भारत में आवारा कुत्तों का प्रबंधन: सार्वजनिक सुरक्षा और पशु कल्याण में संतुलन | 20 Aug 2025
प्रिलिम्स के लिये: रेबीज़, अनुच्छेद 21, भारत का सर्वोच्च न्यायालय, राष्ट्रीय रेबीज़ नियंत्रण कार्यक्रम
मेन्स के लिये: मानव अधिकार बनाम पशु कल्याण में संतुलन
चर्चा में क्यों?
भारत के सर्वोच्च न्यायालय (SC) ने राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (NCR) में बच्चों पर हुई दुखद घटनाओं के बाद स्वत: संज्ञान (Suo Motu) लेते हुए आवारा कुत्तों को हटाने का निर्देश जारी किया।
- इस निर्देश ने सार्वजनिक सुरक्षा और पशु कल्याण के बीच संतुलन बनाए रखने से जुड़े कानूनी और नैतिक पहलुओं पर बहस को बढ़ावा दिया है।
भारत में आवारा कुत्तों का खतरा
- भारत में 62 से 80 मिलियन (6.2 से 8 करोड़) तक आवारा कुत्ते हैं। केवल वर्ष 2024 में ही 22 लाख से अधिक कुत्ते के काटने के मामले दर्ज किये गए। कुत्तों के काटने से होने वाला रेबीज़ वैश्विक स्तर पर होने वाली कुल मौतों का 36% हिस्सा है, जो मुख्य रूप से बच्चों, महिलाओं और बुजुर्गों को प्रभावित करता है।
- राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) के आँकड़ों के अनुसार, वर्ष 2019 में कुत्ते के काटने से 4000 से अधिक मौतें दर्ज की गईं।
- केवल दिल्ली में ही वर्ष 2025 की पहली छमाही में 35,000 से अधिक जानवरों के काटने के मामले दर्ज किये गए। रेबीज़ का उपचार, जो पोस्ट-एक्सपोजर प्रोफिलैक्सिस (PEP) के माध्यम से किया जाता है, स्वास्थ्य प्रणाली पर आर्थिक दबाव डालता है, जहाँ प्रत्येक मामले का औसत उपचार खर्च लगभग ₹5,128 है।
भारत में आवारा कुत्तों के प्रबंधन के लिये कानूनी और नीतिगत ढाँचे क्या हैं?
- संवैधानिक प्रावधान;
- अनुच्छेद 246(3): राज्य सरकारें पशुधन का संरक्षण, सुरक्षा और सुधार, पशु रोगों की रोकथाम तथा पशु चिकित्सा प्रशिक्षण और अभ्यास का प्रबंधन करती हैं।
- अनुच्छेद 243(W) और 246: स्थानीय निकायों की ज़िम्मेदारी है कि वे आवारा कुत्तों की जनसंख्या नियंत्रण करें।
- अनुच्छेद 51A(g): नागरिकों का मौलिक कर्तव्य है कि वे सभी जीवित प्राणियों के प्रति करुणा और सहानुभूति दिखाएं।
- अनुच्छेद 21 (भारतीय पशु कल्याण बोर्ड बनाम नागराजा (2014) में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा विस्तारित): पशुओं को भी जीवन का अधिकार (जल्लीकट्टू मामला) दिया गया।
- कानूनी और नीतिगत ढाँचा:
- पशु क्रूरता निवारण अधिनियम, 1960: क्रूरता पर प्रतिबंध लगाता है और मानवीय व्यवहार को अनिवार्य बनाता है।
- पशु जन्म नियंत्रण (ABC) नियम, 2023: इसमें आवारा कुत्तों की नसबंदी, टीकाकरण और उन्हें उनके आवास में वापस छोड़ने का प्रावधान है।
- रेबीज़ नियंत्रण प्रयास: स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय के नेतृत्व में राष्ट्रीय रेबीज़ नियंत्रण कार्यक्रम (NRCP) का लक्ष्य वर्ष 2030 तक रेबीज़ को समाप्त करना है। इसमें टीकाकरण, नसबंदी (Sterilization) और सर्विलांस (निगरानी) प्रमुख उपाय हैं।
आवारा कुत्तों के प्रबंधन से संबंधित प्रमुख नैतिक पहलू क्या हैं?
