सल्फर डाइऑक्साइड उत्सर्जन मानक | 07 Jan 2021

चर्चा में क्यों?

हाल ही में विद्युत मंत्रालय ने कोयला संचालित बिजली संयंत्रों हेतु नए उत्सर्जन मानदंडों को अपनाने की समयसीमा को बढ़ाने का प्रस्ताव रखा है, मंत्रालय का तर्क है कि  ‘अव्यवहार्य समय अवधि’ (Unworkable Time Schedule)  के कारण विद्युत की अधिक खपत होगी तथा  विद्युत दरों में वृद्धि होगी

प्रमुख बिंदु 

पृष्ठभूमि

  • भारत द्वारा शुरू में थर्मल पावर प्लांटों के लिये वर्ष 2017 की समयसीमा निर्धारित की गई थी ताकि विषाक्त सल्फर डाइऑक्साइड के उत्सर्जन में कटौती हेतु फ्ल्यू गैस डिसल्फराइज़ेशन (Flue Gas Desulphurization- FGD) इकाइयों को स्थापित करने में उत्सर्जन मानकों का पालन किया जा सके।
    • इसे बाद में वर्ष 2022 में समाप्त होने वाले विभिन्न क्षेत्रों के लिये अलग-अलग समयसीमा में परिवर्तित कर दिया गया था।

फ्ल्यू गैस डिसल्फराइज़ेशन (FED):

  •  फ्ल्यू गैस डिसल्फराइज़ेशन, सल्फर डाइऑक्साइड (Sulfur Dioxide) को हटाने की प्रक्रिया है। सल्फर डाइऑक्साइड का रासयनिक सूत्र  SO2है ।
  • इसके माध्यम से  गैसीय प्रदूषकों को हटाने का प्रयास किया जाता है। जैसे कोयला आधारित बिजली संयंत्रों से उत्सर्जित गैस, दहन भट्टियों, बॉयलरों और अन्य औद्योगिक प्रक्रियाओं में उत्पन्न SO2 गैस को हटाना।

विद्युत मंत्रालय का प्रस्ताव:

  • विद्युत मंत्रालय द्वारा एक "ग्रेडेड एक्शन प्लान" का प्रस्ताव दिया गया, जिसमें संयंत्रों की स्थिति के अनुसार प्रदूषित क्षेत्रों को श्रेणीबद्ध किया जाएगा, इसमें क्षेत्र-1 गंभीर रूप से प्रदूषित और क्षेत्र 5 सबसे कम प्रदूषित क्षेत्र को प्रदर्शित करता है।
  • इसने एक "ग्रेडेड एक्शन प्लान" प्रस्तावित किया है, जिसमें ऐसे क्षेत्र जहांँ संयंत्र स्थित हैं, को प्रदूषण की गंभीरता के अनुसार वर्गीकृत किया जाएगा।
    • क्षेत्र -1 के तहत वर्गीकृत थर्मल पावर स्टेशनों के उत्सर्जन पर सख्त नियंत्रण रखने की आवश्यकता होगी।
    • क्षेत्र-2 में शामिल संयंत्रों को एक वर्ष बाद क्षेत्र-1 में शामिल किया जा सकता है।
    • वर्तमान में क्षेत्र-3, 4 और 5 के तहत स्थित बिजली संयंत्रों के लिये किसी भी प्रकार के नियमन की आवश्यकता नहीं है।
  • मंत्रालय के अनुसार, यह लक्ष्य पूरे देश में एक समान परिवेश की वायु गुणवत्ता बनाए रखने के लिये होना चाहिये, न कि ताप-विद्युत संयंत्रों के लिये समान उत्सर्जन मानदंड विकसित करने के लिये।
    • यह देश के विभिन्न, अपेक्षाकृत स्वच्छ क्षेत्रों में विद्युत कीमत में तत्काल वृद्धि को रोकने में सहायक हो सकता है और विद्युत उपभोक्ताओं के अनावश्यक बोझ को कम कर सकता है।

सल्फर डाइऑक्साइड प्रदूषण

  • स्रोत:
    • वातावरण में SO2 का सबसे बड़ा स्रोत विद्युत संयंत्रों और अन्य औद्योगिक गतिविधियों में जीवाश्म ईंधन का दहन है। 
    • SO2  उत्सर्जन के छोटे स्रोतों में अयस्कों से धातु निष्कर्षण  जैसी औद्योगिक प्रक्रियाएँ, प्राकृतिक स्रोत जैसे- ज्वालामुखी विस्फोट, इंजन, जहाज़ और अन्य वाहन तथा भारी उपकारणों में उच्च सल्फर ईंधन सामग्री का प्रयोग शामिल है।
  • प्रभाव: SO2 स्वास्थ्य और पर्यावरण दोनों को प्रभावित कर सकती है।
  • SO2  का उत्सर्जन हवा में SO2की उच्च सांद्रता के कारण होता है, सामान्यत:  यह सल्फर के अन्य ऑक्साइड (SOx) का निर्माण करती है। (SOx) वातावरण में अन्य यौगिकों के साथ प्रतिक्रिया कर छोटे कणों का निर्माण कर सकती है। ये कणकीय पदार्थ (Particulate Matter- PM) प्रदूषण को बढ़ाने में सहायक हैं। 
    • SO2 के अल्पकालिक जोखिम मानव श्वसन प्रणाली को नुकसान पहुंँचा सकते हैं और साँस लेने में कठिनाई उत्पन्न कर सकते हैं। विशेषकर बच्चे SO2 के इन प्रभावों के प्रति संवेदनशील होते हैं।
      • छोटे प्रदूषक कण फेफड़ों में प्रवेश कर स्वास्थ्य को गंभीर रूप से प्रभावित कर सकते हैं।
  • भारत का मामला:
    • भारत द्वारा सल्फर डाइऑक्साइड उत्सर्जन के मामले में ग्रीनपीस इंडिया और सेंटर फॉर रिसर्च ऑन एनर्जी एंड क्लीन एयर (Centre for Research on Energy and Clean Air) की एक रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 2019 में  वर्ष 2018 की तुलना में लगभग 6% की गिरावट (चार वर्षों में सबसे अधिक) दर्ज की गई है।
      • फिर भी भारत इस दौरान  SO2 का सबसे बड़ा उत्सर्जक बना रहा।
    • वर्ष 2015 में कोयला आधारित बिजली स्टेशनों के लिये पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (Ministry of Environment, Forest and Climate Change) ने  SO2 उत्सर्जन सीमा निर्धारित करने की शुरुआत की।
    • वायु गुणवत्ता उप-सूचकांक को अल्पकालिक अवधि (24 घंटे तक) के लिये व्यापक राष्ट्रीय परिवेशी वायु गुणवत्ता मानक निर्धारित करने हेतु आठ प्रदूषकों (PM10, PM2.5, NO2, SO2, CO, O3, NH3 तथा Pb) के आधार पर विकसित किया गया है।

स्रोत: द हिंदू