विदेशी अंशदान (विनियमन) संशोधन अधिनियम (FCRA), 2020 | 09 Apr 2022

प्रिलिम्स के लिये:

विदेशी योगदान (विनियमन) अधिनियम (FCRA), 2010

मेन्स के लिये:

विदेशी योगदान (विनियमन) संशोधन अधिनियम (FCRA), 2020, सर्वोच्च न्यायालय ने FCRA संशोधनों को बरकरार रखा, गैर-सरकारी संगठन (NGOs)

चर्चा में क्यों?

हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय (SC) ने विदेशी अंशदान (विनियमन) संशोधन अधिनियम (FCRA), 2020 की संवैधानिक वैधता को बरकरार रखा।

  • इसने माना कि विदेशी भेंट प्राप्त करना पूर्ण अधिकार नहीं हो सकता है, साथ ही इसे संसद द्वारा नियंत्रित किया जा सकता है।
  • वर्ष 2020 में भारत सरकार ने FCRA में संशोधन का प्रस्ताव दिया था, जिसने गैर-सरकारी संगठनों (NGOs), व्यक्तियों और अन्य संगठनों को विदेशों से योगदान किये गए धन को प्राप्त करने या उपयोग करने पर नए प्रतिबंध लगाए।

निर्णयों की मुख्य विशेषताएँ:

  • दवा बनाम मादक रूपांतरण : विदेशी अंशदान तब तक एक दवा की तरह कार्य करता है जब तक कि इसका उपयोग विवेकपूर्ण तरीके से किया जाता है।
    • हालाँकि विदेशी अंशदान का स्वतंत्र और अनियंत्रित प्रवाह उस मादक पदार्थ की तरह कार्य कर सकता है जिसमें राष्ट्र की संप्रभुता एवं अखंडता को प्रभावित करने की क्षमता होती है।
  • राजनीतिक विचारधारा की प्रभावशीलता: SC ने रेखांकित किया कि विदेशी अंशदान राजनीतिक विचारधारा को प्रभावित या थोप सकता है।
    • इस प्रकार FCRA संशोधन अनिवार्य रूप से सार्वजनिक व्यवस्था के हित में परिकल्पित है क्योंकि इसका उद्देश्य विदेशी स्रोतों से आने वाले दान या भेंट के दुरुपयोग को रोकना है।
  • वैश्विक उदाहरण: विदेशी दान प्राप्त करना पूर्ण या निहित अधिकार भी नहीं है।
    • ऐसा इसलिये है क्योंकि विदेशी अंशदान से प्रभावित राष्ट्रीय राजनीति की संभावना के सिद्धांत को विश्व स्तर पर मान्यता प्राप्त है।
  • कानून को कायम रखना: इस परिदृश्य में संसद के लिये यह आवश्यक हो गया था कि वह विदेशी अंशदान के प्रवाह और उपयोग को प्रभावी ढंग से विनियमित करने के लिये एक सख्त शासन प्रदान करे।

विदेशी अंशदान (विनियमन) अधिनियम (FCRA), 2010 क्या है?

  • भारत में व्यक्तियों के विदेशी धन को एफसीआरए अधिनियम के तहत विनियमित और गृह मंत्रालय (MHA) द्वारा कार्यान्वित किया जाता है।
    • लोगों को गृह मंत्रालय की अनुमति के बिना विदेशी योगदान स्वीकार करने की अनुमति है।
    • हालाँकि ऐसे विदेशी योगदान की स्वीकृति के लिये 25,000 रुपए की मौद्रिक सीमा निर्धारित की गई है।
  • अधिनियम यह सुनिश्चित करता है कि विदेशी योगदान प्राप्त करने वाले उस उद्देश्य का पालन करते हैं जिसके लिये यह योगदान प्राप्त किया गया है।
  • अधिनियम के तहत संगठनों को प्रत्येक पाँच वर्ष में अपना पंजीकरण कराना आवश्यक है।

अधिनियम में किये गए संशोधन:

