सामाजिक क्षेत्र की योजनाओं का सामाजिक लेखापरीक्षा | 21 Sep 2022

मेन्स के लिये:

सामाजिक क्षेत्र की योजनाओं और उसके लाभों की सामाजिक लेखापरीक्षा

चर्चा में क्यों?

हाल ही में राजस्थान सरकार ने योजनाओं का सामाजिक लेखापरीक्षा करने के लिये एक विशेष सामाजिक और प्रदर्शन लेखापरीक्षा प्राधिकरण स्थापित करने का निर्णय लिया है, जो देश में अपनी तरह का पहला प्राधिकरण होगा।

इस निर्णय का महत्त्व:

  • सार्वजनिक जवाबदेही सुनिश्चित करना:
    • प्राधिकरण सरकारी योजनाओं, कार्यक्रमों और सेवाओं के कार्यान्वयन में सार्वजनिक जवाबदेही, पारदर्शिता एवं नागरिकों की भागीदारी सुनिश्चित करेगा तथा कार्यान्वयन एजेंसियों का प्रदर्शन मूल्यांकन भी करेगा।
  • गुणवत्तापूर्ण सेवा वितरण का आकलन करना:
    • यह प्राधिकरण सरकारी योजनाओं और कार्यक्रमों द्वारा गुणवत्तापूर्ण सेवा वितरण का भी आकलन करेगा।
    • यह विभिन्न योजनाओं के परिणाम का पता लगाने के लिये लोगों की संतुष्टि का सर्वेक्षण भी करेगा।
  • सामाजिक लेखापरीक्षा और निष्पादन लेखापरीक्षा की योजना बनाना:
    • यह प्राधिकरण राजस्थान राज्य में सरकारी विभागों, उपक्रमों, योजनाओं (केंद्रीय और राज्य), कार्यक्रमों, परियोजनाओं तथा गतिविधियों की सामाजिक लेखापरीक्षा एवं प्रदर्शन लेखापरीक्षा के लिये योजना निर्माण, उसके संचालन व अंतिम रूप देने का काम करेगा।
      • यह सेवाओं के वितरण की कुशलता और प्रभावशीलता के साथ-साथ जनता के पैसे के  सही ढंग से खर्च की जाँच करेगा।
  • सिविल सेवा संगठनों की पहचान तथा क्षमता निर्माण:
    • यह विभिन्न योजनाओं और कार्यक्रमों के प्रभावी कार्यान्वयन के लिये तकनीकी सहायता प्रदान करेगा; वार्षिक योजनाओं और परिणामों (outcome) के साथ ही बजट के सुदृढ़ीकरण के लिये वित्त और योजना विभाग को तकनीकी सहायता प्रदान करना तथा ग्रामीण व शहरी क्षेत्रों में विकास और बुनियादी ढाँचे के कार्यों के गुणवत्ता मानकों का आकलन करना।

सामाजिक लेखापरीक्षा:

