कौशल प्रमाणन | 25 Mar 2021

चर्चा में क्यों?

कौशल विकास एवं उद्यमिता मंत्रालय ने सभी सरकारी विभागों से यह सुनिश्चित करने को कहा है कि सरकारी अनुबंधों के तहत संलग्न श्रमिकों के पास उनके कौशल का आधिकारिक प्रमाणपत्र होना चाहिये।

  • प्रारंभ में वर्ष 2021-22 में कुल श्रमबल के 10 प्रतिशत हिस्से को प्रमाणित किया जा सकता है। वर्ष 2026-27 तक इसे उत्तरोत्तर 100 प्रतिशत तक बढ़ाने का प्रयास किया जाएगा।

प्रमुख बिंदु

इस कदम की आवश्यकता

  • प्रशिक्षित कर्मचारियों का निम्न स्तर: आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण (2018-19) की मानें तो भारत के समग्र कार्यबल का केवल 2.4 प्रतिशत हिस्सा ही औपचारिक रूप से प्रशिक्षित है।
    • भारत के कौशल नियामक, नेशनल काउंसिल फॉर वोकेशनल एजुकेशन एंड ट्रेनिंग ने 4,000 भूमिकाओं के लिये कौशल प्रमाणन प्रणाली को मानकीकृत किया है, ताकि श्रम बाज़ार की संरचना को व्यापक पैमाने पर अकुशल से कुशल कार्यबल में बदला जा सके। 
  • अनौपचारिक और कम वेतन: प्रायः सरकारी अनुबंधकर्त्ता अपनी श्रम आवश्यकताओं के लिये कम वेतन वाले अनौपचारिक श्रमिकों पर निर्भर रहना पसंद करते हैं।
  • विरोधाभासी स्थिति: इसे एक विरोधाभासी स्थिति ही माना जाएगा, जिसमें सरकार अपने स्वयं की परियोजनाओं के लिये कुशल मानव शक्ति के उपयोग पर ज़ोर दिये बिना कार्यबल में कौशल को बढ़ावा देने का प्रयास कर रही थी। 

लाभ

  • कौशल मांग में वृद्धि: इस प्रकार के नियमन से स्वयं उद्योग और श्रम बल में कौशल को लेकर मांग बढ़ जाएगी, जहाँ कौशल के लिये भुगतान करना पसंद किया जाएगा, इससे फंडिंग के माध्यम से कौशल में बढ़ोतरी करने की सरकार की वर्तमान प्रणाली को समाप्त किया जा सकेगा।
  • वेतन में सुधार: इसके परिणामस्वरूप नियुक्त किये जाने वाले कुशल श्रम बल के वेतन में भी सुधार होगा।
  • प्रमाणित कौशल की संस्कृति का विकास: सरकार और सरकारी अनुबंध के तहत संलग्न श्रमबल की संख्या को देखते हुए यह नियम देश के युवाओं को कौशल आकांक्षी बनाएगा और प्रमाणित कौशल की संस्कृति के विस्तार में मदद करेगा।
  • उत्पादकता और गुणवत्ता में सुधार: इससे सरकारी अनुबंध कार्यों की उत्पादकता और गुणवत्ता में सुधार होगा।

चुनौतियाँ

  • अपर्याप्त प्रशिक्षण क्षमता: रोज़गार-संबद्ध प्रशिक्षितों की कमी भारत में बेरोज़गारी दर में बढ़ोतरी करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा रही है।
  • उद्योगों की सीमित भूमिका: अधिकांश प्रशिक्षण संस्थानों में उद्योग क्षेत्र की भूमिका सीमित होने के कारण प्रशिक्षण की गुणवत्ता तथा प्रशिक्षण के उपरांत रोज़गार एवं वेतन का स्तर निम्न बना हुआ है। 
  • विद्यार्थियों में कम आकर्षण: औद्योगिक प्रशिक्षण संस्थान (ITI) और पॉलिटेक्निक जैसे कौशल संस्थानों में नामांकन, उनकी क्षमता की तुलना में काफी कम है। इसका मुख्य कारण कौशल विकास कार्यक्रमों को लेकर युवाओं में कम जागरूकता को माना जाता है।
  • नियोक्ताओं का रवैया: भारत में बेरोज़गारी का विषय केवल कौशल संबंधी समस्या नहीं है, बल्कि यह इनकी नियुक्ति के प्रति उद्योगपतियों और छोटे तथा मध्यम उद्यमों की अनिच्छा का भी प्रतिनिधित्व करता है।
    • बैंकों की गैर-निष्पादित परिसंपत्तियों (NPAs) के परिणामस्वरूप ऋण तक सीमित पहुँच के कारण निवेश की दर में गिरावट आई है और इस तरह रोज़गार सृजन पर नकारात्मक प्रभाव पड़ा है।

