छोटे शहरों में प्रवासन | 18 May 2019

चर्चा में क्यों ?

हाल ही में विश्व आर्थिक मंच (World Economic Forum) द्वारा एक रिपोर्ट प्रकाशित की गई जिसका शीर्षक ‘प्रवास एवं शहरों पर उसके प्रभाव' (Migration and its impacts on cities) था।

इसमें कहा गया कि अंतर्राज्यीय प्रवास में तेज़ी से वृद्धि का कारण यह है कि लोग अब बड़े शहरों के स्थान पर छोटे शहरों में बसने को प्राथमिकता दे रहे हैं।

प्रमुख बिंदु

  • आकर्षक वेतन, रोज़गार के बढ़ते अवसरों एवं जीविका चलाने हेतु कम खर्च जैसे मुद्दों ने प्रवासियों का ध्यान छोटे शहरों की ओर आकर्षित किया है एवं यह छोटे शहर महानगरों में परिवर्तित हो रहे हैं।
  • विश्व आर्थिक मंच की इस रिपोर्ट के अनुसार छोटे शहरों का तेज़ी से विस्तार हो रहा है। लेकिन इसके साथ ही बढ़ती बुनियादी ढाँचे की मांग से निपटने के लिये इन्हें संघर्ष करना पड़ रहा है क्योंकि राजस्व प्राप्ति के संसाधन घट रहे हैं।
  • मनरेगा प्रभाव (MNREGA Effect) - फरवरी 2019 में ग्रामीण विकास मंत्रालय ने राज्यसभा में बताया कि राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण कार्यालय (National Sample Survey Office -NSSO) ने 2014-15, 2015-16 और 2017-18 के दौरान प्रवास को लेकर  सर्वेक्षण नहीं किया था। इसलिये मंत्रालय के पास ताज़ा आँकड़े उपलब्ध नहीं हैं। लेकिन इसके साथ ही यह दावा भी किया कि सरकार ने ग्रामीण लोगों के पलायन को रोकने के लिये बहुत सी योजनाएँ चला रखी हैं जिनके अंतर्गत गाँवों में बुनियादी ढाँचे के निर्माण से लेकर ग्रामीणों के जीवन स्तर को सुधारने के प्रयास किये जा रहे हैं।
  • सरकार ने कहा कि भारत जैसी बाज़ारवादी अर्थव्यवस्था में बेहतर आर्थिक अवसरों की तलाश में शामिल लोगों की आवाज़ाही बहुत अधिक है, इसलिये सरकार  महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोज़गार गारंटी योजना (Mahatma Gandhi National Rural Employment Guarantee Scheme-MNREGA)  जैसे कार्यक्रमों से इस तरह के प्रवास को कम करने में सफल रही है।
  • निरंतर प्रवास (Unabated Migration)- हमारे देश में लोग आजीविका की तलाश में एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाते हैं उदहारण के लिये अगर हम पुणे एवं मुंबई में तुलना करते हैं  तो ऐसा लगता है कि आज लोगों का ध्यान मुंबई से हटकर पुणे पर जाता है क्योंकि मुंबई में पहले से ही बहुत अधिक जनसंख्या है एवं रहने-खाने का खर्चा भी बहुत ज़्यादा है।
  • पुणे में मुंबई की तुलना में शिक्षा, चिकित्सा आदि सभी क्षेत्रों में सुविधाएँ उपलब्ध होने के साथ ही रोज़गार के भी बेहतर अवसर हैं।अतः यह दृष्टिकोण उन सभी भारतीय नागरिकों पर लागू होता है जो नौकरी एवं शिक्षा की तलाश में प्रवास करते हैं।
  • आर्थिक सर्वेक्षण 2016-17  में पाया गया कि ऐसा केवल पुणे के मामले  में ही नहीं है बल्कि यह प्रतिस्पर्द्धा गुजरात और महाराष्ट्र के मध्य भी देखने को मिलती है जहाँ सूरत व मुंबई के प्रतिस्पर्द्धी शहर के रूप में सामने आया है एवं उसने मुंबई के साथ ही उसके आसपास के ज़िलों के प्रवासियों का ध्यान अपनी ओर खींचा है। यही स्थिति जयपुर और चंडीगढ़ (दिल्ली में) में भी  देखने को मिल रही है।