- मानव सुरक्षा बनाम पशु अधिकार: कुत्तों के काटने की बढ़ती घटनाएँ और रेबीज़ से होने वाली मौतें एक नैतिक द्वंद्व पैदा करती हैं, जहाँ एक ओर जनता की सुरक्षा सुनिश्चित करना ज़रूरी है, वहीं दूसरी ओर पशुओं के जीवन के अधिकार की रक्षा करना भी आवश्यक है।
- बच्चों पर हमलों की अधिक घटनाएँ यह नैतिक चिंता उत्पन्न करती हैं कि सबसे कमजोर वर्ग की सुरक्षा में लापरवाही बरती जा रही है। पशु जन्म नियंत्रण (Animal Birth Control Rules- ABC) नियम में पशु कल्याण को मानव सुरक्षा से अधिक प्राथमिकता दी गई है, जिससे आक्रामक आवारा कुत्तों को छोड़ने पर नागरिकों के अनुच्छेद 21 (जीवन के अधिकार) का उल्लंघन होने का खतरा बढ़ जाता है।
- वहीं दूसरी ओर, जानवरों को एक जीवित प्राणी के रूप में संरक्षण और मानवीय व्यवहार मिलना चाहिये। आवारा कुत्तों को हटाना या उन्हें कहीं छोड़ देना उनके जीवन के मूलभूत अधिकार का उल्लंघन माना जाता है।
- व्यवहार में असमानता: अच्छी नस्ल के कुत्तों को अक्सर परिवार के सदस्य या प्रतिष्ठा का प्रतीक माना जाता है, जबकि आवारा कुत्तों को समाज से उपेक्षित समझा जाता है। यह स्थिति असमान व्यवहार और न्याय की कमी को लेकर गंभीर चिंताएँ उत्पन्न करती है।
- नियंत्रण विधियों में नैतिक दुविधाएँ: मार देना (Culling), ज़हर देना या क्रूर तरीके से स्थानांतरण जैसी घटनाएँ, करुणा और मानवीय व्यवहार जैसे नैतिक सिद्धांतों का उल्लंघन करती हैं।
- भ्रष्टाचार और कुप्रबंधन: नसबंदी, टीकाकरण और आवारा कुत्तों के कल्याण कार्यक्रमों के लिये आवंटित धन का कुप्रबंधन और दुरुपयोग, इन पहलों की प्रभावशीलता को कमज़ोर करता है और पशुओं के प्रति मानवीय व्यवहार सुनिश्चित करने की नैतिक ज़िम्मेदारी को भी ठेस पहुँचाता है।
आवारा कुत्तों के प्रबंधन के लिये नैतिक ढाँचे
- उपयोगितावादी नैतिकता (Utilitarian Ethics): नसबंदी और टीकाकरण समाज के बड़े हित में होते हैं क्योंकि ये रेबीज़ के खतरे को कम करते हैं और साथ ही क्रूरता से भी बचाव करते हैं। यह दृष्टिकोण आमतौर पर मानव स्वास्थ्य की रक्षा के लिये सख्त कदमों का समर्थन करता है, ताकि समग्र रूप से समाज का लाभ सुनिश्चित किया जा सके।
- कर्तव्यनिष्ठा (Deontology): राज्य और समाज का कर्तव्य है कि वे नागरिकों और पशुओं दोनों की सुरक्षा करें।
- अधिकार आधारित नैतिकता (Rights-Based Ethics): आवारा कुत्तों को स्वाभाविक अधिकारों वाला माना जाता है, और नैतिक कार्य उन अधिकारों की संरक्षा करना तथा उनके कल्याण को सुनिश्चित करना होता है।
- अहिंसा की सांस्कृतिक भावना: भारतीय परंपरा सभी जीवित प्राणियों के प्रति करुणा और सह-अस्तित्व पर बल देती है।
- वन हेल्थ दृष्टिकोण: नैतिक प्रबंधन के लिये पशु कल्याण को मानव और पर्यावरणीय स्वास्थ्य के साथ एकीकृत करना आवश्यक है।
आवारा कुत्तों के प्रबंधन में सर्वोत्तम अभ्यास
- बंगलुरु में, पशु जन्म नियंत्रण कार्यक्रम के आकलनों से पता चला कि वर्ष 2019 से 2023 के बीच आवारा कुत्तों की जनसंख्या में 10% की कमी आई है, जबकि नसबंदी दर में 20% की वृद्धि हुई है। यह आवारा कुत्तों की जनसंख्या प्रबंधन में सकारात्मक परिणाम को दर्शाता है।
