जलवायु लक्ष्यों की पूर्ति के बावजूद समुद्री जल स्तर में वृद्धि होगी | 23 Feb 2018

चर्चा में क्यों? 

  • नेचर कम्युनिकेशंस जर्नल में प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार यदि सभी 200 राष्ट्र पेरिस जलवायु परिवर्तन समझौते के लक्ष्य, जिसमें इस सदी के अंत तक ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को निवल शून्य स्तर तक लाना भी शामिल है, को प्राप्त कर लें तो भी वर्ष 2300 तक समुद्र के स्तर में 0.7-1.2 मीटर तक की वृद्धि होगी।
  • ग्रीनलैंड से लेकर अंटार्कटिका तक बर्फ के पिघलने से प्रेरित जल स्तर की दीर्घकालिक वृद्धि को ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में कटौती करके सीमित किया जा सकता है।

प्रमुख बिंदु 

  • समुद्र के जल स्तर में वृद्धि शंघाई से लेकर लंदन जैसे शहरों, फ्लोरिडा या बांग्लादेश के तटवर्ती क्षेत्रों और प्रशांत क्षेत्र में स्थित किरिबाती या हिंद महासागर में स्थित मालदीव जैसे पूरे राष्ट्र के लिये ही एक खतरा है।
  • रिपोर्ट के अनुसार, महासागर का जल स्तर अनवरत रूप से बढ़ता रहेगा क्योंकि पहले से ही उत्सर्जित हीट-ट्रैपिंग औद्योगिक गैसें वायुमंडल में दीर्घकाल तक विद्यमान रहेंगी। इससे और अधिक बर्फ पिघलेगी।
  • इसके अलावा, चार डिग्री सेल्सियस (39.2°F) से अधिक तापमान पर पानी स्वाभाविक रूप से फैलता है।
  • रिपोर्ट में यह भी पाया गया कि वैश्विक उत्सर्जन में बढ़ोतरी के लिये 2020 के बाद प्रत्येक पाँच वर्ष की देरी का परिणाम वर्ष 2300 तक समुद्र के स्तर में 20 सेंटीमीटर (8 इंच) की अतिरिक्त वृद्धि के रूप में सामने आएगा।
  • प्राय: सागरों के स्तर में वृद्धि को एक धीमी प्रक्रिया के रूप में समझा जाता है जिसके बारे में समुदायों द्वारा कुछ ज्यादा नहीं किया जा सकता किंतु आने वाले 30 वर्ष इस संदर्भ में महत्त्वपूर्ण हैं। 
  • पेरिस समझौते में निर्धारित प्रतिज्ञाओं को पूरा करने के लिये सरकारें यथोचित मार्ग नहीं अपना रही है। जीवाश्म ईंधनों के दहन से निकलने वाली मुख्य ग्रीनहाउस गैस कार्बन डाइऑक्साइड के उत्सर्जन में वैश्विक स्तर पर तीन वर्ष तक स्थिरता के बाद पिछले साल काफी बढ़ोतरी देखने को मिली।
  • वहीं, संयुक्त राज्य अमेरिका द्वारा इसका प्रमुख कारण मानवीय गतिविधियों को बताते हुए पेरिस समझौते से बाहर निकलने के साथ ही अमेरिकी कोयला, तेल और प्राकृतिक गैस को बढ़ावा दिया जा रहा है।
  • 44 सदस्यीय लघु द्वीपीय राज्यों के गठबंधन (AOSIS) के अध्यक्ष मालदीव ने कहा कि ये निष्कर्ष विकसित राष्ट्रों द्वारा उत्सर्जन में कमी करने के लिये तेज़ कार्रवाई की आवश्यकता को दर्शाते हैं। 

लघु द्वीपीय राज्यों का गठबंधन (Alliance of Small Island States-AOSIS)

  • लघु द्वीपीय राज्यों का गठबंधन छोटे द्वीपों और तटीय देशों का एक गठबंधन है जो विकास और पर्यावरण संबंधी मुद्दों, विशेषतया वैश्विक जलवायु परिवर्तन के प्रतिकूल प्रभावों के लिये इनकी सुभेद्यता पर साझी चुनौतियों और चिंताओं का सामना कर रहे हैं।
  • इसकी स्थापना 1990 में हुई थी। यह मुख्यतः एक तदर्थ लॉबी के रूप में कार्य करता है और संयुक्त राष्ट्र प्रणाली के भीतर लघु द्वीपीय  विकासशील राज्यों (small island developing States-SIDS) के हितों की वकालत करता है।
  • संयुक्त रूप से SIDS समुदाय वैश्विक आबादी के लगभग 5% भाग का प्रतिनिधित्व करते हैं। 
  • एक अनुमान के मुताबिक़ लगभग 100 मिलियन लोग उच्च ज्वार के स्तर से एक मीटर की परास में रहते हैं।
  • इसके अतिरिक्त तटीय क्षेत्र की ओर अधिवासित होने वाले लोगों की संख्या बढ़ रही है, जिससे सुभेद्य आबादी और बुनियादी ढाँचे में वृद्धि हो रही है। इसलिये समुद्र स्तर में वृद्धि के प्रति अनुकूलन गतिविधियों में निवेश की आवश्यकता है।