शहरों में प्रवासियों की बढ़ती संख्या (Urban Agglomeration)

  • सूरत, फरीदाबाद, और लुधियाना में लगभग 55% प्रवासी लोग हैं, जबकि जयपुर उपनगर के रूप में विस्तार के साथ ही शहरी समूह के रूप में बढ़ रहा है।
  • वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार, मेट्रो सिटीज़ (जिनकी जनसंख्या 1 लाख से ऊपर है) में प्रवासियों की संख्या बढ़ रही है। वर्ष 2001 में मेट्रो सिटीज़ की संख्या 441 थी। जिनकी कुल आबादी में 62.29% शहरी आबादी थी।
  • जबकि वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार, मेट्रो सिटीज़ की संख्या बढ़कर 468 हो गई, इसकी कुल जनसंख्या में शहरी आबादी बढ़कर 70.24% हो गई। ये आँकड़े चकित करने वाले नहीं हैं, ऐसा इसलिये हुआ है क्योंकि जो कार्य-बल कृषि के क्षेत्र में लगा था उसमें गिरावट दर्ज की गई है। वर्ष 2001 में कृषि क्षेत्र में  कार्यरत लोगों की संख्या 58.2% थी जो 2011 आते-आते घटकर 54.6% रह गई।

संसाधनों की कमी (Resource Crunch)

  • छोटे शहरों के नगर निकायों को संसाधनों की कमी के कारण आबादी को समायोजित करने के लिये बहुत सी दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है।
  • नगरपालिका क्षेत्र का कुल राजस्व देश के सकल घरेलू उत्पाद का केवल 0.75 प्रतिशत है, जबकि दक्षिण अफ्रीका का 6 प्रतिशत, ब्राजील का 5 प्रतिशत और पोलैंड का 4.5 प्रतिशत है।

अर्थशास्त्री और नियोजन विशेषज्ञ ईशर जज अहलूवालिया के अनुसार, हमारे देश में अभी भी शहरीकरण की योजना बनाने और योजनाओं के क्रियान्वयन की अपर्याप्त समझ होने के कारण भारत निवासियों को बेहतर जीवन स्तर प्रदान करने और एक बेहतर निवेश माहौल विकसित करने एवं उद्यमियों और नवोन्मेषकों को आकर्षित नहीं कर सका हैं।

राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण कार्यालय (National Sample Survey Office-NSSO)

  • राष्ट्रीय प्रतिदर्श सर्वेक्षण कार्यालय (एनएसएसओ) का प्रमुख एक महानिदेशक होता है जो अखिल भारतीय आधार पर विभिन्न क्षेत्रों में व्यापक स्तर पर प्रतिदर्श सर्वेक्षण करने के लिये जिम्मेदार होता हैं।
  • प्रारंभिक आँकड़े विभिन्न सामाजिक-आर्थिक विषयों को लेकर  राष्ट्रव्यापी स्तर पर घरों का सर्वेक्षण, वार्षिक औद्योगिक सर्वेक्षण (एएसआई) आदि करके एकत्र किये जाते हैं। इन सर्वेक्षणों के अलावा, एनएसएसओ ग्रामीण और शहरों से संबंधित डेटा एकत्र करता है।

मनरेगा क्या है?

