G-20 का बढ़ता प्रभाव | 15 May 2025

प्रिलिम्स के लिये:

G20, यूरोपीय संघ (EU), अफ्रीकी संघ (AU), IMF, विश्व बैंक, वित्तीय स्थिरता बोर्ड (FSB), डिजिटल अर्थव्यवस्था, विशेष आहरण अधिकार (SDR), ग्लोबल हंगर एंड पॉवर्टी अलायंस 

मेन्स के लिये:

वैश्विक आर्थिक शासन में G-20 की भूमिका, G-20 की विशिष्टता और प्रतिनिधित्व की कमी की आलोचना, बहुपक्षीय वैश्विक मंचों के लिये सुधार

स्रोत: डाउन टू अर्थ 

चर्चा में क्यों?

G20 को प्रायः "अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक सहयोग के लिये प्रमुख मंच" के रूप में जाना जाता है, लेकिन वैश्विक प्रतिनिधित्व की कमी के कारण इसकी आलोचना की जाती है। इसकी विशेष सदस्यता वैश्विक मुद्दों को संबोधित करने में इसकी विश्वसनीयता और प्रभावशीलता को कम करती है।

  • वर्ष 2025 में दक्षिण अफ्रीका द्वारा G20 की अध्यक्षता किये जाने के साथ, इस मंच को अधिक समावेशी तथा वैश्विक रूप से प्रतिनिधित्वपूर्ण बनाने हेतु सुधारों के लिये समर्थन बढ़ रहा है।

G20 का महत्त्व क्या है?

  • परिचय: G20 की स्थापना वर्ष 1999 में एशियाई वित्तीय संकट के बाद वित्त मंत्रियों और केंद्रीय बैंक गवर्नरों के लिये वैश्विक आर्थिक एवं वित्तीय मुद्दों पर चर्चा करने हेतु एक मंच के रूप में की गई थी।
  • विकास: वर्ष 2007-08 के वित्तीय संकट के बाद G20 को अभिकर्त्ता के स्तर पर पदोन्नत किया गया तथा वर्ष 2009 में इसे वैश्विक आर्थिक सहयोग के लिये शीर्ष मंच घोषित किया गया।
    • यद्यपि इसकी शुरुआत समष्टि अर्थशास्त्र पर ध्यान केंद्रित करने के साथ हुई थी, परंतु अब इसका एजेंडा व्यापार, स्वास्थ्य, जलवायु परिवर्तन आदि को भी शामिल करता है।
  • सदस्यता: इसके सदस्यों में 19 राष्ट्रीय अर्थव्यवस्थाएँ और यूरोपीय संघ (EU) एवं अफ्रीकी संघ (AU) शामिल हैं। भारत वर्ष 1999 में G20 का सदस्य बना जब इस समूह की स्थापना हुई थी।
    • अन्य देशों को तदर्थ आधार पर "विशेष अतिथि" के रूप में आमंत्रित किया जा सकता है।
  • संरचना और प्रशासन: G20 एक घूर्णनशील अध्यक्षता के अधीन संचालित होता है, जिसका वार्षिक शिखर सम्मेलन होता है तथा यह बिना किसी स्थायी सचिवालय के कार्य करता है।