  • परिचय:
    • यह सरकार और लोगों (विशेष रूप से वे लोग जो योजना से प्रभावित हैं) द्वारा संयुक्त रूप से किसी योजना के क्रियान्वयन का मूल्यांकन है।
    • सोशल ऑडिट वित्तीय ऑडिट से अलग है जिसमें किसी संगठन के लाभ, हानि और वित्तीय स्थिरता की सही तस्वीर प्रदान करने के लिये वित्तीय लेन-देन से संबंधित दस्तावेजों का निरीक्षण और मूल्यांकन करना शामिल है।
  • सामाजिक लेखापरीक्षा और मनरेगा:
    • मनरेगा की धारा 17 के तहत कार्यक्रम के अंतर्गत निष्पादित सभी कार्यों को एक सामाजिक लेखापरीक्षा से गुज़रना होगा।
      • प्रत्येक सामाजिक लेखापरीक्षा इकाई पिछले वर्ष में राज्य द्वारा किये गए मनरेगा व्यय के 0.5% के बराबर धन की हकदार है।
    • ऑडिट में मनरेगा के तहत बनाए गए बुनियादी ढाँचे की गुणवत्ता जाँच, मज़दूरी में वित्तीय हेराफेरी और किसी भी प्रक्रियात्मक विचलन की जाँच शामिल है।
    • केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्रालय (MoRD) द्वारा हाल ही में 'सामाजिक लेखापरीक्षा कैलेंडर बनाम पूर्ण लेखापरीक्षा' शीर्षक वाली रिपोर्ट जारी की गई थी, जिसमें बताया गया है कि वर्ष 2021-2022 में नियोजित लेखापरीक्षा का केवल 14.29% ही पूरा हुआ है।
    • मंत्रालय ने यह भी माना कि राज्यों द्वारा महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोज़गार गारंटी योजना (MGNREGS) का सामाजिक लेखापरीक्षा करने में विफलता के लिये धन की रोकथाम सहित कार्रवाई की जाएगी।
    • हालाँकि केंद्र (जो इन सामाजिक लेखापरीक्षा इकाइयों की प्रशासनिक लागत वहन करता है) द्वारा धन जारी करने में अत्यधिक देरी ने इनमें से कई नकदी-संकट वाली इकाइयों को लगभग पंगु बना दिया है।
  • चुनौतियांँ:
    • प्रशासनिक इच्छाशक्ति का अभाव:
      • भ्रष्टाचार को रोकने के लिये सामाजिक लेखापरीक्षा को संस्थागत बनाने में पर्याप्त प्रशासनिक और राजनीतिक इच्छाशक्ति की कमी का मतलब है कि देश के कई हिस्सों में सामाजिक लेखापरीक्षा कार्यान्वयन एजेंसियों से प्रभावित है।
      • केरल, तेलंगाना, हिमाचल प्रदेश और छत्तीसगढ़ जैसे कुछ राज्यों की सामाजिक लेखापरीक्षा इकाइयों को वह प्रशासनिक धन प्राप्त नहीं हुआ था जो केंद्र ने उन्हें दिया था। इसलिये लेखा परीक्षकों के वेतन में तीन महीने से एक वर्ष तक की देरी हुई है।
    • प्रतिरोध और धमकी:
      • ग्राम सामाजिक अंकेक्षण सुविधादाताओं सहित सामाजिक लेखापरीक्षा इकाइयों को प्रतिरोध और धमकी का सामना करना पड़ रहा है तथा सत्यापन हेतु प्राथमिक अभिलेखों तक पहुंँचने में भी मुश्किल हो रही है।
    • जनभागीदारी का अभाव:
      • आम जनता के बीच शिक्षा, जागरूकता और क्षमता निर्माण की कमी के कारण लोगों की भागीदारी नगण्य रही है।
    • स्वतंत्र एजेंसी की अनुपस्थिति:
      • सामाजिक लेखापरीक्षा के निष्कर्षों की जांँच और कार्रवाई करने हेतु एक स्वतंत्र एजेंसी का अभाव है।

आगे की राह

  • नागरिक समूहों को सामाजिक लेखापरीक्षा को मज़बूत करने हेतु अभियान चलाने और राजनीतिक कार्यकारी तथा इसकी कार्यान्वयन एजेंसियों को जवाबदेह बनाने की आवश्यकता है।
  • प्रत्येक ज़िले में सामाजिक अंकेक्षण विशेषज्ञों की टीम गठित की जानी चाहिये जो सामाजिक लेखापरीक्षा समिति के सदस्यों (हितधारकों) के प्रशिक्षण हेतु ज़िम्मेदार हो।
  • सामाजिक अंकेक्षण के तरीकों पर प्रशिक्षण कार्यक्रम तैयार किये जाने चाहिये जैसे कि सामाजिक लेखापरीक्षा रिपोर्ट तैयार करना और अंकेक्षण करना एवं उसे ग्राम सभा में प्रस्तुत करना।
  • सामाजिक अंकेक्षण की प्रणाली को एक संस्थागत ढांँचे की स्थापना करने के लिये सहक्रियात्मक समर्थन और अधिकारियों द्वारा किसी भी निहित स्वार्थ के बिना प्रोत्साहित किये जाने की आवश्यकता होती है।

स्रोत: द हिंदू