  • ग्रामीण भारत को ‘श्रम की गरिमा’ से परिचित कराने वाला ‘मनरेगा’ रोज़गार की कानूनी गारंटी देने वाला विश्व का सबसे बड़ा सामाजिक कल्याणकारी कार्यक्रम है, जो प्रत्येक परिवार के अकुशल श्रम करने के इच्छुक वयस्क सदस्यों के लिये 100 दिनो  के गारंटीयुक्त रोज़गार, दैनिक बेरोज़गारी भत्ता और परिवहन भत्ता (5 किमी. से अधिक दूरी की दशा में) का प्रावधान करता है।
  • ध्यातव्य है कि सूखाग्रस्त क्षेत्र और जनजातीय इलाकों में मनरेगा के तहत 150 दिनों के रोज़गार का प्रावधान है।
  • मनरेगा एक राष्ट्रव्यापी कार्यक्रम है। वर्तमान में इस कार्यक्रम के दायरे से कुछ ऐसे चंद ज़िले ही बाहर हैं जो पूर्णरूप से शहरों की श्रेणी में आते हैं। इसके अंतर्गत मिलने वाली मज़दूरी के निर्धारण का अधिकार केंद्र एवं राज्य सरकारों के पास है। गौरतलब है कि जनवरी 2009 से केंद्र सरकार सभी राज्यों के लिये अधिसूचित मनरेगा मजदूरी दरों को प्रतिवर्ष संशोधित करती है।
  • प्रावधान के मुताबिक, मनरेगा लाभार्थियों में एक-तिहाई महिलाओं का होना अनिवार्य है। साथ ही विकलांग एवं अकेली महिलाओं की भागीदारी को बढ़ाने का प्रावधान किया गया है।
  • हाल  के मनरेगा आँकड़ो के अनुसार 13 करोड़ परिवारों के लगभग 28 करोड़ कामगारों के पास जॉब कार्ड उपलब्ध हैं। नेशनल काउंसिल ऑफ एप्लाइड इकोनॉमिक रिसर्च (NCAER) की रिपोर्ट के मुताबिक, मनरेगा शुरू होने से पहले 42% ग्रामीण जनसंख्या गरीबी रेखा के नीचे थी। मनरेगा की शुरुआत के बाद इसमें ग्रामीण गरीब जनसंख्या के 30% की भागीदारी रही है। रिपोर्ट की मानें तो गरीब व सामाजिक रूप से कमज़ोर वर्गों, जैसे-मज़दूर, आदिवासी, दलित एवं छोटे सीमांत कृषकों के बीच गरीबी कम करने में मनरेगा की महत्त्वपूर्ण भूमिका रही है।
  • मनरेगा के चलते ग्रामीण श्रम बाज़ार में मज़दूरी में वृद्धि हुई है तथा श्रमिकों की मोलभाव करने की क्षमता (Bargaining power) भी बढ़ी है। मनरेगा से जुड़े लोगों द्वारा संगठित क्षेत्र से ऋण लेने की दर में इजाफा हुआ है जिससे साहूकारों पर निर्भरता काफी घटी है।

विश्व आर्थिक मंच (World Economic Forum)

  • विश्व आर्थिक मंच सार्वजनिक-निजी सहयोग हेतु एक अंतर्राष्ट्रीय संस्था है, जिसका उद्देश्य विश्व के प्रमुख व्यावसायिक, अंतर्राष्ट्रीय राजनीति, शिक्षाविदों, बुद्धिजीवियों तथा अन्य प्रमुख क्षेत्रों के अग्रणी लोगों के लिये एक मंच के रूप में काम करना है।
  • यह स्विट्ज़रलैंड में स्थित एक गैर-लाभकारी संस्था है और इसका मुख्यालय जिनेवा में है।
  • इस फोरम की स्थापना 1971 में यूरोपियन प्रबंधन के नाम से जिनेवा विश्वविद्यालय में कार्यरत प्रोफेसर क्लॉस एम. श्वाब ने की थी।
  • इस संस्था की सदस्यता अनेक स्तरों पर प्रदान की जाती है और ये स्तर संस्था के काम में उनकी सहभागिता पर निर्भर करते हैं।
  • इसके माध्यम से विश्व के समक्ष मौजूद महत्त्वपूर्ण आर्थिक एवं सामाजिक मुद्दों पर परिचर्चा का आयोजन किया जाता है।

स्रोत: द हिंदू बिज़नेस लाइन