कौशल विकास से संबंधित कुछ योजनाएँ

  • औद्योगिक प्रशिक्षण केंद्र (ITIs): वर्ष 1950 में संकल्पित औद्योगिक प्रशिक्षण केंद्र (ITIs) का उद्देश्य भारत में मौजूदा प्रशिक्षण पारिस्थितिकी तंत्र का विस्तार और आधुनिकीकरण करना है।
  • प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना (PMKVY): वर्ष 2015 में शुरू की गई इस योजना का उद्देश्य भारत के युवाओं को मुफ्त कौशल प्रशिक्षण मार्ग प्रदान करना है।
    • प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना 3.0: इसे भारत के युवाओं को रोज़गारपरक कौशल में दक्ष बनाने हेतु वर्ष 2021 में लॉन्च किया गया है, जिसमें 300 से अधिक कौशल पाठ्यक्रम उपलब्ध हैं।
  • पूर्व शिक्षण मान्यता (RPL) कार्यक्रम: व्यक्तियों द्वारा अधिगृहीत पूर्व कौशल को मान्यता प्रदान करने के लिये इस कार्यक्रम की शुरुआत वर्ष 2015 में की गई थी। यह प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना (PMKVY) के प्रमुख घटकों में से एक है।
    • इसके तहत एक व्यक्ति का मूल्यांकन कौशल के एक निश्चित सेट के साथ या पूर्व शिक्षण अनुभव के आधार पर किया जाता है और उसे राष्ट्रीय कौशल योग्यता फ्रेमवर्क (NSQF) के अनुसार ग्रेड के साथ प्रमाणित किया जाता है।
  • कौशल प्रबंधन और प्रशिक्षण केंद्र प्रत्‍यायन (SMART): यह देश के कौशल पारिस्थितिकी तंत्र में प्रशिक्षण केंद्रों के प्रत्यायन, ग्रेडिंग, संबद्धता और निरंतर निगरानी पर केंद्रित एक एकल विंडो आईटी एप्लीकेशन प्रदान करता है।
  • आजीविका संवर्द्धन हेतु कौशल अधिग्रहण और ज्ञान जागरूकता (SANKALP) योजना: यह योजना अभिसरण एवं समन्वय के माध्यम से ज़िला-स्तरीय कौशल पारिस्थितिकी तंत्र पर ध्यान केंद्रित करती है। यह विश्व बैंक के सहयोग से शुरू की गई एक केंद्र प्रायोजित योजना है।
  • प्रधानमंत्री युवा योजना (युवा उद्यमिता विकास अभियान): वर्ष 2016 में शुरू किये गए इस कार्यक्रम का उद्देश्य उद्यमिता शिक्षा और प्रशिक्षण के माध्यम से उद्यमिता विकास के लिये एक सक्षम पारिस्थितिकी तंत्र बनाना; उद्यमशीलता समर्थन नेटवर्क की वकालत करना तथा आसान पहुँच सुनिश्चित करना और समावेशी विकास के लिये सामाजिक उद्यमों को बढ़ावा देना है।
  • कौशल्याचार्य पुरस्कार: इस पुरस्कार को कौशल प्रशिक्षकों द्वारा दिये गए योगदान को मान्यता देने और अधिक प्रशिक्षकों को कौशल भारत मिशन में शामिल होने के लिये प्रेरित करने के उद्देश्य से शुरू किया गया था।
  • ‘स्कीम फॉर हायर एजुकेशन यूथ इन अप्रेंटिसशिप एंड स्किल्स’ अथवा ‘श्रेयस’: इस योजना की शुरुआत राष्ट्रीय शिक्षुता प्रोत्साहन योजना (NAPS) के माध्यम से वर्ष 2019 सत्र के सामान्य स्नातकों को उद्योग शिक्षुता अवसर प्रदान करने के उद्देश्य से की गई थी।
  • आत्मनिर्भर कुशल कर्मचारी-नियोक्ता मानचित्रण यानी ‘असीम’ (ASEEM) पोर्टल: वर्ष 2020 में शुरू किया गया यह पोर्टल कुशल लोगों को स्थायी आजीविका के अवसर खोजने में मदद करता है।

स्रोत: द हिंदू