भारत में एक साथ चुनाव | 26 Sep 2025

स्रोत: IE 

चर्चा में क्यों? 

16वें वित्त आयोग के अध्यक्ष अरविंद पनगढ़िया ने कहा कि बार-बार चुनाव होने से सुधारों में बाधा आती है साथ ही उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि एक साथ चुनाव कराने से शासन और नीति कार्यान्वयन में सुधार होता है।

एक साथ चुनाव का तात्पर्य क्या हैं? 

  • विषय: एक साथ चुनाव (एक राष्ट्र, एक चुनाव) का तात्पर्य लोकसभा और सभी राज्य विधानसभाओं के चुनाव एक ही समय पर करने से है। इसका मतलब यह नहीं है कि पूरे देश में एक ही दिन मतदान होगा, चुनाव कई चरणों में भी हो सकते हैं। 
    • पहले चार चुनाव के दौरान (1952-1967), लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के चुनाव एक साथ हुए थे, लेकिन बाद में संसद और विधानसभाओं के बार-बार समय से पहले भंग होने से यह चक्र बाधित हो गया, जिसके परिणामस्वरूप चुनावों में देरी हुई। 
    • "एक राष्ट्र, एक चुनाव" को प्रभावी बनाने के लिये एक साथ चुनाव संबंधी उच्च-स्तरीय समिति, 2023 की सिफारिशों के बाद संविधान (129वाँ संशोधन) विधेयक, 2024 और केंद्र शासित प्रदेश कानून (संशोधन) विधेयक, 2024 पेश किये गए। 
    • दोनों विधेयकों को विस्तृत जाँच के लिये संयुक्त संसदीय समिति को भेज दिया गया है। 
  • विधेयक के मुख्य प्रावधान: 
    • संविधान (129वाँ) संशोधन विधेयक, 2024: यह विधेयक अनुच्छेद 82A को शामिल करता है, जिससे लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के कार्यकाल को एकसमान किया जा सके। यह चुनाव आयोग (ECI) को एक साथ चुनाव कराने का अधिकार तथा चुनाव कार्यक्रम घोषित करते समय प्रत्येक राज्य विधानसभा के कार्यकाल की समाप्ति तिथि तय करने की शक्ति प्रदान करता है। 
      • विधेयक में अनुच्छेद 83 में संशोधन का प्रस्ताव है, जिसके अनुसार यदि लोकसभा अपना पूरा कार्यकाल पूरा करने से पहले भंग हो जाती है, तो अगली लोकसभा केवल शेष बचे कार्यकाल के लिये ही चलेगी।  
      • इसी प्रकार के संशोधन अनुच्छेद 172 में भी प्रस्तावित हैं, जो राज्य विधानसभाओं के कार्यकाल की अवधि से संबंधित है। 
    • केंद्रशासित प्रदेश कानून (संशोधन) विधेयक, 2024: यह विधेयक केंद्रशासित प्रदेश शासन अधिनियम, 1963, राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली शासन अधिनियम, 1991 तथा जम्मू और कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम, 2019 में संशोधन का प्रस्ताव करता है, ताकि केंद्रशासित प्रदेशों की विधानसभाओं का कार्यकाल लोकसभा के कार्यकाल के अनुरूप किया जा सके। 
    • प्रस्तावित विधेयक में स्थानीय निकायों (नगरपालिकाओं और पंचायतों) को शामिल नहीं किया गया है।

एक साथ चुनाव पर उच्च-स्तरीय समिति, 2023 

  • पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता वाली समिति ने दो चरणों में एक साथ चुनाव कराने का चक्र बहाल करने का प्रस्ताव रखा, पहले लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के चुनावों को एक साथ कराया जाए और उसके बाद 100 दिनों के भीतर नगरपालिका और पंचायत चुनावों को एक साथ कराया जाए। 
  • इसने सिफारिश की कि चुनावों को एक साथ कराने के लिये, राष्ट्रपति लोकसभा की पहली बैठक को "नियत तिथि" घोषित करेंगे। इस तिथि के बाद निर्वाचित राज्य विधानसभाएँ अगले संसदीय चुनावों तक ही कार्य करेंगी, जिससे भविष्य में एक साथ चुनाव सुनिश्चित होंगे। 
    • त्रिशंकु सदन या अविश्वास प्रस्ताव जैसे मामलों में, शेष कार्यकाल के लिये नए सिरे से चुनाव कराए जाएँगे। 
  • इसने एक साथ चुनावों के सुचारू संचालन को सुनिश्चित करने के लिये चुनाव आयोग और राज्य चुनाव निकायों द्वारा संयुक्त रूप से तैयार की गई एकल मतदाता सूची और फोटो पहचान पत्र प्रणाली का भी आह्वान किया। 

भारत में बार-बार होने वाले चुनाव शासन को किस प्रकार प्रभावित करते हैं? 

  • नीतिगत दबाब: केंद्र सरकार सुधारों में देरी कर सकती है क्योंकि उसे आने वाले राज्य चुनावों में राजनीतिक नुकसान का डर होता है। 
  • परियोजना कार्यान्वयन में बाधा: भारत निर्वाचन आयोग (ECI) की आदर्श आचार संहिता (MCC) चुनावी अवधि में खरीद, परियोजनाओं के क्रियान्वयन और नीतिगत फैसलों पर रोक लगा देती है। 
  • अल्पकालिक राजकोषीय फोकस: सरकारें दीर्घकालिक वित्तीय योजना बनाने के बजाय चुनाव जीतने के लिये लोकलुभावन खर्च और सब्सिडी पर ध्यान केंद्रित करती हैं। 
    • पाँच वर्षों के दोरान चुनावी चक्र राजकोषीय दबाव को कई गुना बढ़ा देते हैं, जिससे संसाधनों का असमान आवंटन होता है। 
  • पहचान की राजनीति और सामाजिक विखंडन: बार-बार होने वाले चुनाव जाति, वर्ग या धर्म आधारित पहचान की राजनीति को गति प्रदान करते हैं, जिससे सामाजिक विभाजन गहरा तथा दीर्घकालिक राष्ट्रीय एकता कमज़ोर होती है। 
  • प्रशासनिक बाधाएँ: वित्त आयोग जैसी परामर्शी और प्रशासनिक गतिविधियाँ चुनावों के दौरान बाधित या विलंबित हो सकती हैं। 
  • लोकतांत्रिक भागीदारी में कमी: लगातार चुनाव होने से मतदाताओं में थकान (voter fatigue) उत्पन्न होती है, जिससे उनका उत्साह घटता है और मतदान प्रतिशत में कमी आती है। इसका परिणाम यह होता है कि लोकतांत्रिक भागीदारी की गुणवत्ता और समावेशिता प्रभावित होती है। 

भारत में एक साथ चुनाव की क्या आवश्यकता है? 

  • शासन में स्थिरता को बढ़ावा देता है: चुनाव प्रचार से हटकर विकासात्मक गतिविधियों और नीति कार्यान्वयन पर ध्यान केंद्रित होता है। एक साथ चुनाव, कई चुनाव चक्रों से जुड़े व्यय को कम कर देते हैं, जिससे संसाधन आर्थिक विकास के लिये निशुल्क हो जाते हैं। 
  • नीति पक्षाघात को रोकता है: आदर्श आचार संहिता (MCC) के लंबे समय तक पालन को कम करता है और सरकारों को नीतियों के सुचारू कार्यान्वयन तथा शासन में बेहतर निरंतरता सुनिश्चित करने की अनुमति देता है। 
    • पार्टियों को निरंतर चुनावों के बजाय जनकल्याण के कार्यों पर ध्यान केंद्रित करने का अवसर मिलता है। 
  • संसाधनों के विचलन को कम करना: मतदान अधिकारियों और सिविल सेवकों की बार-बार तैनाती को सीमित करना तथा उन्हें मुख्य कर्त्तव्यों के लिये मुक्त करना। 
  • राजनीतिक अवसरों में वृद्धि: एक साथ चुनाव कराने से सभी स्तरों पर अधिक उम्मीदवारों की आवश्यकता होती है, जिससे नए नेताओं को उभरने का अवसर मिलता है और कुछ बड़े नामों का प्रभुत्व कम होता है, साथ ही पार्टियों के भीतर समावेशिता एवं व्यापक प्रतिनिधित्व को बढ़ावा मिलता है। 

भारत में एक साथ चुनाव कराने पर समिति/आयोग की सिफारिशें 

  • भारतीय चुनाव आयोग (1983): लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के लिये एक साथ चुनाव कराने की सिफारिश की। 
  • विधि आयोग की 170वीं रिपोर्ट (1999): दो चरणों में एक साथ चुनाव कराने के तरीके सुझाए गए। 
  • विधि एवं न्याय संबंधी संसदीय स्थायी समिति (2015): लागत बचत और सुचारू शासन का हवाला देते हुए इस विचार का समर्थन किया। राजनीतिक सहमति और क्रमिक कार्यान्वयन की आवश्यकता पर बल दिया। 
  • विधि आयोग की मसौदा रिपोर्ट (2018): मसौदा रिपोर्ट में कहा गया है कि एक साथ चुनाव कराने के लिये संवैधानिक संशोधन की आवश्यकता है और दो चरणों में समन्वित चुनाव कराने का प्रस्ताव दिया गया है।

एक साथ चुनाव से जुड़ी चुनौतियाँ क्या हैं? 

  • लॉजिस्टिक भार: एक साथ 96 करोड़ से अधिक मतदाताओं के लिये चुनाव कराना मतलब 1 मिलियन से अधिक मतदान केंद्रों का प्रबंधन करना, विशाल सुरक्षा बलों की व्यवस्था करना और अभूतपूर्व स्तर पर कार्मिकों की तैनाती करना होगा। 
    • मतदाता सूची को अद्यतन करना, कर्मचारियों को प्रशिक्षित करना, सुरक्षा का समन्वय करना और सभी राज्यों में एक साथ मतदाता जागरूकता अभियान चलाना अत्यंत जटिल कार्य होगा। 
  • प्रौद्योगिकी अवसंरचना: केवल वर्ष 2024 के चुनावों में ही 1.7 मिलियन इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनें (EVMs) और 1.8 मिलियन वोटर वेरीफाइड पेपर ऑडिट ट्रेल्स (VVPATs) का उपयोग किया गया। एक साथ चुनाव कराने के लिये इससे भी अधिक मशीनों, बैकअप और पूरी तरह सुरक्षित प्रणालियों की आवश्यकता होगी। 
  • संघीय चिंताएँ: चुनाव चक्रों के सामंजस्य हेतु राज्य विधानसभाओं का कार्यकाल घटाना या बढ़ाना, संविधान की संघीय मूल भावना को आहत कर सकता है। 
  • जवाबदेही: चुनावों की आवृत्ति घटने से सरकारों और नेताओं की जवाबदेही पर जनता का नियंत्रण कम हो सकता है। 
  • कानूनी अनिश्चितता: संशोधनों और नई प्रक्रियाओं को न्यायालय में चुनौती दी जा सकती है, जिससे कार्यान्वयन में देरी या जटिलताएँ उत्पन्न हो सकती हैं। 
  • क्षेत्रीय असमानताएँ: छोटे राज्यों और क्षेत्रीय पार्टियों को बड़े ‘राष्ट्रीयकृत’ चुनावों में नज़रअंदाज किये जाने का भय होता है। 
    • राष्ट्रीय मुद्दे और बड़ी पार्टियाँ चुनाव प्रचार में अधिक प्रभावशाली हो सकती हैं, जिससे स्थानीय समस्याओं एवं क्षेत्रीय पार्टियों पर ध्यान कम हो सकता है। 
  • आवश्यक संवैधानिक संशोधन: एक साथ चुनाव के लिये लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के कार्यकाल को निर्धारित करने तथा समय से पहले उनके भंग को रोकने हेतु अनुच्छेद 83, 85, 172 और 174 में संशोधन करना आवश्यक होगा। 
    • अनुच्छेद 356 में भी संशोधन की आवश्यकता होगी, ताकि राष्ट्रपति शासन जैसी परिस्थितियों को संभाला जा सके, जो राज्य विधानसभाओं को समय से पहले भंग कर सकता है।

भारत में एक साथ चुनाव कराने में कौन-से सुधार सहायक हो सकते हैं? 

  • कानूनी स्पष्टता: समन्वित चुनावों (Synchronized elections) के लिये स्पष्ट प्रक्रियाएँ, कार्यक्रम और आवश्यक संवैधानिक संशोधन स्थापित करना। 
    • समयपूर्व विघटन और उपचुनावों से निपटने के लिये स्पष्ट प्रावधान स्थापित करना। 
  • निर्वाचन अवसंरचना को सुदृढ़ बनाना: सभी तीनों स्तरों के लिये एकीकृत मतदाता सूची तैयार करना, मतदाता सत्यापन और परिणामों के लिये तकनीक का उपयोग करना तथा EVM व VVPAT प्रबंधन को उन्नत करना। 
  • जन-जागरूकता अभियान: राष्ट्रव्यापी अभियानों, गैर-सरकारी संगठनों (NGOs) और सामुदायिक संस्थाओं के माध्यम से नागरिकों को एक साथ चुनावों की प्रक्रिया तथा उसके लाभों के विषय में शिक्षित करना। 
  • क्षमता निर्माण: नए प्रौद्योगिकी और प्रक्रियाओं पर चुनाव अधिकारियों को प्रशिक्षित करना, ताकि कार्यान्वयन सुचारु एवं प्रभावी हो सके। 
  • चुनाव समय-सारिणी समायोजन: समन्वित चुनाव सुनिश्चित करने के लिये कुछ राज्यों के मतदान कार्यक्रम को आगे बढ़ाना या स्थगित करना। 

निष्कर्ष 

एक साथ चुनाव की अवधारणा सुव्यवस्थित चुनाव प्रबंधन और कुशल शासन की दिशा में एक महत्त्वपूर्ण कदम है। हालाँकि इसके कार्यान्वयन के लिये सावधानीपूर्वक संवैधानिक संशोधनों और राजनीतिक सहमति की आवश्यकता है, यह प्रशासनिक दक्षता, वित्तीय विवेकशीलता तथा निरंतर नीतिगत एकाग्रता का वादा करता है, जिससे भारत का लोकतांत्रिक ढाँचा मज़बूत होता है। 

दृष्टि मेन्स प्रश्न:

प्रश्न. एक राष्ट्र, एक चुनाव से राजकोषीय लागत कम हो सकती है, लेकिन संघवाद कमज़ोर हो सकता है। एक साथ चुनाव कराने के हालिया प्रस्तावों के संदर्भ में चर्चा कीजिये। 

UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ) 

प्रिलिम्स

प्रश्न. निम्नलिखित में से कौन-सा कारक किसी उदार लोकतंत्र में स्वतंत्रता की सर्वोत्तम सुरक्षा को नियत करता है? (2021) 

(a) एक प्रतिबद्ध न्यायपालिका 
(b) शक्तियों का केंद्रीकरण 
(c) निर्वाचित सरकार 
(d) शक्तियों का पृथक्करण 

उत्तर: (d)  

प्रश्न. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये- (2021) 

  1. भारत में ऐसा कोई कानून नहीं है जो प्रत्याशियों को किसी एक लोकसभा चुनाव में तीन निर्वाचन-क्षेत्रों से लड़ने से रोकता है।  
  2. 1991 में लोकसभा चुनाव में श्री देवी लाल ने तीन लोकसभा निर्वाचन-क्षेत्रों से चुनाव लड़ा था।   
  3. वर्तमान नियमों के अनुसार, यदि कोई प्रत्याशी किसी एक लोकसभा चुनाव में कई निवार्चन-क्षेत्रों से चुनाव लड़ता है, तो उसकी पार्टी को उन निर्वाचन-क्षेत्रों के उप-चुनावों का खर्च उठाना चाहिये, जिन्हें उसने खाली किया है बशर्ते वह सभी निर्वाचन-क्षेत्रों से विजयी हुआ हो। 

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? 

(a) केवल 1
(b)  केवल 2
(c) 1 और 3       
(d) 2 और 3 

उत्तर: (b) 


मेन्स

प्रश्न. राष्ट्रीय विधि निर्माता के रूप में व्यक्तिगत सांसद की भूमिका में कमी आ रही है, जिसके परिणामस्वरूप बहस की गुणवत्ता एवं परिणाम पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है। चर्चा कीजिये। (2019) 

प्रश्न: “भारत में स्थानीय स्वशासन प्रणाली, शासन का प्रभावी उपकरण सिद्ध नहीं हुई है।” इस कथन का आलोचनात्मक परीक्षण करते हुए इस स्थिति में सुधार हेतु उपाय बताइये। (2017)