सतत् विकास प्रकोष्ठ | 04 Jan 2020

प्रीलिम्स के लिये:

सतत् विकास प्रकोष्ठ तथा संबंधित मंत्रालय।

मेन्स के लिये:

खनन कार्यों का पर्यावरण पर प्रभाव तथा सतत् विकास प्रकोष्ठ की उपयोगिता।

चर्चा में क्यों?

केंदीय कोयला मंत्रालय (Ministry of Coal) ने सतत् विकास प्रकोष्ठ (Sustainable Development Cell-SDC) स्थापित करने का निर्णय लिया है।

महत्त्वपूर्ण बिंदु

  • प्रकोष्ठ का उद्देश्य देश में पर्यावरणीय रूप से सतत् कोयला खनन को बढ़ावा देना और खानों के कार्यशील न होने या बंद होने की स्थिति में पर्यावरण को होने वाले नुकसान से निपटना है।
  • यह निर्णय इस दृष्टि से भी महत्त्वपूर्ण है कि भविष्य में बहुत सी निजी कंपनियाँ कोयला खनन से जुड़ेंगी। ऐसे में आवश्यक है कि खानों के उचित पुर्नवास के लिये वैश्विक सर्वोत्तम अभ्यासों के अनुरूप दिशा-निर्देश तैयार किये जाएँ।

सतत् विकास प्रकोष्ठ की भूमिका

  • सतत् विकास सेल (SDC) कोयला कंपनियों को सलाह देगा, योजना तैयार करेगा और सतत् तरीके से उपलब्ध संसाधनों का अधिकतम उपयोग सुनिश्चित करने, खनन के प्रतिकूल प्रभाव को कम करने और भविष्य में पारिस्थितिकी तंत्र सेवाओं पर पड़ने वाले इन प्रभावों में कमी के लिये कंपनियों द्वारा उठाए गए कदमों की निगरानी करेगा।
  • उपरोक्त मामले में कोयला मंत्रालय एक नोडल केंद्र के रूप में कार्य करेगा। यह सेल माइन क्लोज़र फंड सहित पर्यावरणीय शमन उपायों के लिये भविष्य की नीति की रूपरेखा भी तैयार करेगा।
  • इस संबंध में प्रकोष्ठ कोयला मंत्रालय के नोडल प्वाइंट के रूप में काम करेगा। प्रकोष्ठ पर्यावरणीय क्षति को कम करने के उपायों पर एक नीतिगत फ्रेमवर्क तैयार करेगा।

प्रकोष्ठ के कार्य: SDC के प्रमुख कार्य इस प्रकार होंगे:

  • आँकड़ों का संग्रह
  • आँकड़ों का विश्लेषण
  • सूचनाओं की प्रस्तुति
  • सूचना आधारित योजना तैयार करना
  • सर्वोत्तम अभ्यासों को अपनाना
  • परामर्श, नवोन्मेषी विचार, स्थल विशेष दृष्टिकोण के आधार पर ज्ञान को साझा करना तथा लोगों और समुदायों के जीवन को आसान बनाना।

उपरोक्त सभी कार्य योजनाबद्ध तरीके से विभिन्न चरणों में पूरे किये जाएंगे।

चरण-I: भूमि को बेहतर बनाना और वनीकरण

  • भारत में लगभग 2550 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में कोयले की खदाने हैं। इन खदानों से संबंधित सभी प्रकार के आँकड़े, मानचित्र आदि GIS आधारित प्लेटफॉर्म के ज़रिये एकत्रित किये जाएंगे। GIS संबंधी सभी गतिविधियाँ CMPDIL द्वारा की जाएंगी।
  • कोयला कंपनियों को उन क्षेत्रों की जानकारी दी जाएगी जहाँ वृक्ष लगाए जा सकते हैं। खनन क्षेत्र की ज़मीन पर कृषि, बागवानी, नवीकरणीय ऊर्जा, नई टाउनशिप, पुनर्वास आदि की संभावनाओं की भी जाँच की जाएगी।

