भाँग के संबंध में सामाजिक हित याचिका | 19 Jul 2019

चर्चा में क्यों?

हाल ही में दिल्ली उच्च न्यायालय में दायर एक सामाजिक हित याचिका (social cause litigation) में यह दावा किया गया है कि भारत में ऐसा कोई भी दस्तावेज़ मौजूद नहीं है जो यह दर्शाता हो कि भांग का सेवन मानव शरीर के लिये घातक है।

प्रमुख बिंदु

  • बेंगलुरु स्थित कैनबिस एडवोकेसी समूह ग्रेट लीगलाइजेशन मूवमेंट इंडिया (Great Legalisation Movement India) ने अपनी याचिका में नार्कोटिक ड्रग्स एंड साइकोट्रोपिक सब्सटेंस (Narcotic Drugs and Psychotropic Substances-NDPS) अधिनियम और नियमों के विभिन्न भागों को चुनौती दी है जो भांग की खेती, कब्जे और उपयोग को अपराध की श्रेणी में शामिल करते हैं।
  • दो न्यायमूर्तियों की खंडपीठ ने इस याचिका पर सुनवाई की, जिसमें नशीली दवाओं के दुरुपयोग के मामलों पर चिंता जताते हुए इसके नियंत्रण के पहलूओं पर विस्तार से जानकारी मांगी है।
  • इस समूह ने यह दावा किया कि भारत में भाँग पर प्रतिबंध वर्ष 1985 के NDPS अधिनियम के पारित होने के बाद लागू हुआ।
  • साथ ही यह भी तर्क दिया कि विश्व स्वास्थ्य संगठन (World Health Organisation) और भारतीय गांजा औषधि आयोग (Indian Hemp Drugs Commission-IHDC) (1894) द्वारा प्रकाशित विभिन्न वैज्ञानिक शोध-पत्र में इसके औषधीय लाभों को भी दर्शाया गया हैं।

Disputed Drug

भारतीय भाँग औषधि आयोग की रिपोर्ट

(Indian Hemp Drugs Commission Report)

  • उन्नीसवीं सदी के ब्रिटिश भारत में भाँग के प्रयोग से बड़ी संख्या में भारतीय लोगों के मानसिक संतुलन खोने की जानकारी मिली। इसी को ध्यान में रखकर भारतीय गांजा औषधि आयोग की स्थापना की गई।
  • भाँग का व्यापक रूप से प्रयोग फार्माकोपिया के क्षेत्र में होता था तथा सरकार को इससे काफी राजस्व प्राप्त होता था। इस आयोग को भाँग के उपयोग से होने वाले सार्वजनिक स्वास्थ्य जोखिमों का निर्धारण करने का कार्य सौंपा गया, विशेष रूप से मानसिक बीमारी से संबंधित जोखिमों का।
  • साथ ही याचिका में यह तर्क भी दिया गया है कि संसद द्वारा मादक पदार्थों की अवैध तस्करी एवं युवाओं में नशे की लत जैसे मुद्दों को ध्यान में रखते हुए इस पर प्रतिबंध लगाने के लिये 23 अगस्त, 1985 को लोकसभा में NDPS विधेयक पेश किया गया, जिसे केवल चार दिनों की विधायी बहस के बाद पारित कर दिया गया। स्पष्ट रूप से इस विधेयक के संदर्भ में बहुत अधिक चर्चा अथवा अध्ययन नहीं किया गया। भाँग के गुणों और इसके उपयोग को ध्यान में रखते हुए इस दिशा में और अधिक ध्यान दिया जाना चाहिये।
  • याचिका में तर्क दिया गया है कि सरकार भाँग के औषधीय लाभों पर ध्यान केंद्रित करने में भी असफल रही है, इसमें दर्दनाशक (analgesic) के रूप में इसके इस्तेमाल, कैंसर से लड़ने में इसकी भूमिका, मतली को कम करना तथा HIV रोगियों में भूख बढ़ाने जैसे गुण शामिल हैं। इस याचिका में कहा गया है कि IHDC के निष्कर्षों के आधार पर इस पर पूर्ण प्रतिबंध लगाना आवश्यक नहीं है क्योंकि इसका प्रयोग दवाईयाँ बनाने में भी किया जाता है।
  • इसके अलावा भाँग के अपार औद्योगिक अनुप्रयोग हैं, बायोडिग्रेडेबल प्लास्टिक, फाइबर और अन्य वस्तुओं को बनाने में भी इसका उपयोग किया जाता है।

भांग या गांजा या चरस

  • इसका वैज्ञानिक नाम Cannabis Indica है। यह एक प्रकार का पौधा होता है जिसकी पत्तियों को पीस कर भांग तैयार की जाती है।
  • भांग विशेषकर उत्तर प्रदेश, बिहार एवं पश्चिम बंगाल में प्रचुरता में पाई जाती है।
  • भांग के पौधे 3-8 फुट ऊँचे होते हैं। इसके पत्ते एकान्तर क्रम में व्यवस्थित होते हैं।
  • भांग के नर पौधे के पत्तों को सुखाकर भांग तैयार की जाती है जबकि इसके मादा पौधों की पुष्प मंजरियों को सुखाकर गांजा तैयार किया जाता है।
  • भांग की शाखाओं एवं पत्तों पर जमे राल के समान पदार्थ को चरस कहा जाता है। एक समय में पहाड़ की लोक कला में भांग से निर्मित वस्त्रों की कला बहुत प्रसिद्ध थी, परंतु वर्तमान में इसका चलन कम हो गया है।
  • इसके अतिरिक्त यह भी कहा गया कि अमेरिका, कनाडा, दक्षिण अफ्रीका और नीदरलैंड जैसे देशों ने भाँग के औषधीय एवं औद्योगिक उपयोग को देखते हुए इसके उत्पादन एवं खेती को वैध कर दिया है।

स्रोत: द हिंदू