    • ट्रोइका प्रणाली (वर्तमान, पूर्व और आगामी अध्यक्ष) G20 के कार्यों का प्रबंधन करती है, जिसमें वर्ष 2025 की ट्रोइका में दक्षिण अफ्रीका (वर्तमान), ब्राज़ील (पूर्व) और अमेरिका (2026 का आगामी अध्यक्ष) शामिल हैं।
  • वैश्विक प्रभाव: वैश्विक जनसंख्या का 67%, विश्व सकल घरेलू उत्पाद का 85% और वैश्विक व्यापार का 75% प्रतिनिधित्व करता है।
  • पिछले कुछ वर्षों में G-20 के प्रमुख परिणाम:
    • भुखमरी  और गरीबी के विरुद्ध वैश्विक गठबंधन: ब्राज़ील के रियो डी जेनेरियो में वर्ष 2024 के G20 शिखर सम्मेलन में शुरू की गई इस पहल का उद्देश्य नकद हस्तांतरण कार्यक्रमों के माध्यम से 500 मिलियन लोगों तक पहुँचना और वर्ष 2030 तक बच्चों को 150 मिलियन स्कूली भोजन उपलब्ध कराना है।
    • भारत-मध्य पूर्व-यूरोप आर्थिक गलियारा (IMEC): नई दिल्ली में G20 शिखर सम्मेलन के दौरान शुरू किया गया IMEC का उद्देश्य भारत, मध्य पूर्व और यूरोप के बीच व्यापार, आर्थिक संबंधों एवं क्षेत्रीय एकीकरण को मज़बूत करना है।
    • वैश्विक जैव ईंधन गठबंधन (GBA): इसे सतत् जैव ईंधन को अपनाने को बढ़ावा देने के लक्ष्य के साथ नई दिल्ली, भारत में G-20 शिखर सम्मेलन में लॉन्च किया गया था। 
    • वैश्विक न्यूनतम कॉर्पोरेट कर: वर्ष 2021 में रोम में आयोजित G-20 शिखर सम्मेलन में, G-20 नेताओं ने 15% वैश्विक न्यूनतम कॉर्पोरेट कर को औपचारिक रूप से स्वीकार किया, जिसका उद्देश्य बहुराष्ट्रीय कंपनियों द्वारा कर बचाव को रोकना और एक न्यायसंगत वैश्विक अर्थव्यवस्था को प्रोत्साहित करना था।
    • डिजिटल अर्थव्यवस्था कार्य योजना (2017): डिजिटल व्यापार, साइबर सुरक्षा और डेटा शासन में सहयोग को सुदृढ़ करना।
    • बेसल III मानदंड: वर्ष 2010 के सियोल शिखर सम्मेलन में, G-20 नेताओं ने बैंकिंग नियमों को कड़ा करने के लिये बेसल III मानदंड अपनाए।
    • मजबूत विकास के लिये रूपरेखा (2009): संकट के बाद समन्वित राजकोषीय प्रोत्साहन और बैंकिंग सुधारों के माध्यम से वित्तीय प्रणाली को स्थिर किया गया।
      • ऋण सेवा स्थगन पहल (2020) ने कोविड-19 के दौरान गरीब देशों को ऋण राहत प्रदान की, जिससे पुनर्प्राप्ति में सहायता मिली।
    • जलवायु परिवर्तन कार्य योजना (2010): निम्न-कार्बन विकास को बढ़ावा दिया, जिसने वर्ष 2015 के पेरिस समझौते को प्रभावित किया।

