा भी काफी कुछ मौजूद है, जिन्हें दुनिया में हथकरघा और हस्तशिल्प के मामले में अलग पहचान मिली हुई है।
  • देश की अर्थव्यवस्था में हथकरघा और हस्तशिल्प क्षेत्र के योगदान को स्वीकारते हुए इन्हें बढ़ावा दिया जा रहा है। इन दोनों क्षेत्रों से देश को बड़ी मात्रा में विदेशी मुद्रा भी प्राप्त होती है। हथकरघा क्षेत्र को बढ़ावा देने के क्रम में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 7 अगस्त, 2015 को पहले राष्ट्रीय हथकरघा दिवस के तौर पर मनाने की घोषणा की थी।
  • हथकरघा और हस्तशिल्प क्षेत्र देश के सबसे ज़्यादा रोज़गार देने वाले क्षेत्रों में शामिल हैं। वस्त्र मंत्रालय की वित्त वर्ष 2016-17 की सालाना रिपोर्ट के मुताबिक हथकरघा और हस्तशिल्प क्षेत्रों ने क्रमशः 43.31 लाख और 68.86 लाख लोगों को रोज़गार उपलब्ध कराया है।

भारतीय हस्तशिल्प उद्योग की चुनौतियाँ 

  • भारत में बुनकरों और कारीगरों को वस्त्र और हथकरघा की समृद्ध विविधता के निर्माण के लिये कड़ी मशक्कत करनी होती है। कपड़ों की बुनकरी और हस्तशिल्प के माध्यम से उन्हें होने वाली कमाई उनकी मेहनत, कौशल और कच्चे माल की लागत के अनुरूप नहीं होती है।
  • मुख्य रूप से ग्रामीण भारत पर आधारित बुनकरों और कारीगरों के लिये अपने उत्पादों को बाज़ार में सही जगह दिलाना भी मुश्किल होता है। इस क्रम में वे अपने उत्पादों को बेचने के लिये बिचौलियों पर निर्भर हो जाते हैं, जो अच्छा खासा लाभ कमाते हैं और बुनकरों व कारीगरों के हाथ में उचित कीमत की बजाय मामूली पारिश्रमिक ही आ पाता है।

वर्तमान प्रयास में क्या?

  • बुनकरों और कारीगरों के सामने मौजूद इन तमाम चुनौतियों को दूर करने के क्रम में केंद्रीय वस्त्र मंत्रालय ने कई कदम उठाए हैं और इन्ही उपायों के तहत मंत्रालय वर्तमान में 11 दिवसीय ‘हस्तकला सहयोग शिविर’ का आयोजन कर रहा है।
  • इन शिविरों का आयोजन देश के 200 से ज़्यादा हथकरघा क्लस्टरों और बुनकर सेवा केंद्रों के साथ ही 200 हस्तशिल्प क्लस्टरों में भी किया जा रहा है। बड़ी संख्या में बुनकरों और कारीगरों तक पहुँच बनाने के लिये इनका आयोजन 228 ज़िलों के 372 स्थानों पर हो रहा है।
  • हस्तकला सहयोग शिविरों के माध्यम से देश के 421 हथकरघा-हस्तशिल्प क्लस्टरों के 1.20 लाख से ज़्यादा बुनकरों/कारीगरों को फायदा होगा।
  • बुनकरों और कारीगरों को कर्ज़ जुटाने के लिये खासी मुश्किलों का सामना करना पड़ता है, जो कच्चे माल की खरीद हेतु आवश्यक है। इन समस्याओं के समाधान हेतु आयोजित शिविरों में बुनकरों और कारीगरों को मुद्रा योजना के माध्यम से कर्ज़ सुविधा उपलब्ध कराई जा रही है।

क्यों महत्त्वपूर्ण है यह प्रयास?

  • इसके अलावा इन शिविरों में भाग लेने वालों को हथकरघा संवर्द्धन सहायता के अंतर्गत तकनीक में सुधार और आधुनिक औज़ार व उपकरण खरीदने में सहायता दी जाएगी।
  • हथकरघा योजना के अंतर्गत सरकार 90 प्रतिशत लागत का बोझ उठाकर बुनकरों को नए करघे खरीदने में सहायता करती है। एक अहम बात यह भी है कि शिविरों में बुनकरों और कारीगरों को पहचान कार्ड भी जारी किए जाएंगे।
  • बुनकरों और कारीगरों के निर्मित उत्पादों को बाज़ार तक पहुँचाने में आने वाली दिक्कतों को देखते हुए कुछ शिविरों में निर्यात/शिल्प बाज़ार/बायर-सेलर्स मीट भी कराई जा रही हैं।
  • इन शिविरों की एक और अहम बात यह है कि बुनकरों को यार्न (धागा या सूत) पासबुक भी जारी की जा रही है, क्योंकि बुनकरों के लिये यार्न एक अहम कच्चा माल है।
  • इसके अलावा बुनकरों और कारीगरों के बच्चों के लिये शिक्षा की अहमियत को देखते हुए शिविरों में राष्ट्रीय मुक्त विद्यालयी शिक्षा संस्थान (एनआईओएस) और इग्नू द्वारा चलाए जा रहे पाठ्यक्रमों में नामांकन कराने में सहयोग दिया जाएगा।