आदित्य-एल 1 के लिये समर्थन केंद्र | 20 Apr 2021

चर्चा में क्यों?

आदित्य-एल 1 मिशन के लिये समर्थन केंद्र की सुविधा आर्यभट्ट रिसर्च इंस्टीट्यूट फॉर ऑब्ज़र्वेशनल साइंसेज़ (ARIES) द्वारा दी जाएगी, इसकी शुरुआत अगले वर्ष (2022) की जानी है।

  • ARIES विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग के अंतर्गत एक स्वायत्त संस्थान है, जो नैनीताल (उत्तराखंड) में स्थित है।

प्रमुख बिंदु:

आदित्य- एल 1 मिशन के बारे में :

  • यह सूर्य का अध्ययन करने वाला भारत का पहला वैज्ञानिक अभियान है। यह एस्ट्रोसैट के बाद आदित्य एल-1 इसरो (भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन) का दूसरा अंतरिक्ष-आधारित खगोल विज्ञान मिशन है जिसे 2015 में शुरु किया गया था।
  • ISRO ने आदित्य L-1 को 400 किलो-वर्ग के उपग्रह के रूप में वर्गीकृत किया है जिसे ध्रुवीय उपग्रह प्रक्षेपण यान- XL (PSLV- XL) विन्यास से लॉन्च किया गया था।
    • ध्यातव्य है कि आदित्य एल-1 को सूर्य एवं पृथ्वी के बीच स्थित एक हेलो आर्बिट के चारों तरफ एल-1 ‘लैग्रेंज बिंदु के निकट स्थापित किया गया है जो पृथ्वी से 1.5 मिलियन किमी. दूर है।
  • इस मिशन के अंतर्गत अंतरिक्ष-आधारित वेधशाला में सूर्य के कोरोना, सौर उत्सर्जन, सौर हवाओं और फ्लेयर्स तथा कोरोनल मास इजेक्शन (CME) का अध्ययन करने के लिये बोर्ड पर 7 पेलोड (उपकरण) होंगे और यह सूर्य की चौबीसों घंटे इमेजिंग का संचालन करेगा।

आदित्य-एल 1 समर्थन केंद्र (ASC):

  • इस केंद्र का मुख्य उद्देश्य भारत के प्रत्येक शोधकर्त्ता द्वारा आदित्य-एल 1 से ज्ञात वैज्ञानिक आँकड़ों की जाँच करना है। यह अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भारत के आदित्य-एल 1 की दृश्यता का विस्तार करेगा।
  • यह सौर सतह के केंद्र पर विभिन्न विशेषताओं जैसे- कोरोनल छिद्र, सौर उत्सर्जन, सौर पवनों और फ्लेयर्स तथा कोरोनल मास इजेक्शन और सौर कलंक  के स्थान और अवधि की एक संगोष्ठी की मेज़बानी करेगा।
    •  इन सुविधाओं के स्थान और अवधि की निरंतर निगरानी कोरोनल मास इजेक्शन और इस तरह की अंतरिक्ष मौसम की निगरानी पृथ्वी को निर्देशित करने में मदद करेगी। 

मिशन की चुनौतियाँ

  • पृथ्वी से सूर्य की दूरी चंद्रमा से लगभग 3.84 लाख किमी.की तुलना में औसतन लगभग 15 करोड़ किमी. है । यह विशाल दूरी एक वैज्ञानिक चुनौती है।
  • आदित्य एल 1 में कुछ संचालित घटक होंगे जो टकराव के जोखिमों को बढ़ाते हैं।
    • इसके अतिरिक्त इसरो के पहले के मिशनों में पेलोड अंतरिक्ष में स्थिर रहते थे 
  • साथ ही सौर वातावरण में अत्यधिक तापमान एवं विकिरण भी महत्त्वपूर्ण चुनौतियाँ हैं। 
    • हालाँकि आदित्य एल 1 सूर्य से बहुत दूर स्थित होगा अत: उपग्रह के पेलोड (Payload) /उपकरणों के लिये अत्यधिक तापमान चिंता का विषय नहीं है। 

सूर्य के अध्ययन का महत्त्व:

