मस्तिष्क ज़्वर के पीछे का विज्ञान | 17 Aug 2017

चर्चा में क्यों ? 
उत्तर प्रदेश के गोरखपुर के बाबा राघव दास मेडिकल कॉलेज अस्पताल में गंभीर रूप से बीमार एक के बाद एक 60 से अधिक बच्चों की मौत ने पूरे देश को हिला दिया है। उत्तर प्रदेश समेत देश के 14 राज्यों में इस बीमारी का असर है और रोकथाम के बजाय इलाज पर ध्यान देने की कारण यह बीमारी अभी भी बरकरार है। 

आज भी योगी आदित्यनाथ सरकार इस बीमारी का कारण खराब स्वच्छता को बता रही है।  हालाँकि स्थानिक स्क्रब टाइफस और मस्तिष्क ज़्वर  के बीच संबंध को स्वीकार किये बिना सरकार के लिये इस चिकित्सकीय आपात से निपटना कठिन है।  

मस्तिष्क ज़्वर का मूल कारण 

  • मणिपाल इंस्टीट्यूट ऑफ वायरस रिसर्च के गोविंदकरनार अरुणकुमार जैसे शोधकर्त्ताओं के आधुनिक शोध के अनुसार इस बीमारी का मूल कारण स्क्रब टाइफ़स  (scrub typhus) है। 
  • स्क्रब टाइफस एक घुनजन्य रोग है, जो उत्तर प्रदेश में स्थानिक है। 
  • 1978 में गोरखपुर में इस बीमारी का जब पहली बार पता लगाया गया था, तब अस्पताल के डॉक्टरों ने पुष्टि की थी कि इस बीमारी के फैलने का मुख्य कारण जापानी एन्सेफलाइटिस (जे.ई.) वायरस है। 

गलत दृष्टिकोण

  • स्क्रब टाइफस को समझने में इतनी देर इसलिये हुई क्योंकि वैज्ञानिकों को प्रत्येक रोगी के लक्षणों जैसे एंसेफेलाइटिस से पहले बुखार की अवधि और मस्तिष्क के अलावा अन्य अंगों, जैसे यकृत और प्लीहा की भागीदारी को विस्तार से पढ़ना चाहिये था।  
  • यदि इन लक्षणों पर शोध किया गया होता तो यह स्पष्ट हो गया होता कि यह महामारी केवल सामान्य वायरस के वज़ह से नहीं है। 

आँकड़ों की अनसुनी 

  • दूसरी चूक यह थी कि उत्तर प्रदेश प्रशासन वैज्ञानिकों की राय नहीं सुन रहा था, जिनका कहना था कि गोरखपुर की यह बीमारी पिछले कुछ वर्षों में बदल चुकी है। 
  • जब 2007 में जापानी एन्सेफलाइटिस टीकाकरण शुरू हुआ, तब इस बीमारी की घटनाएँ 20% से भी कम हो गईं, लेकिन एन्सेफलाइटिस के मामलों का आना ज़ारी रहा। तब शोधकर्त्ताओं को यकीन हो गया कि इसके पीछे जापानी एन्सेफलाइटिस के अलावा कुछ अन्य कारण भी हैं। 

मस्तिष्क ज़्वर : एक नज़र 

  • मस्तिष्क ज़्वर न सिर्फ गोरखपुर, बल्कि पूर्वी उत्तर प्रदेश के सोलह ज़िलों की समस्या है. इन ज़िलों में हर साल जून से नवंबर के बीच यह ज़्वर  कहर बरपाता और बड़ों से अधिक बच्चों को शिकार बनाता है।  
  • अपने नन्हे मासूमों को खो देने वाले माताओं-पिताओं की मानें तो इससे त्रस्त इस अंचल के लोगों ने अब इसको अपनी नियति-सी मान ली है।  आँकड़े गवाह हैं कि मस्तिष्क ज़्वर  से सत्तर के दशक से अब तक इस अंचल में एक लाख से ज्यादा मौतें हो चुकी हैं। 
  • केंद्रीय संचारी रोग नियंत्रण कार्यक्रम (एनवीबीडीसीपी) निदेशालय के आँकड़ों के अनुसार उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल, असम और बिहार समेत 14 राज्यों में एन्सेफलाइटिस का प्रभाव है, लेकिन पश्चिम बंगाल, असम, बिहार तथा उत्तर प्रदेश के पूर्वांचल में इस बीमारी का प्रकोप काफी अधिक है।  
  • उत्तर प्रदेश के गोरखपुर, महराजगंज, कुशीनगर, बस्ती, सिद्धार्थनगर, संत कबीरनगर, देवरिया और मऊ समेत 12 ज़िले इससे प्रभावित हैं। 
  • इस साल गोरखपुर मेडिकल कॉलेज में अब तक इस बीमारी से कुल 139 बच्चों की मृत्यु हुई है।   पूरे राज्‍य में यह आँकड़ा 155 तक पहुँच चुका है। पिछले साल 641 तथा वर्ष 2015 में 491 बच्चों की मौत हुई थी। 
  • गोरखपुर मेडिकल कालेज अस्पताल में पूर्वांचल के अलावा बिहार और नेपाल से भी मरीज इलाज कराने आते हैं।  पूर्वांचल में दिमागी बुखार का प्रकोप फैलने के कारण इस इलाके में सबसे अधिक अशिक्षा और पिछड़ापन है। लोगों में साफ-सफाई के प्रति जागरूकता की कमी है।