G20_Map

G-20 की सीमाएँ क्या हैं?

  • प्रतिनिधित्व का अभाव: G-20 एक स्व-चयनित समूह है, जिसमें 19 देश, यूरोपीय संघ और अफ्रीकी संघ शामिल हैं, जबकि विश्व के 90% से अधिक देशों को बाहर रखा गया है, जो केवल कभी-कभार "विशेष अतिथि" के रूप में भाग ले सकते हैं।
    • इसके पास संपूर्ण अंतर्राष्ट्रीय समुदाय (193 संयुक्त राष्ट्र सदस्य देश एवं गैर-सदस्य देश) का प्रतिनिधित्व करने का कोई वैधानिक अधिकार नहीं है।
    • गैर-सदस्य देश केवल "विशेष अतिथि" के रूप में आमंत्रित किये जाने पर ही भाग ले सकते हैं, जिससे यह मंच विशेषाधिकार प्राप्त और प्रतिनिधित्वविहीन बन जाता है।
  • निर्णय-निर्माण में विशिष्टता: G-20 की अनौपचारिक संरचना और स्थायी सचिवालय की अनुपस्थिति के कारण गैर-सदस्य देशों को शामिल करना कठिन हो जाता है। इसके निर्णय पूरे विश्व को प्रभावित करते हैं, फिर भी अधिकांश राष्ट्र इन विचार-विमर्शों में प्रत्यक्ष रूप से शामिल नहीं होते।
    • हालाँकि ट्रोइका प्रणाली निरंतरता सुनिश्चित करती है, फिर भी इसमें क्रियान्वयन की शक्ति का अभाव है, जिससे G-20 एक क्रियान्वयन-प्रधान निकाय की अपेक्षा अधिकतर एक विचार-मंच बनकर रह जाता है।
  • वैश्विक चुनौतियों के लिये वैश्विक समाधान की आवश्यकता: जलवायु परिवर्तन, महामारियाँ और आर्थिक असमानता जैसी समस्याएँ व्यापक वैश्विक सहयोग की मांग करती हैं।
    • G-20 की संकीर्ण सदस्यता इसकी क्षमता को सीमित करती है कि वह सभी देशों के हितों को प्रतिबिंबित करने वाले समावेशी समाधान तैयार कर सके।
    • वैश्विक सहयोग में गिरावट आ रही है क्योंकि समृद्ध राष्ट्र आधिकारिक विकास सहायता (ODA) में कटौती कर रहे हैं और प्रमुख अर्थव्यवस्थाएँ समावेशी संयुक्त राष्ट्र मंचों के बजाय विशिष्ट G-20 मंचों को प्राथमिकता दे रही हैं।
    • धनी राष्ट्र G-20 में प्रभुत्व रखते हैं, जिससे गरीब देशों की सहायता और जलवायु वित्त के मुद्दे नज़रअंदाज़ हो जाते हैं और वैश्विक असमानता गहरी हो जाती है।
  • विभिन्न प्राथमिकताएँ: विकसित देश उन्नत तकनीक, जलवायु परिवर्तन और भू-राजनीतिक स्थिरता को प्राथमिकता देते हैं, जबकि विकासशील देश गरीबी उन्मूलन, संसाधनों तक पहुँच और आर्थिक विकास पर ध्यान केंद्रित करते हैं।
    • प्राथमिकताओं में यह अंतर जलवायु वित्तपोषण, व्यापार उदारीकरण और न्यायसंगत संसाधन वितरण जैसे मुद्दों पर असहमति का कारण बनता है।
  • भू-राजनीतिक प्रतिद्वंद्विताएँ: अमेरिका और चीन जैसे देशों के बीच राजनीतिक तनाव, या रूस और इज़राइल से जुड़े संघर्ष, सहमति निर्माण में बाधाएँ उत्पन्न करते हैं और अक्सर सहयोगात्मक समस्या समाधान से ध्यान भटकाते हैं।

कौन-से सुधार G-20 को अधिक समावेशी और प्रतिनिधित्त्वपूर्ण बना सकते हैं?