  • पृथ्वी सहित हर ग्रह और सौरमंडल से परे एक्सोप्लैनेट्स विकसित होते हैं और यह विकास इसके मूल तारे द्वारा नियंत्रित होता है। 
  • सौर मौसम और वातावरण जो सूरज के अंदर और आसपास होने वाली प्रक्रियाओं से निर्धारित होता है, पूरे सोलर सिस्टम को प्रभावित करता है।
    • सोलर सिस्टम पर पड़ने वाले प्रभाव उपग्रह की कक्षाओं को बदल सकते हैं या उनके जीवन को बाधित कर सकते हैं या पृथ्वी पर इलेक्ट्रॉनिक संचार को बाधित कर सकते हैं या अन्य गड़बड़ी पैदा कर सकते हैं। इसलिये अंतरिक्ष के मौसम को समझने के लिये सौर घटनाओं का ज्ञान होना महत्त्वपूर्ण है।
  • पृथ्वी पर आने वाले तूफानों के बारे में जानने एवं उन्हें ट्रैक करने तथा उनके प्रभाव की भविष्यवाणी करने के लिये निरंतर सौर अवलोकन की आवश्यकता होती है, इसलिये सूर्य का अध्ययन किया जाना महत्त्वपूर्ण हो जाता है।

सूर्य के अन्य मिशन:

  • जापान के सौर-सी EUVST: इस मिशन द्वारा सौर वातावरण के सौर पवन का अन्वेषण किया जाएगा, जो पृथ्वी के मौसम की जानकारी को प्रदर्शित करता है। EUVST का व्यापक रुप एक्स्ट्रीम अल्ट्रावायलेट हाई थ्रूपुट स्पेक्ट्रोस्कोपिक टेलिस्कोप इप्सिलोन है। 
  • नासा का EZEI मिशन: इलेक्ट्रोजेट जीमैन इमेजिंग एक्सप्लोरर (EZIE) मिशन पृथ्वी के वातावरण और उसमें विद्युत धाराओं का अध्ययन करेगा, जो अरोरा को चुंबकीयमंडल (Magnetosphere) से जोड़ते हैं।
  • नासा के पार्कर सोलर प्रोब मिशन का उद्देश्य अंतरिक्ष में चुंबकीय बल, प्लाज़्मा, कोरोना और सौर पवन (Solar Wind’s) आदि का अध्ययन करना है।
    • यह मिशन नासा के लिविंग विद ए स्टार (Living With a Star) कार्यक्रम का हिस्सा है जो सूर्य-पृथ्वी प्रणाली (Sun-Earth System) को प्रभावित करने वाले कारकों को समझने के लिये आवश्यक व्यापक अनुसंधान प्रदान करता है।
  • इससे पूर्व जर्मनी की अंतरिक्ष एजेंसी और नासा ने मिलकर वर्ष 1976 में सूर्य के सबसे करीब हेलिअस-2 नामक प्रोब भेजा था। यह प्रोब सूर्य से 43 मिलियन किमी. की दूरी पर था।

सौर कोरोना

  • सौर कोरोना का आशय प्लाज़्मा के एक चमकदार आवरण से होता है, जो सूर्य और अन्य खगोलीय पिंडों के चारों ओर मौजूद होता है।
  • यह अंतरिक्ष में लाखों किलोमीटर तक फैला हुआ है और इसे प्रायः पूर्ण सूर्य ग्रहण के दौरान देखा जा सकता है।
  • सूर्य का कोरोना उसकी दृश्यमान सतह की तुलना में अधिक गर्म होता है।
    • सूर्य के कोरोना का तीव्र तापमान उसमें अत्यधिक आयनित आयनों (Ionized Ions) की उपस्थिति के कारण होता है जो इसे वर्णक्रमीय विशेषता प्रदान करता है।

सोलर विंड और फ्लेयर्स

  • सोलर विंड का आशय सूर्य से निकली आवेशित कणों की एक सतत धारा से है जो सभी दिशाओं में प्रवाहित होती है।
  • सूर्य की सतह पर होने वाली गतिविधियों के आधार पर सोलर विंड की क्षमता परिवर्तित होती रहती है।
  • पृथ्वी प्रायः अपने मज़बूत चुंबकीय क्षेत्र के कारण सोलर विंड से सुरक्षित रहती है।
    • हालाँकि कुछ विशिष्ट प्रकार की गतिविधियों जैसे- सोलर फ्लेयर के कारण सूर्य से निकलने वाले उच्च ऊर्जा कण अंतरिक्ष यात्रियों के लिये खतरनाक हो सकते हैं और साथ ही इनसे पृथ्वी की परिक्रमा करने वाले उपग्रहों को भी नुकसान पहुँच सकता है।

