लोकपाल पर सर्वोच्च न्यायालय का निर्देश | 18 Jan 2019

चर्चा में क्यों ?


हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा लोकपाल पद के लिये केंद्र की सर्च कमेटी को निर्देश दिया गयाहै कि वह फरवरी के अंत तक नियुक्ति हेतु नामों को अंतिम रूप देने का कार्य संपन्न करे।

महत्त्वपूर्ण बिंदु

  • हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय ने लोकपाल पद की नियुक्ति के लिये केंद्र की सर्च कमेटी को फरवरी के अंत तक नामों को अंतिम रूप देने का निर्देश दिया है, जिससे चेयरपर्सन और भ्रष्टाचार-विरोधी संस्था के सदस्यों के नामों को सार्वजानिक किया जा सके।
  • शीर्ष अदालत ने बार-बार लोकपाल नियुक्त करने में विफल रहने के लिये केंद्र सरकार को फटकार लगाई, जिसके प्रतिउत्तर में केंद्र सरकार ने लोकसभा में विपक्ष के नेता की अनुपस्थिति को चयन समिति के गठन में देरी की वजह बताया।
  • हालाँकि, भारत के अटॉर्नी जनरल के. के. वेणुगोपाल ने कुछ समय पहले ही अदालत को बताया था कि लोकपाल की स्थापना की प्रक्रिया चल रही है। सितंबर में ही केंद्र सरकार ने सर्वोच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश रंजना प्रकाश देसाई के नेतृत्व में एक आठ सदस्यीय समिति का गठन किया, जिसमें अरुंधति भट्टाचार्य (भारतीय स्टेट बैंक की पूर्व चेयरपर्सन), ए. सूर्य प्रकाश (प्रसार भारती के चेयरपर्सन) ए.एस. किरण कुमार (पूर्व भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) की चेयरपर्सन) सखा राम सिंह यादव (इलाहाबाद उच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश) रंजीत कुमार (पूर्व महाधिवक्ता) शामिल है।

लोकपाल और लोकायुक्त अधिनियम 2013

  • 1 जनवरी, 2014 को भारत के राष्ट्रपति द्वारा लोकपाल और लोकायुक्त विधेयक, 2013 पर हस्ताक्षर करते ही यह विधेयक ‘अधिनियम’ बन गया।
  • इसमें केंद्र स्तर पर लोकपाल और राज्य स्तर पर लोकायुक्त की नियुक्ति का प्रावधान किया गया है।
  • इस अधिनियम में सार्वजनिक व्यक्तियों के खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोपों की जाँच के लिये एक सांविधिक निकाय का गठन किया गया था।

अधिनियम के प्रमुख प्रावधान

  • लोकपाल में एक अध्यक्ष और अधिकतम आठ सदस्य हो सकते हैं, जिनमें से 50% सदस्य न्यायिक पृष्ठभूमि से होने चाहिये।
  • लोकपाल के अध्यक्ष और सदस्यों का चयन एक ‘चयन समिति’ के माध्यम से किया जाएगा जिसमें भारत के प्रधानमंत्री, लोकसभा अध्यक्ष, लोकसभा के विपक्ष के नेता, भारत के प्रमुख न्यायधीश या मुख्य न्यायाधीश द्वारा नामित सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश शामिल होंगे। एक अन्य सदस्य कोई प्रख्यात विधिवेत्ता होगा जिसे इन चार सदस्यों की सिफारिश पर राष्ट्रपति नामित करेंगे।
  • लोकपाल के अधिकार क्षेत्र में लोकसेवकों की सभी श्रेणियाँ होंगी।
  • कुछ सुरक्षा उपायों के साथ प्रधानमंत्री को भी इस अधिनियम के दायरे में लाया गया है।
  • अधिनियम के अंतर्गत ईमानदार लोकसेवकों को पर्याप्त सुरक्षा प्रदान की जाएगी।
  • अधिनियम में भ्रष्ट तरीकों से अर्जित की गई संपत्ति को जब्त करने का भी प्रावधान है चाहे अभियोजन का मामला लंबित ही क्यों न हो।
  • अधिनियम में प्रारंभिक जाँच और ट्रायल के लिये स्पष्ट समय सीमा निर्धारित की गई है। ट्रायल के लिये विशेष अदालतों के गठन का भी प्रावधान है।

अन्य महत्त्वपूर्ण बिंदु

  • इस अधिनियम के वर्ष 2014 में लागू हो जाने के बावजूद आज तक लोकपाल की नियुक्ति नहीं हो पाई है। लोकपाल के अभाव में यह अधिनियम क्रियान्वित नहीं हो पा रहा है। एक गैर-सरकारी संगठन ‘कॉमन कॉज’ ने सर्वोच्च न्यायालय में पिटीशन लगाई कि सरकार जान-बूझकर लोकपाल की नियुक्ति नहीं कर रही है। नवंबर 2016 में सर्वोच्च न्यायालय ने भी सरकार की खिंचाई करते हुए कहा कि लोकपाल कानून को एक ‘मृत पत्र (dead letter)’ नहीं बनने दिया जा सकता।
  • लोकपाल की नियुक्ति न हो पाने के संदर्भ में सरकार का अपना एक तर्क है। सरकार के अनुसार, लोकपाल के चुनाव के लिये जो चयन-समिति होती है, उसमें एक सदस्य ‘लोकसभा में विपक्ष का नेता’ होता है। परंतु, 16वीं लोकसभा में किसी भी विपक्षी पार्टी के पास कुल लोकसभा सदस्यों की 10 प्रतिशत या अधिक सदस्य संख्या नहीं हैं, जो किसी पार्टी के नेता को ‘विपक्ष का नेता’ का दर्जा दिलाने की पूर्व शर्त होती है।
  • अतः बिना ‘विपक्ष के नेता’ के सरकार लोकपाल का चुनाव कैसे कर सकती है। यही कारण है कि सरकार ने अधिनियम में ‘विपक्ष के नेता’ की परिभाषा में संशोधन का प्रस्ताव पेश किया जो अभी संसद में पारित नहीं हो पाया है, जिसके अनुसार विपक्ष की सबसे बड़ी पार्टी के नेता को ‘विपक्ष के नेता’ माना जाएगा।

स्रोत – इंडियन एक्सप्रेस, लाइव मिंट