- नीदरलैंड्स ने संग्रह, नसबंदी, टीकाकरण, वापसी (Collect, Neuter, Vaccinate, Return- CNVR) कार्यक्रम के माध्यम से "आवारा कुत्ता मुक्त" दर्जा प्राप्त किया है, और इसके साथ ही गोद लेने (Adoption) को भी सक्रिय रूप से बढ़ावा दिया गया।
- इस्तांबुल, तुर्की में शहर प्रशासन द्वारा एक व्यापक "ट्रैप-न्यूटर-वैक्सीनेट-रिटर्न (TNVR)” कार्यक्रम संचालित किया जाता है। इस प्रक्रिया के तहत नसबंदी किये गए कुत्तों के कानों पर टैग (Ear Markers) लगाए जाते हैं, और समुदाय के पशु-भक्तों (Community Feeders) को भी इस पहल में शामिल किया जाता है।
- पिछले दशक में, आवारा पशुओं की आबादी स्थिर हो गई है, रेबीज़ लगभग समाप्त हो गया है, तथा मनुष्यों के साथ सह-अस्तित्व कायम है।
- बैंकॉक, थाईलैंड ने जनसंहार (Mass Culling) की नीति को छोड़कर TNVR पद्धति अपनाई। इस उपाय से रेबीज़ के प्रकोप पर रोक लगी और कुत्तों के प्रति समुदाय में आक्रोश में भी उल्लेखनीय कमी आई।
सार्वजनिक सुरक्षा और पशु कल्याण में संतुलन के लिये क्या उपाय किये जाने चाहिये?
- कुत्तों की सेवा भूमिकाएँ: सभी प्रमुख हितधारकों को मिलकर यह सुनिश्चित करना चाहिये कि कुत्तों की संज्ञानात्मक (Cognitive) और सामाजिक क्षमताओं का उपयोग नशीले पदार्थों की पहचान, विस्फोटक पहचान तथा थेरेपी जैसे महत्त्वपूर्ण कार्यों में किया जाए। साथ ही समाज में कुत्तों के प्रति सकारात्मक दृष्टिकोण को भी बढ़ावा दिया जाना चाहिये।
- नीति क्रियान्वयन: सरकारों को टीकाकरण और नसबंदी कार्यक्रमों को बेहतर बनाने तथा पालतू जानवरों के परित्याग को रोकने के लिये नागरिक समाज के साथ सहयोग करना चाहिये। एक राष्ट्रीय नीति तैयार की जानी चाहिये जो मानव एवं कुत्तों के बीच संघर्ष (Human-Dog Conflict) को प्रभावी ढंग से संबोधित करे।
- समर्पित सुविधाएँ: आवारा कुत्तों की जनसंख्या को प्रभावी ढंग से प्रबंधित करने के लिये खुराक देने के स्थान (Feeding Stations), पशु चिकित्सा स्वास्थ्य सुविधाएँ और पशु कल्याण संस्थाओं का समर्थन प्रदान करना आवश्यक है।
- इसके अतिरिक्त, हमलों की सूचना देने के लिये एक समर्पित हेल्पलाइन स्थापित की जानी चाहिये।
- सार्वजनिक जागरूकता और शिक्षा: जनता को ज़िम्मेदार पालतू जानवर पालन, नसबंदी के महत्त्व और जानवरों के साथ सुरक्षित व्यवहार के बारे में शिक्षित किया जाना चाहिये ताकि कुत्ते के काटने से बचाव हो सके और पालतू जानवरों के परित्याग को कम किया जा सके।
निष्कर्ष
जानवरों की रक्षा की नैतिक ज़िम्मेदारी को समाज के नागरिकों की सुरक्षा के कर्तव्य के साथ संतुलित किया जाना चाहिये। करुणा को बढ़ावा देकर, प्रभावी नीतियों को लागू करके और जनजागरूकता अभियानों में भाग लेकर, भारत एक ऐसा भविष्य बना सकता है जहाँ मानव तथा पशु दोनों के अधिकारों का सम्मान हो एवं शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व सुनिश्चित हो।
दृष्टि मेन्स प्रश्न: प्रश्न. आवारा कुत्तों की जनसंख्या नियंत्रण के संदर्भ में सार्वजनिक सुरक्षा और पशु कल्याण के बीच संतुलन बनाने में नैतिक आयामों पर चर्चा कीजिये। |