वनीकरण के लिये उपलब्ध भूमि का अध्ययन | 09 Jul 2019

चर्चा में क्यों ?

हाल ही में शोधकर्त्ताओं ने वनीकरण के लिये विश्व भर में उपलब्ध भूमि की मात्रा का निर्धारण किया है जिससे वायुमंडल में कार्बन उत्सर्जन की बढ़ती मात्रा को रोकने में मदद मिलेगी।

  • प्रमुख बिंदु :
  • IPCC की एक रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 2050 तक वैश्विक तापन को पूर्व-औद्योगिक युग के मुकाबले 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित रखने के लिये वन- भूमि में 1 बिलियन हेक्टेयर की वृद्धि की आवश्यकता होगी।
  • वृक्ष, जो कार्बन-डाइऑक्साइड (CO2) का अवशोषण करते हैं, वायुमंडल में उत्सर्जित होने वाली गैसों के लिये प्राकृतिक सिंक का कार्य करते हैं।
  • अमेरिकी राष्ट्रीय महासागरीय और वायुमंडलीय प्रशासन के अनुसार, जीवाश्म ईंधन के दहन से वातावरण में उत्सर्जित होने वाले कार्बन-डाइऑक्साइड का 25% भाग वृक्षों द्वारा व अन्य 25% भाग महासागरों द्वारा अवशोषित किये जाते हैं जबकि वायुमंडल में शेष 50% भाग के कारण वैश्विक तापमान में वृद्धि होती है।
  • शोधकर्त्ताओं ने 80,000 तस्वीरों के आधार पर विश्व भर में वनीकरण हेतु 0.90 बिलियन हेक्टेयर भूमि की पहचान की है। इस संपूर्ण भूमि पर वनीकरण से मानव निर्मित कुल कार्बन उत्सर्जन के दो-तिहाई हिस्से को अवशोषित करने में मदद मिलेगी।
  • इन नए वनों के माध्यम से औद्योगिक काल के बाद से वातावरण में उत्सर्जित 300 बिलियन टन कार्बन में से 205 बिलियन टन कार्बन को अवशोषित करने में मदद मिलेगी।
  • वर्तमान समय में पृथ्वी पर 2.8 बिलियन हेक्टेयर वन-क्षेत्र है जिसक वनीकरण के बाद 4.4 बिलियन हेक्टेयर तक पहुँचने का अनुमान है।
  • अध्ययन के अनुसार, भारत में लगभग 9.93 मिलियन हेक्टेयर अतिरिक्त वन क्षेत्र की संभावना है।
  • इसके अतिरिक्त छह देशों रूस (151मिलियन हेक्टेयर), संयुक्त राज्य अमेरिका (103 मिलियन हेक्टेयर), कनाडा (78.4 मिलियन हेक्टेयर), ऑस्ट्रेलिया (58 मिलियन हेक्टेयर), ब्राज़ील (49.7 मिलियन हेक्टेयर) और चीन (40.2 मिलियन हेक्टेयर) में वनीकरण क्षमता सर्वाधिक है।

स्रोत : इंडियन एक्सप्रेस