कोरोनल मास इजेक्शन

  • सूरज के कोरोना से प्लाज़्मा और उससे संबंधित चुंबकीय क्षेत्र के अंतरिक्ष में निष्कासित किये जाने की परिघटना को कोरोनल मास इजेक्शन (Coronal Mass Ejection) के रूप में जाना जाता है।
  • यह प्रायः सोलर फ्लेयर्स (Solar Flares) के बाद होती है और ‘सोलर प्रोमिनेंस’ के दौरान देखी जाती है।
    • ‘सोलर प्रोमिनेंस’ सूर्य की सतह से निकली आयनित और उद्दीप्त गैस के बादल होते हैं।
  • इसमें निष्कासित प्लाज़्मा सौर वायु का भाग बन जाती है और इसे कोरोनोग्राफी में देखा जा सकता है।
  • हाल ही में ARIES की एक टीम ने सूर्य के निचले कोरोना में होने वाले तीव्र सौर विस्फोटों का अध्ययन करने के लिये ‘CMEs आइडेंटिफिकेशन इन इनर सोलर कोरोना’ नामक एक एल्गोरिदम विकसित किया है।

‘लैग्रेंजियन पॉइंट-1’

  • ‘लैग्रेंज पॉइंट्स’ का आशय अंतरिक्ष में स्थित उन बिंदुओं से होता है, जहाँ दो अंतरिक्ष निकायों (जैसे सूर्य और पृथ्वी) के गुरुत्वाकर्षण बल के कारण आकर्षण और प्रतिकर्षण का क्षेत्र उत्पन्न होता है।
    • इसका नामकरण इतालवी-फ्रांँसीसी गणितज्ञ जोसेफ-लुइस लैग्रेंज के नाम पर किया गया है।
  • लैग्रेंज पॉइंट्स’ पर, एक खगोल निकाय (जैसे पृथ्वी) के गुरुत्वाकर्षण का खिंचाव दूसरे निकाय (जैसे- सूर्य) के गुरुत्वाकर्षण के खिंचाव को समाप्त कर देता है। ऐसे में ‘लैग्रेंज पॉइंट्स’ पर रखी गई कोई भी चीज़ पृथ्वी और सूर्य की ओर समान रूप से खिंचेगी और सूर्य के चारों ओर पृथ्वी के साथ घूमेगी।
  • इन बिंदुओं का उपयोग प्रायः अंतरिक्षयान द्वारा अपनी स्थिति बरकरार रखने के लिये आवश्यक ईंधन की खपत को कम करने हेतु किया जा सकता है।
  • L1 का अर्थ ‘लैग्रेंजियन/‘लैग्रेंज पॉइंट- 1’ से है, जो पृथ्वी-सूर्य प्रणाली के ऑर्बिट में स्थित पाँच बिंदुओं में से एक है।
  • L1 बिंदु पृथ्वी से लगभग 1.5 मिलियन किलोमीटर दूर अथवा पृथ्वी से सूर्य के मार्ग के लगभग 1/100वें हिस्से में स्थित है।
  • ‘लैग्रेंजियन पॉइंट-1’ पर स्थित कोई उपग्रह अपनी विशिष्ट स्थिति के कारण ग्रहण अथवा ऐसी ही किसी अन्य बाधा के बावजूद सूर्य को लगातार देखने में सक्षम होता है।
  • नासा की सोलर एंड हेलिओस्फेरिक ओब्ज़र्वेटरी सैटेलाइट (SOHO) L1 बिंदु पर ही स्थित है। यह सैटेलाइट नेशनल एरोनॉटिक्स एंड स्पेस एडमिनिस्ट्रेशन (NASA) और यूरोपीय स्पेस एजेंसी (ESA) की एक अंतर्राष्ट्रीय सहयोग परियोजना है।

स्रोत: द हिंदू