फ्यूचर रिटेल बनाम अमेज़न पर सर्वोच्च न्यायालय का निर्णय | 07 Aug 2021

प्रिलिम्स के लिये:

सिंगापुर इंटरनेशनल आर्बिट्रेशन सेंटर, ईज़ ऑफ डूइंग बिज़नेस इंडेक्स

मेन्स के लिये:

मध्यस्थता और सुलह (संशोधन) अधिनियम, 2021

चर्चा में क्यों?

हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय ने सिंगापुर इंटरनेशनल आर्बिट्रेशन सेंटर (SIAC) की आपातकालीन मध्यस्थता को लागू करने के एक आदेश को बरकरार रखा, जो रिलायंस इंडस्ट्रीज़ लिमिटेड के साथ फ्यूचर ग्रुप के सौदे को समाप्त करता है।

सिंगापुर अंतर्राष्ट्रीय मध्यस्थता केंद्र

प्रमुख बिंदु:

पृष्ठभूमि:

  • अगस्त 2020 में फ्यूचर रिटेल लिमिटेड (FRL) ने घोषणा की थी कि वह अपने खुदरा और थोक कारोबार को रिलायंस रिटेल को बेचेगी।
  • सौदा निष्पादित होने से पहले ही अमेज़न ने इसका विरोध करते हुए आरोप लगाया कि इसने फ्यूचर कूपन (फ्यूचर रिटेल की प्रमोटर फर्म) के साथ अनुबंध का उल्लंघन किया है।
    • अमेज़न ने कहा कि फ्यूचर कूपन के साथ उसके समझौते ने उसे एक "कॉल" विकल्प दिया था, जिसने समझौते के तीन से 10 वर्षों के भीतर उसे कंपनी में फ्यूचर रिटेल की पूरी हिस्सेदारी या उसके हिस्से का अधिग्रहण करने के विकल्प का प्रयोग करने में सक्षम बनाया।
  • इसके उपरांत अमेज़न ने फ्यूचर रिटेल को SIAC के समक्ष आपातकालीन मध्यस्थता के आधार पर अपना लिया, जहाँ इस ‘आपातकालीन मध्यस्थ’ ने बाद वाले सौदे के साथ उसे आगे बढ़ने से रोक दिया।
    • आपातकालीन मध्यस्थता एक ऐसा तंत्र है जो "औपचारिक रूप से मध्यस्थता न्यायाधिकरण के गठन से पहले एक विवादित पक्ष को तत्काल अंतरिम राहत के लिये आवेदन करने की अनुमति देता है"।

सर्वोच्च न्यायालय के आदेश का महत्त्व:

  • ‘फ्यूचर रिटेल लिमिटेड’ के तर्क को खारिज कर दिया गया कि मध्यस्थता और सुलह अधिनियम 1996 के तहत ‘आपातकालीन मध्यस्थ’ एक मध्यस्थ न्यायाधिकरण नहीं है।
  • इसने ‘आपातकालीन मध्यस्थ’ के निर्णय की वैधता को बरकरार रखा है। सर्वोच्च न्यायालय के मुताबिक, यह पुरस्कार ‘एक मध्यस्थ न्यायाधिकरण के आदेश की तरह’ ही है, जिस पर वर्ष 1996 के अधिनियम की धारा 17 लागू होती है। इसलिये ‘आपातकालीन मध्यस्थ’ द्वारा दिया गया निर्णय अधिनियम की धारा 17(1) (एक मध्यस्थ न्यायाधिकरण द्वारा आदेशित अंतरिम उपाय) के तहत एक आदेश की तरह ही है।
    • अधिनियम की धारा 17 में मध्यस्थता कार्यवाही के लंबित रहने के दौरान मध्यस्थ न्यायाधिकरण से अंतरिम राहत प्राप्त करने हेतु मध्यस्थता के पक्षकारों के लिये एक विशिष्ट तंत्र निर्धारित करना है।
    • ‘आपातकालीन मध्यस्थ’ के आदेश ‘दीवानी अदालतों के बोझ को कम करने और पक्षों को शीघ्र अंतरिम राहत प्रदान करने में सहायता के लिये एक महत्त्वपूर्ण कदम है।’
  • न्यायालय ने भारत में मध्यस्थता तंत्र के संस्थागतकरण की समीक्षा करने और वर्ष 2015 के बाद मध्यस्थता अधिनियम के प्रावधानों को देखने के लिये न्यायमूर्ति बी.एन. श्रीकृष्ण (सेवानिवृत्त) की अध्यक्षता में भारत सरकार द्वारा गठित एक उच्च स्तरीय समिति की सिफारिशों को रेखांकित किया।
    • इसने कहा, ‘यह देखते हुए कि अंतर्राष्ट्रीय अभ्यास आपातकालीन निर्णयों को लागू करने के पक्ष में है (सिंगापुर, हॉन्गकॉन्ग और यूनाइटेड किंगडम सभी आपातकालीन पुरस्कारों को लागू करने की अनुमति देते हैं), यह उचित समय है कि भारत सभी मध्यस्थ कार्यवाहियों में आपातकालीन पुरस्कारों को लागू करने की अनुमति दे।’
  • यह निर्णय पार्टियों को मध्यस्थता के नियमों और शर्तों से सावधानीपूर्वक सहमत होने के लिये एक अनुस्मारक के रूप में कार्य करेगा।
  • अधिनियम की धारा 17(2) के तहत किये गए आपातकालीन मध्यस्थ के आदेश को लागू करने के खिलाफ मध्यस्थता अधिनियम की धारा 37 के तहत कोई अपील नहीं होगी।
    • मध्यस्थता अधिनियम की धारा 37 अदालत और/या मध्यस्थ न्यायाधिकरण (जैसा भी मामला हो) के कुछ निश्चित आदेशों के खिलाफ अपील का निर्धारण करती है।
    • हालाँकि अधिनियम की धारा 37 (धारा 34 के विपरीत) अपील दायर करने की सीमा अवधि को लेकर मौन है।

