इस्पात”- स्मार्ट शहरों का आधार | 11 Dec 2017

संदर्भ
स्मार्ट सिटी मिशन भारत सरकार की एक महत्त्वाकांक्षी परियोजना है, जिसका उद्देश्य अवसंरचना, कनेक्टिविटी, प्रौद्योगिकी, पर्यावरण और संसाधनों की उपलब्धता आदि के ज़रिये शहरी मानव जीवन की गुणवत्ता को उच्च बनाए रखने का प्रयत्न करना है।

100 स्मार्ट शहरों के निर्माण के लिये हमें कम समय में न्यूनतम रखरखाव वाली ऐसी अवसंरचना के निर्माण की ज़रूरत है, जिसकी आयु कम से कम 100 वर्ष हो। इस आवश्यकता की पूर्ति इस्पात (Steel) द्वारा संभव है। भूमिगत या भूमि के ऊपर होने वाले किसी भी निर्माण कार्य के लिये इस्पात एक मज़बूत और आवश्यक अवयव है। 

भूमिगत या भूमि के ऊपर निर्माण में इस्पात

  • सीवेज, जल-निकासी के पाइप इत्यादि में।
  • इंटरनेट केसिंग केबल में।
  • यदि सड़कों में भी इस्पात युक्त आधार का इस्तेमाल हो तो उनकी आयु बढ़ जाती है और रखरखाव की आवश्यकता भी कम पड़ती है। 
  • जल को फिल्टर करने के बाद स्टील-पाइपों के ज़रिये उसकी आपूर्ति करना न केवल स्वास्थ्य के लिये अच्छा है, बल्कि यह जल के रिसाव को भी रोकता है।
  • स्टील से बने फुटओवर तथा फ्लाईओवर ब्रिज आदि न केवल आवागमन और यातायात को प्रबंधित करते हैं, बल्कि मानव जीवन की रक्षा भी करते हैं। 

इस्पात के उपयोग से स्मार्ट शहरों के विकास को गति मिलेगी और मलबा रहित तरीके से परियोजनाओं का तीव्र निष्पादन संभव हो सकेगा। स्टील 100% पुनर्चक्रीकृत है, अतः यह पर्यावरण हितैषी भी है।

महँगी लागत का भ्रम 

  • आम धारणा है कि जिन इमारतों के निर्माण में स्टील प्रयुक्त होता है, उनकी लागत बहुत ऊँची होती है।
  • इसके लिये जीवन चक्र की लागत के सिद्धांत को सामान्य वित्तीय नियमों (GFR) के अंतर्गत नियम136(1) के ज़रिये जोड़ा गया है। 
  • सड़कों, पुलों, इमारतों, रेलवे, नौवहन और ग्रामीण सड़कों से संबंधित कई सरकारी परियोजनाओं में, जीवन चक्र की लागत का सिद्धांत परियोजना डिज़ाइन की मंजूरी में निर्णायक भूमिका निभाएगा।
  • दीर्घकालिक दृष्टिकोण से स्टील का प्रयोग जीवन चक्र की लागत को कम करेगा, क्योंकि स्टील की बनी अवसंरचनाओं की आय अधिक होती है।
  • गुणवत्ता, न्यूनतम रखरखाव और तीव्र निष्पादन की विशेषता के कारण स्टील की शुरुआती महँगी लागत संतुलित हो जाती है। 

भारत को अवसंरचना निर्माण और अन्य क्षेत्रों में निर्माण प्रक्रियाओं को गति देने के लिये स्टील-उत्पादन बढ़ाना होगा। 

भारतीय इस्पात उद्योग विश्व के तीसरे सबसे बड़े इस्पात उत्पादक के रूप में उभरा है। यह चीन को पछाड़कर  दुनिया के दूसरे सबसे बड़े इस्पात उत्पादक देश बनने की दिशा में तेजी से बढ़ रहा है। वैश्विक इस्पात उद्योग के नक्शे पर चीन के बाद भारतीय इस्पात प्रमुखता से अपनी उपस्थिति दर्ज करवाने की ओर बढ़ रहा है।  

सरकार ने इस्पात क्षेत्र के महत्त्व और इसके गतिशील परिदृश्य को ध्यान में रखते हुए, राष्ट्रीय इस्पात नीति (एनएसपी) 2017 प्रस्तुत की है। नई इस्पात नीति के लागू होने के बाद भरोसा किया जा रहा है कि घरेलू इस्पात को बढ़ावा देने के लिये उपयुक्त माहौल बनाने में उचित नीति का साथ मिलने से इस्पात उद्योग तेज़ी से वृद्धि करेगा और इसके ज़रिये यह भी सुनिश्चित करना है कि इस्पात उत्पादन उसकी मांग में हो रही अपेक्षित वृद्धि को पूरा करे।

नई राष्ट्रीय इस्पात नीति-2017 के उद्देश्य

  • इस नीति के तहत भारत में वर्ष 2030-31 तक 300 मीट्रिक टन कच्चे इस्पात का उत्पादन कर विश्व स्तर पर प्रतिस्पर्धी इस्पात उद्योग का निर्माण करना। 
  • भारत में इस्पात की प्रति व्यक्ति खपत 61 किलोग्राम है। नई इस्पात नीति के अनुसार, वर्ष 2030-31 तक प्रति व्यक्ति इस्पात की खपत को 158 किलोग्राम तक बढ़ाना है।  
  • भारत को वर्ष 2030-31 तक उच्च श्रेणी के ऑटोमोटिव स्टील, इलेक्ट्रिक स्टील और रणनीतिक अनुप्रयोगों के लिये एलॉय के निर्माण में आत्मनिर्भर बनना।  
  • नई इस्पात नीति के अनुसार, भारत को वर्ष 2025-26 तक स्टील का शुद्ध निर्यातक देश के रूप में स्थापित करना। इस्पात उद्योग को वर्ष 2030-31 तक कच्चे माल से उच्च श्रेणी के स्टील का उत्पादन करने के लिये प्रोत्साहित करना।  
  • नई इस्पात नीति में घरेलू इस्पात उत्पादकों के लिये गुणवत्ता मानकों का विकास भी शामिल किया गया है जिससे उच्च श्रेणी के इस्पात का उत्पादन हो सके।

निष्कर्ष
पर्यावरण के अनुकूल, मज़बूत और टिकाऊ सामग्री के साथ बनाई गई इमारतों के लिये तथा तीव्र संचार और परिवहन सुविधाओं के विकास के लिये स्टील एक अपरिहार्य अवयव है। भारत के स्मार्ट शहरों की नींव तभी मज़बूत होगी जब इन शहरों की निर्माण-प्रक्रिया में स्टील का प्रयोग बहुतायत में किया जाएगा।