  • विदेशी अंशदान स्वीकार करने पर प्रतिबंध: यह संशोधन लोक सेवकों को विदेशी अंशदान प्राप्त करने से रोकता है।
  • विदेशी योगदान का हस्तांतरण: यह किसी अन्य व्यक्ति को विदेशी योगदान के हस्तांतरण पर रोक लगाता है।
  • पंजीकरण के लिये आधार: पहचान दस्तावेज़ के रूप में विदेशी योगदान प्राप्त करने वाले व्यक्ति के सभी पदाधिकारियों, निदेशकों या प्रमुख पदाधिकारियों के लिये आधार संख्या अनिवार्य है।
  • FCRA खाता: विदेशी अंशदान केवल भारतीय स्टेट बैंक, नई दिल्ली की ऐसी शाखाओं में FCRA खाते के रूप में बैंक द्वारा निर्दिष्ट खाते में ही प्राप्त किया जाना चाहिये।
    • इस खाते में विदेशी अंशदान के अलावा कोई धनराशि प्राप्त या जमा नहीं की जानी चाहिये।
  • विदेशी अंशदान के उपयोग में प्रतिबंध: इसने सरकार को अप्रयुक्त विदेशी अंशदान के उपयोग को प्रतिबंधित करने की अनुमति दी।
    • ऐसा तब किया जा सकता है जब जाँच के आधार पर सरकार को लगता है कि ऐसे व्यक्ति ने FCRA के प्रावधानों का उल्लंघन किया है।
  • प्रशासनिक उपयोग को सीमित करना: यद्यपि पहले गैर-सरकारी संगठन प्रशासनिक उपयोग के लिये 50% तक धन का उपयोग कर सकते थे, नए संशोधन ने इस उपयोग को 20% तक सीमित कर दिया।

संशोधनों का उद्देश्य और संबंधित मुद्दे:

  • उद्देश्य: विदेशी योगदान के कई प्राप्तकर्त्ताओं ने इसका उपयोग उस उद्देश्य के लिये नहीं किया, जिसके लिये उन्हें FCRA 2010 के तहत पंजीकृत या पूर्व अनुमति दी गई थी।
    • हाल ही में केंद्रीय गृह मंत्रालय द्वारा उन छह (NGOs) के लाइसेंस निलंबित कर दिये गए हैं जिन पर धर्म परिवर्तन हेतु विदेशी योगदान (Foreign Contributions) का इस्तेमाल करने का आरोप लगाया गया था।
    • ऐसी स्थिति देश की आंतरिक सुरक्षा पर प्रतिकूल प्रभाव डाल सकती थी।
    • इसका उद्देश्य विदेशी योगदान की प्राप्ति और उपयोग में पारदर्शिता तथा जवाबदेही को बढ़ाना एवं समाज के कल्याण के लिये कार्य कर रहे वास्तविक गैर-सरकारी संगठनों को मदद प्रदान करना है।
  • मुद्दे: संशोधनों में कुछ स्थानों पर इसकी आलोचना हुई कि नागरिक समाज संगठनों (Civil Society Organisations) पर इसका हानिकारक प्रभाव पड़ सकता है।
    • सरकार का उद्देश्य उन गैर-सरकारी संगठनों को नियंत्रित करना है जो संदिग्ध गतिविधियों में लिप्त हैं।
    • हालाँकि यह गैर-सरकारी संगठनों की विविधता को पहचानने में विफलता, जिसमें विश्व स्तर के संगठन भी शामिल हैं, वैश्विक स्तर पर उनकी मान्यता, प्रतिस्पर्द्धा  और रचनात्मकता को समाप्त कर देगी।

आगे की राह: 

  • NGOs  सरकारी योजनाओं को ज़मीनी स्तर पर लागू करने में मददगार होते हैं। वे उन अंतरालों को भरते हैं, जहांँ सरकार अपना काम सही से करने में विफल रहती है।
  • सरकार को अपने वैश्विक जुड़ाव के ढांँचे के रूप में वसुधैव कुटुम्बकम के प्राचीन भारतीय लोकाचार के साथ रहना चाहिये और सरकार के कार्यों की आलोचना करने वाले गैर-सरकारी संगठनों के खिलाफ प्रतिशोध की भावना के साथ कार्य नहीं करना चाहिये।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस