सबरीमाला मामला | 15 Nov 2019

प्रीलिम्स के लिये: सबरीमाला मंदिर, केरल हिंदू प्लेस ऑफ पब्लिक वर्शिप रूल, समानता का अधिकार

मेन्स के लिये: सबरीमाला मंदिर तथा महिलाओं के अधिकार से जुड़े मामले, धार्मिक स्थलों पर महिलाओं के प्रवेश से जुड़े मामले

चर्चा में क्यों?

सर्वोच्च न्यायालय ने 14 नवंबर 2019 को केरल के सबरीमाला मंदिर में महिलाओं के प्रवेश के संबंध में गत वर्ष यानी वर्ष 2018 में दिये गए निर्णय के विरुद्ध दर्ज की गई पुनर्विचार याचिका को पाँच जजों की पीठ ने सात जजों की बड़ी पीठ के पास भेज दिया है।

प्रमुख बिंदु

  • पुनर्विचार याचिका पर सुनवाई करने वाली पाँच न्यायाधीशों की पीठ की अध्यक्षता सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई द्वारा की गई। ध्यातव्य है कि सर्वोच्च न्यायालय ने फरवरी 2019 में ही पुनर्विचार याचिका की सुनवाई करने के बाद फैसला सुरक्षित रख लिया था।
  • इससे पहले सर्वोच्च न्यायालय ने सबरीमाला मंदिर में महिलाओं के प्रवेश पर लगी पाबंदी हटा दी थी।

वर्ष 2018 में सर्वोच्च न्यायालय का फैसला

  • सर्वोच्च न्यायालय ने केरल के सबरीमाला मंदिर में महिलाओं के प्रवेश के मुद्दे पर ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए हर उम्र की महिला को मंदिर में प्रवेश करने की अनुमति दे दी थी।
  • 4:1 के बहुमत से हुए फैसले में पाँच जजों की संविधान पीठ ने स्पष्ट किया था कि हर उम्र की महिलाएँ सबरीमाला मंदिर में प्रवेश कर सकेंगी।
  • इसके साथ ही सर्वोच्च न्यायालय ने केरल उच्च न्यायालय की एक खंडपीठ द्वारा वर्ष 1991 में दिये गए उस फैसले को भी निरस्त कर दिया था जिसमें कहा गया था कि सबरीमाला मंदिर में महिलाओं को प्रवेश करने से रोकना असंवैधानिक नहीं है।
  • सर्वोच्च न्यायालय ने ‘केरल हिंदू प्लेस ऑफ पब्लिक वर्शिप रूल’, 1965 (Kerala Hindu Places of Public Worship Rules, 1965) के नियम संख्या 3 (b) जो मंदिर में महिलाओं के प्रवेश पर प्रतिबंध लगाता है को संविधान की कानूनी शक्ति से परे घोषित कर दिया था।

सबरीमाला कार्यसमिति का पक्ष

  • सबरीमाला कार्यसमिति ने आरोप लगाया था कि सर्वोच्च न्यायालय ने सभी आयु की महिलाओं को मंदिर में प्रवेश की अनुमति देकर उनके रीति-रिवाज तथा परंपराओं को नष्ट किया है।
  • लोगों की मान्यता है कि भगवान अयप्पा ब्रह्मचारी हैं। जिस कारण से मंदिर में 10 साल से 50 साल की महिलाओं का प्रवेश वर्जित किया गया था।

पृष्ठभूमि

  • सबरीमाला मंदिर में परंपरा के अनुसार, 10 से 50 साल की महिलाओं के प्रवेश पर प्रतिबंध है।
  • मंदिर ट्रस्ट के अनुसार, यहाँ 1500 वर्षों से महिलाओं के प्रवेश पर प्रतिबंध है। इसके लिये कुछ धार्मिक कारण बताए जाते हैं।
  • सबरीमाला मंदिर में हर साल नवंबर से जनवरी तक श्रद्धालु भगवान अयप्पा के दर्शन के लिये आते हैं, इसके अलावा पूरे साल यह मंदिर आम भक्तों के लिये बंद रहता है।
  • भगवान अयप्पा के भक्तों के लिये मकर संक्रांति का दिन बहुत खास होता है, इसीलिये उस दिन यहाँ सबसे ज़्यादा भक्त पहुँचते हैं।
  • पौराणिक कथाओं के अनुसार, अयप्पा को भगवान शिव और मोहिनी (भगवान विष्णु का एक रूप) का पुत्र माना जाता है।
  • केरल के ‘यंग लॉयर्स एसोसिएशन’ ने इस प्रतिबंध के खिलाफ सर्वोच्च न्यायालय में वर्ष 2006 में जनहित याचिका दायर की थी।

स्रोत: द हिंदू