निवारक निरोध पर सर्वोच्च न्यायालय की टिप्पणी | 01 Jun 2017

संदर्भ
हाल ही में तेलंगाना के एक बीज निर्माता को अधिकारियों द्वारा ‘निवारक निरोध’ कानून के तहत हिरासत में लिया गया, क्योंकि वह गरीब किसानों को नकली मिर्च के बीज बेच रहा था। इस पर सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि किसी व्यक्ति को, राज्य द्वारा एक 'गुंडा' करार देकर तथा सामान्य कानूनी प्रक्रिया को ‘अप्रभावी’ और ‘ज़्यादा समय’ लेने वाली बताकर निवारक निरोध के तहत हिरासत में नहीं लिया जा सकता। अगर कोई एसा करता है तो यह गैर-कानूनी होगा।

महत्त्वपूर्ण बिंदु 

  • कोर्ट ने यह माना कि किसी व्यक्ति को हिरासत में लेना ‘नागरिक स्वतंत्रता’ को प्रभावित करने वाला एक गंभीर मामला होता है।
  • न्यायालय का मानना है कि अगर सामान्य कानूनों के तहत पर्याप्त उपाय उपलब्ध हों तो राज्य को ‘निवारक निरोध’ का सहारा लेने से बचना चाहिये। 
  • किसी व्यक्ति को निवारक निरोध के तहत हिरासत में रखना प्राधिकारी की व्यक्तिगत संतुष्टि पर निर्भर करता है, लेकिन ऐसा करने से  संविधान के अनुच्छेद 14,19, 21 और 22 में वर्णित मौलिक अधिकारों का उल्लंघन होता है।
  • निवारक निरोध एक सांविधिक शक्ति (statutory power) है, अतः इसका प्रयोग कानून की सीमाओं के भीतर रहकर ही किया जाना चाहिये।

क्या है निवारक निरोध?

  • ‘निवारक निरोध’, राज्य को यह शक्ति प्रदान करता है कि वह किसी व्यक्ति को कोई संभावित अपराध करने से रोकने के लिये हिरासत में ले सकता है।  
  • संविधान के अनुच्छेद 22(3) के तहत यह प्रावधान है कि यदि किसी व्यक्ति को ‘निवारक निरोध’ के तहत गिरफ्तार किया गया है या हिरासत में लिया गया है तो उसे अनुच्छेद 22(1) और 22(2) के तहत प्राप्त ‘गिरफ्तारी और हिरासत के खिलाफ संरक्षण’ का अधिकार प्राप्त नहीं होगा।
  • किसी व्यक्ति को ‘निवारक निरोध’ के तहत केवल चार आधारों पर गिरफ्तार किया जा सकता है:

1. राज्य की सुरक्षा।
2. सार्वजनिक व्यवस्था को बनाए रखना।
3. आवश्यक सेवाओं की आपूर्ति और रखरखाव तथा रक्षा।
4. विदेशी मामलों या भारत की सुरक्षा।
निवारक निरोध के तहत गिरफ्तार व्यक्ति को अनुच्छेद-19 तथा अनुच्छेद-21 के तहत प्रदान की गई व्यक्तिगत स्वतंत्रताएँ प्राप्त नहीं होंगी।