लघु वित्त बैंक | 14 Mar 2019

चर्चा में क्यों?

  • इनवेस्टमेंट इन्फॉर्मेशन एंड क्रेडिट एजेंसी (Investment Information and Credit Agency- ICRA) ने हाल ही में अपनी एक रिपोर्ट में कहा कि अगर वित्तीय वर्ष 2023 तक 4000-6000 करोड़ की बाह्य पूंजी उपलब्ध हो तो लघु वित्त बैंकों (Small Financial Banks- SFBs) में 20-30% वार्षिक दर से वृद्धि की संभावना है।

प्रमुख बिंदु

  • लघु वित्त बैंकों ने विविधीकरण के माध्यम से व्यावसायिक जोखिमों को कम करने के अलावा, प्रबंधन, जमा और अपने इक्विटी पर बेहतर रिटर्न के तहत परिसंपत्तियों में वृद्धि दर्ज़ की है।
  • दिसंबर 2018 तक इन बैंकों ने प्रबंधन के तहत परिसंपत्तियों में 33% की वार्षिक वृद्धि (लगभग 64,325 करोड़ रुपए) की है।
  • ये बैंक अपने उत्पादों में विविधता लाने में भी सक्षम हुए हैं, जिसके कारण परिसंपत्ति वर्ग में माइक्रोफाइनेंस की हिस्सेदारी, जो मार्च 2017 में 60% थी, दिसंबर 2018 में 44% तक गिर गई।
  • मार्च 2018 के 9% से दिसंबर 2018 तक 5.8% घटकर सकल एनपीए के साथ इन बैंकों के परिसंपत्ति गुणवत्ता संकेतकों (Asset Quality Indicators) में सुधार हुआ है।
  • रिपोर्ट में कहा गया है कि शाखाओं की स्थापना, सिस्टम अपग्रेड और नियुक्तियों ने इन बैंकों के लिये परिचालन व्यय अनुपात (Operating Expense Ratio) को उच्च रखा है। लेकिन अप्रैल-दिसंबर 2018 के दौरान सुधार के कुछ संकेत दिखाई दिये।
  • ज्ञातव्य है कि ICRA 1991 में अग्रणी वित्तीय/निवेश संस्थानों, वाणिज्यिक बैंकों द्वारा स्थापित भारतीय स्वतंत्र और पेशेवर निवेश सूचना और क्रेडिट रेटिंग एजेंसी है।

क्या होती हैं SFBs?

  • इन बैंकों की स्थापना छोटी व्यावसायिक इकाइयों, छोटे और सीमांत किसानों, सूक्ष्म और लघु उद्योगों और असंगठित क्षेत्र की संस्थाओं जैसे अर्थव्यवस्था के कुछ अदम्य क्षेत्रों को वित्तीय समावेशन की सुविधा प्रदान करने के लिये की गई है।
  • वित्तीय समावेशन पर नचिकेत मोर समिति द्वारा इनकी स्थापना की सिफ़ारिश की गई थी।
  • यह वाणिज्यिक बैंकों (Commercial Banks) का एक छोटा और सीमित संस्करण है जो कि जमा ले सकते हैं और ऋण दे सकते हैं।
  • एस.एफ.बी. की स्थापना के लिये न्यूनतम पूंजी 100 करोड़ रुपए होनी चाहिये।
  • यह अन्य उत्पाद जैसे कि बीमा, म्युचुअल फंड आदि बेच सकते हैं और एक पूर्ण वाणिज्यिक बैंक का आकार ले सकते हैं।


स्रोत: द हिंदू