  • क्षेत्रीय परामर्शदात्री समूह: वर्ष 2009 में G-20 के तहत स्थापित वित्तीय स्थिरता बोर्ड (FSB) का शासन मॉडल, G-20 को अधिक समावेशी बनाने के लिये एक समाधान प्रस्तुत करता है। 
    • G-20 के विपरीत, FSB  में अमेरिका, एशिया और अफ्रीका जैसे क्षेत्रों के लिये क्षेत्रीय सलाहकार समूह (RCG) शामिल हैं, जो गैर-सदस्य देशों को अपने दृष्टिकोण साझा करने एवं निर्णय लेने में योगदान करने की अनुमति देते हैं। प्रत्येक RCG की सह-अध्यक्षता G-20 और गैर-G-20 सदस्य करते हैं। 
    • G-20 के लिये इस मॉडल को अपनाने से मंच को अपने मूल सदस्यों को बनाए रखने में मदद मिलेगी, साथ ही क्षेत्रीय पड़ोसी देशों के साथ औपचारिक परामर्श प्रक्रिया स्थापित करने, छोटे देशों को सशक्त बनाने और वैश्विक प्रतिनिधित्व एवं जवाबदेही को बढ़ाने में भी मदद मिलेगी।
  • भागीदारी का विस्तार करना : गैर-G-20 देशों, विशेष रूप से वैश्विक दक्षिण को स्थायी पर्यवेक्षक का दर्ज़ा प्रदान करना तथा व्यापक प्रतिनिधित्व के लिये दक्षिण-पूर्व एशियाई राष्ट्रों के संगठन (ASEAN) और कैरेबियाई समुदाय एवं साझा बाज़ार (CARICOM) जैसे क्षेत्रीय निकायों के साथ भागीदारी को औपचारिक बनाना।
    • चर्चाओं में विविधतापूर्ण आवाजों को सुनिश्चित करने के लिये विशेष अतिथि आमंत्रणों को व्यवस्थित रूप से घुमाना।
  • संस्थागत संरचना में सुधार: निरंतरता और जवाबदेही के लिये एक स्थायी सचिवालय की स्थापना करना, जलवायु वित्त, ऋण राहत और डिजिटल अर्थव्यवस्था जैसे महत्त्वपूर्ण मुद्दों पर अनिवार्य प्रगति रिपोर्ट के साथ कार्य समूह बनाना।
    • उत्तराधिकार नियोजन से परे नीतिगत सुसंगतता की निगरानी के लिये ट्रोइका प्रणाली को मज़बूत बनाना।
  • प्रमुख वैश्विक चुनौतियों का समाधान: विकसित देशों के लिये बाध्यकारी जलवायु वित्तपोषण लक्ष्य निर्धारित करना तथा कमज़ोर अर्थव्यवस्थाओं के लिये G-20 हरित विकास कोष की स्थापना करना।
    • निम्न आय वाले देशों में संकटों को रोकने के लिये वैश्विक ऋण संरचना में सुधार करना तथा विकासशील देशों के लिये IMF विशेष आहरण अधिकार (SDR) का विस्तार करना।
  • भूखमरी से वैश्विक रूप से निपटना: खाद्य सुरक्षा और जलवायु अनुकूलन जैसी अफ्रीका एवं वैश्विक दक्षिण की प्राथमिकताओं को महत्त्व देना, खाद्य असुरक्षा व टिकाऊ कृषि से निपटने के लिये वैश्विक भूखमरी तथा गरीबी गठबंधन(Global Hunger and Poverty Alliance) जैसी पहलों को बढ़ावा देना।

निष्कर्ष:

जबकि G-20 वैश्विक आर्थिक सहयोग में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है, लेकिन इसमें समावेशिता की कमी, अनौपचारिक संरचना और भू-राजनीतिक तनाव इसकी प्रभावशीलता को कमज़ोर करते हैं। अपनी वैधता को मज़बूत करने के लिये, इसे समावेशी भागीदारी मॉडल अपनाना चाहिये, स्थायी शासन तंत्र स्थापित करना चाहिये और जलवायु वित्त, ऋण राहत एवं खाद्य सुरक्षा के लिये कार्रवाई योग्य समाधानों को प्राथमिकता देनी चाहिये- यह सुनिश्चित करते हुए कि यह वास्तव में " अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक सहयोग के लिये प्रमुख मंच " बन जाए।

दृष्टि मुख्य परीक्षा प्रश्न:

प्रश्न : वैश्विक आर्थिक चुनौतियों का समाधान करने में G-20 की सीमाओं का आलोचनात्मक विश्लेषण कीजिये तथा वैश्विक शासन में इसकी भूमिका को सुदृढ़ करने के उपाय सुझाइये।

 UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न   

प्रिलिम्स:

प्रश्न. "G20 कॉमन फ्रेमवर्क" के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2022)

  1. यह G20 और उसके साथ पेरिस क्लब द्वारा समर्थित पहल है।
  2.  यह अधारणीय ऋण वाले निम्न आय देशों को सहायता देने की पहल है।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

(a) केवल 1
(b) केवल 2
(c) 1 और 2 दोनों
(d) न तो 1 और न ही 2

उत्तर: (c)


प्रश्न. निम्नलिखित में से किस एक समूह में चारों देश G-20 के सदस्य हैं? (2020)

(a) अर्जेंटीना, मेक्सिको, दक्षिण अफ्रीका और तुर्की
(b) ऑस्ट्रेलिया, कनाडा, मलेशिया और न्यूज़ीलैंड
(c) ब्राज़ील, ईरान, सऊदी अरब और वियतनाम
(d) इंडोनेशिया, जापान, सिंगापुर और दक्षिण कोरिया

उत्तर: (a)