भारतीय पूंजीगत वस्तु क्षेत्र– चरण-II में प्रतिस्पर्द्धा बढ़ाने की योजना | 31 Jan 2022

प्रिलिम्स के लिये:

पूंजीगत सामान, प्रत्यक्ष विदेशी निवेश, मुक्त व्यापार समझौता।

मेन्स के लिये:

भारतीय अर्थव्यवस्था में पूंजीगत वस्तु क्षेत्र का महत्त्व, सरकारी नीतियाँ और हस्तक्षेप।

चर्चा में क्यों?

भारी उद्योग मंत्रालय ने भारतीय पूंजीगत वस्तु क्षेत्र– चरण-II में प्रतिस्पर्द्धा बढ़ाने की योजना की अधिसूचना जारी कर दी है, ताकि सामान्य प्रौद्योगिकी विकास और सेवा अवसंरचना को सहायता प्रदान की जा सके।

प्रमुख बिंदु

  • परिचय:
    • पूंजीगत वस्तु क्षेत्र में प्रतिस्पर्द्धा बढ़ाने वाली इस योजना के दूसरे चरण का उद्देश्‍य पहले चरण की प्रायोगिक योजना के प्रभाव को विस्तार देना और उसे आगे बढ़ाना है। इस तरह वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्द्धा योग्य पूंजीगत वस्तु क्षेत्र की मज़बूत रचना करके उसमें तेज़ी लाई जाएगी। उल्लेखनीय है कि यह क्षेत्र निर्माण क्षेत्र में कम से कम 25 प्रतिशत का योगदान करता है।
      • प्रौद्योगिकी विकास और बुनियादी ढाँचे के निर्माण को प्रोत्साहित करने हेतु नवंबर 2014 में 'भारतीय पूंजीगत वस्तु क्षेत्र में प्रतिस्पर्द्धा में वृद्धि' योजना को अधिसूचित किया गया था।
  • वित्तीय परिव्यय:
    • इस योजना में 975 करोड़ रुपए के बजटीय समर्थन और 232 करोड़ रुपए के उद्योग योगदान के साथ 1207 करोड़ रुपए का वित्तीय परिव्यय शामिल है।
  • घटक:
    • प्रौद्योगिकी नवाचार पोर्टल के माध्यम से प्रौद्योगिकियों की पहचान।
    • चार नए ‘उन्नत उत्कृष्टता केंद्रों’ की स्थापना और मौजूदा उत्कृष्टता केंद्रों का विस्तार।
    • पूंजीगत वस्तु क्षेत्र में कौशल को बढ़ावा देना-कौशल स्तर 6 और उससे ऊपर के लिये योग्यता पैकेज बनाना।
    • चार ‘कॉमन इंजीनियरिंग फैसिलिटी सेंटर्स’ (CEFCs) की स्थापना और मौजूदा CEFCs का संवर्द्धन।
    • मौजूदा परीक्षण और प्रमाणन केंद्रों का विस्तार।
    • दस ‘इंडस्ट्री एक्सेलरेटर्स फॉर टेक्नोलॉजी डेवलपमेंट’ की स्थापना करना।

भारतीय पूंजीगत वस्तु क्षेत्र:

  • पूंजीगत वस्तुएँ:
    • पूंजीगत वस्तुएँ (Capital Goods) भौतिक संपत्तियांँ हैं जिन्हें एक कंपनी उत्पादन प्रक्रिया में उत्पादों और सेवाओं के निर्माण हेतु उपयोग करती है तथा जिनका बाद में उपभोक्ताओं द्वारा  उपयोग किया जाता है।
    • पूंजीगत वस्तुओं में भवन, मशीनरी, उपकरण, वाहन और उपकरण शामिल हैं।
    • पूंजीगत वस्तुएंँ तैयार माल नहीं होतीं बल्कि उनका उपयोग माल को निर्मित करने के लिये किया जाता है।
    • पूंजीगत वस्तु क्षेत्र का गुणक प्रभाव होता है और उपयोगकर्त्ता उद्योगों के विकास पर इसका असर पड़ता है क्योंकि यह विनिर्माण गतिविधि के अंतर्गत आने वाले शेष क्षेत्रों को महत्त्वपूर्ण  इनपुट, यानी मशीनरी और उपकरण प्रदान करता है। 
  • परिदृश्य:
    • पूंजीगत वस्तु उद्योग का कुल विनिर्माण गतिविधि में 12% का योगदान है जो सकल घरेलू उत्पाद का लगभग 1.8% है।
    • यह लगभग 1.4 मिलियन प्रत्यक्ष और 7 मिलियन अप्रत्यक्ष रोज़गार प्रदान करता है।.
  • संबंधित नीतियांँ:
    • इस क्षेत्र के लिये किसी औद्योगिक लाइसेंस की आवश्यकता नहीं होती है।
    • स्वत: मार्ग (RBI के माध्यम से) पर 100% तक प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) की अनुमति है।
    • विदेशी सहयोगी को प्रौद्योगिकी हस्तांतरण, डिज़ाइन और ड्राइंग, रॉयल्टी आदि के लिये भुगतान की मात्रा की कोई सीमा नहीं है।
    • आमतौर पर अधिकतम मूल सीमा शुल्क दर ( maximum basic customs duty rate) 7.5-10% है।
    • भारत ने कई मुक्त व्यापार समझौते (FTA) दर्ज किये हैं, जिसमें शुल्क की दरें और भी कम हैं तथा परियोजना आयात सुविधा के तहत कम शुल्क दरें भी उपलब्ध हैं।
    • विदेश व्यापार महानिदेशालय (DGFT), वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय की विभिन्न योजनाओं के माध्यम से कच्चे माल, उपभोग्य सामग्रियों एवं घटकों के शुल्क मुक्त आयात की अनुमति देकर निर्यात को बढ़ावा दिया जाता है।

स्रोत: पी.आई.बी.