चरण-II: हवा की गुणवत्ता, उत्सर्जन और ध्वनि प्रवर्द्धन

  • SDC खनन गतिविधियों, HEM (Heavy Earth Moving) मशीनों, कोयले के परिवहन आदि के कारण होने वाले वायु और ध्वनि प्रदूषण से संबंधित पर्यावरणीय शमन उपायों (पानी का छिड़काव, धूल को दबाने के तरीके, ध्वनि अवरोधन आदि) के प्रभावी कार्यान्वयन के लिये कोयला कंपनियों को सलाह देगा।
  • विभिन्न कंपनियों के पर्यावरण प्रबंधन योजनाओं (Environment Management Plans- EMP) का विश्लेषण तथा इन योजनाओं को और अधिक प्रभावी बनाने के लिये कोयला कंपनियों को सलाह देगा।

चरण-III: खान जल प्रबंधन

  • कोयला खानों के संदर्भ में जल की मात्रा, गुणवत्ता, भूतल पर जल प्रवाह, खान के जल को बाहर निकालना, भविष्य में जल उपलब्धता से संबंधित आँकड़ों को संगृहीत किया जाएगा।
  • आँकड़ों के विश्लेषण के आधार पर कोयला खान जल प्रबंधन योजनाएँ (Coal Mine Water Management Plans- CMWMP) तैयार की जाएंगी।
  • इसके आधार पर जल के भंडारण, शोधन और पुनः प्रयोग के तरीकों के बारे में सलाह दी जाएगी ताकि इसका उपयोग सिंचाई, मछली-पालन, पर्यटन या उद्योग के लिये किया जा सके।

चरण-IV: अत्यधिक उपयोग किये जाने वाले खानों का सतत् प्रबंधन

  • SDC खानों की व्यवहार्यता की भी जाँच करेगा और अधिक बोझ वाले डंपों के पुन: उपयोग, पुनर्चक्रण और पुनर्वास के उपाय सुझाएगा।
  • अतिव्याप्त सामग्रियों की जाँच करेगा तथा विभिन्न अवसंरचना परियोजनाओं में इन सामग्रियों के उपयोग के लिये योजना तैयार करेगा।

चरण-V: सतत् खान पर्यटन

  • पर्यटन को बढ़ावा देने के उद्देश्य से पुनर्गठित क्षेत्रों का सुंदरीकरण, इको पार्क की स्थापना और जलाशयों आदि का निर्माण किया जाएगा।

चरण-VI: योजना तैयार करना और निगरानी

  • SDC विभिन्न कंपनियों के खान बंद करने की योजनाओं का विश्लेषण करेगा तथा इन योजनाओं के क्रियान्वयन को अधिक प्रभावी बनाने के संबंध में परामर्श देगा।
  • यह चरणबद्ध तरीके से सभी खानों में विभिन्न शमन गतिविधियों/परियोजनाओं के निष्पादन के लिये समय-सीमा तय करने में कोयला कंपनियों की मदद करेगा।
  • विभिन्न कोयला कंपनियों के माइन क्लोज़र फंड (Mine Closure Fund) और पर्यावरण बजट (Environment Budgets) के प्रभावी उपयोग की निगरानी की जाएगी।
  • माइन क्लोज़र प्लान, माइन क्लोज़र फंड आदि के लिये भविष्य के दिशा-निर्देश तैयार किये जाएंगे।

चरण-VII: नीति, शोध, शिक्षा और विस्तार

  • विशेष शोध और अध्ययन के लिये विशेषज्ञों/संस्थानों/संगठनों को नियुक्त किया जाएगा।
  • सलाहकार बैठकों, कार्यशालाओं, सेमिनार, क्षेत्र निरीक्षण, स्टडी टूर आदि का आयोजन किया जाएगा।

स्रोत: pib