मध्यस्थता

परिचय:

  • यह एक ऐसी प्रक्रिया है, जिसमें विवाद को एक स्वतंत्र तीसरे पक्ष को नियुक्त कर सुलझाया जाता है जिसे मध्यस्थ (Arbitrator) कहा जाता है। मध्यस्थ समाधान पर पहुँचने से पहले दोनों पक्षों की बात सुनता है।

मध्यस्थता और सुलह (संशोधन) अधिनियम, 2021:

  • यह मध्यस्थता और सुलह अधिनियम (A&C अधिनियम 1996) में संशोधन करता है ताकि:
    (i) कुछ मामलों में पुरस्कारों पर स्वत: रोक लग सके।
    (ii) विनियमों द्वारा मध्यस्थों की मान्यता के लिये योग्यता, अनुभव और मानदंडों को निर्दिष्ट किया जा सके।
    • मध्यस्थता और सुलह अधिनियम, 1996 घरेलू मध्यस्थता, अंतर्राष्ट्रीय वाणिज्यिक मध्यस्थता एवं विदेशी मध्यस्थ पुरस्कारों के प्रवर्तन से संबंधित कानून को संशोधित तथा समेकित करने के साथ-साथ सुलह से संबंधित कानून को परिभाषित करने या उसके साथ जुड़े मामलों के लिये एक अधिनियम है।

अधिनियम की विशेषताएँ:

  • मध्यस्थों की योग्यता:
    • यह मध्यस्थता और सुलह अधिनियम, 1996 की 8वीं अनुसूची के तहत मध्यस्थों की योग्यता को समाप्त करता है, जिसमें निर्दिष्ट किया गया था कि मध्यस्थ की योग्यता निम्न होनी चाहिये:
      • अधिवक्ता अधिनियम, 1961 के तहत 10 वर्षों के अनुभव के साथ एक वकील, या
      • भारतीय विधि सेवा का एक अधिकारी।
  • बिना शर्त पुरस्कार प्राप्त करना:
    • यदि पुरस्कार एक कपटपूर्ण समझौते या भ्रष्टाचार के आधार पर दिया जा रहा है, तो अदालत उस पर बिना शर्त रोक लगा सकती है, जब तक कि मध्यस्थता कानून की धारा 34 के तहत अपील लंबित है।

लाभ:

  • यह अधिनियम मध्यस्थता प्रक्रिया में सभी हितधारकों के बीच समानता लाएगा।
  • मध्यस्थता और सुलह अधिनियम, 1996 के प्रावधानों के दुरुपयोग को रोकने से करदाताओं के पैसे की बचत होगी और उन लोगों को जवाबदेह ठहराया जा सकता है जिन्होंने इसे गैरकानूनी तरीके से वसूल लिया है।

कमियाँ:

  • जब अंतर्राष्ट्रीय अनुबंधों और समझौतों को लागू करने की बात आती है तो इसमें भारत पहले से ही पीछे है। यह अधिनियम ‘मेक इन इंडिया अभियान’ की भावना को और बाधित कर सकता है तथा ईज़ ऑफ डूइंग बिज़नेस इंडेक्स में रैंकिंग को खराब कर सकता है।
  • भारत का लक्ष्य घरेलू और अंतर्राष्ट्रीय मध्यस्थता का केंद्र बनना है। इन विधायी परिवर्तनों के कार्यान्वयन के माध्यम से वाणिज्यिक विवादों के समाधान में अब अधिक समय लग सकता है।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस