रेटिंग एजेंसियों पर सेबी की सख्ती (Sebi tightens norms for rating agencies) | 14 Nov 2018

चर्चा में क्यों?

भारतीय प्रतिभूति एवं विनियामक बोर्ड ने भारत के बाज़ार नियामक ने क्रेडिट रेटिंग एजेंसियों के लिये खुलासा तथा समीक्षा करने संबंधी मानदंडों को सख्त कर दिया है। सेबी द्वारा उठाए गए इस कदम को आईएलऐंडएफएस (IL&FS) संकट के असर के तौर पर देखा जा रहा है।

नए दिशा-निर्देशों के अनुसार

  • क्रेडिट रेटिंग एजेंसियों को खुलासा करते समय कई कारकों को ध्यान में रखना होगा। इन कारकों में प्रमोटर सपोर्ट, सहयोगी कंपनियों के साथ संबंध और निकट अवधि भुगतान दायित्वों को पूरा करने के लिये नकदी की स्थिति शामिल है।
  • यदि रेटिंग का कारक मूल कंपनी या सरकार से समर्थन है तो प्रवर्तक का नाम और किसी भी उम्मीद के लिये दलील को रेटिंग एजेंसी द्वारा मुहैया कराया जाएगा। इसके अलावा जब रेटिंग के लिये सहयोगी कंपनियों या समूह कंपनियों को साथ मिलाया जाता है तो क्रेडिट रेटिंग एजेंसियों को इन सभी कंपनियों की सूची बनानी होगी साथ हही इन कंपनियों के एकीकरण का कारण भी बताना होगा।
  • क्रेडिट रेटिंग एजेंसियों को रेटिंग एक्शन के बारे में प्रेस रिलीज में नकदी के लिये एक सेक्शन जोडऩे की जरूरत है। इस सेक्शन में यह बताया जाना चाहिए कि निकट अवधि भुगतान दायित्वों को पूरा करने के संबंध में कंपनी की क्या स्थिति है। विशेषज्ञों के अनुसार, इस कदम से निवेशकों को कंपनी की नकदी की स्थिति को बेहतर ढंग से समझने में मदद मिलेगी।
  • पुनर्भुगतान के कार्यक्रम की निगरानी करते समय क्रेडिट रेटिंग एजेंसियों को कंपनी की नकदी की स्थिति में गिरावट का विश्लेषण करना होगा और साथ ही परिसंपत्ति-देनदारी में किसी तरह की अनियमितता पर भी ध्यान देना होगा।
  • सेबी द्वारा जारी नए दिशा-निर्देशों के मुताबिक, क्रेडिट रेटिंग एजेंसियों को अर्द्धवार्षिक आधार पर (31 मार्च और 30 सितंबर को) 15 दिनों के भीतर इन्वेस्टमेंट ग्रेड रेटिंग श्रेणी में त्वरित रेटिंग कार्यवाही के आधार पर डेटा प्रस्तुत करना होगा।

पृष्ठभूमि

  • क्रेडिट रेटिंग एजेंसियां किसी कंपनी की क्रेडिट योग्यता को प्रभावित करने वाले कारकों की निगरानी और विश्लेषण करती हैं और इस तरह बॉन्ड की कीमत तय करने में मदद करती हैं।
  • लेकिन IL&FS मामले में क्रेडिट रेटिंग एजेंसियों के कार्यप्रणाली से भारतीय बाज़ार नियामक संतुष्ट नहीं था। बाज़ार नियामक का मानना है कि क्रेडिट रेटिंग एजेंसियां कंपनी के शुरुआती संकेतों को भांपने में नाकाम रहीं जिसके चलते उन्होंने इस संबंध में कोई चेतावनी जारी नहीं की थी। इसके बाद सेबी ने रेटिंग एजेंसियों के वरिष्ठ अधिकारियों के साथ कई दौर की बैठकें की तथा अंततः ये दिशा-निर्देश जारी किये हैं।