SC का बड़ा निर्णय: अधिकरण सुधार अधिनियम, 2021 के प्रमुख प्रावधान खारिज | 22 Nov 2025

प्रिलिम्स के लिये: भारत का सर्वोच्च न्यायालय, न्यायिक स्वतंत्रता, न्यायिक समीक्षा, अनुच्छेद 323-A और 323-B

मेन्स के लिये: भारत में शक्तियों का  पृथक्करण और न्यायिक स्वतंत्रता का सिद्धांत, न्यायिक बैकलॉग को कम करने में अधिकरण की भूमिका और सुधार, शक्तियों का पृथक्करण

स्रोत: द हिंदू

चर्चा में क्यों? 

भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने अधिकरण सुधार अधिनियम, 2021 के प्रमुख प्रावधानों को रद्द कर दिया, यह कहते हुए कि ये प्रावधान केंद्र सरकार को अधिकरण की नियुक्ति, कार्यकाल और संचालन पर अत्यधिक नियंत्रण प्रदान करते हैं।

  • न्यायालय ने कहा कि ऐसे प्रावधान न्यायिक स्वतंत्रता को कमज़ोर करते हैं और संवैधानिक सिद्धांतों का उल्लंघन करते हैं।
  • सर्वोच्च न्यायालय ने केंद्र को निर्देश दिया कि अधिकरण प्रशासन में स्वायत्तता और पारदर्शिता सुनिश्चित करने के लिये चार महीनों के भीतर एक राष्ट्रीय अधिकरण आयोग की स्थापना करे।

सर्वोच्च न्यायालय द्वारा रद्द किये गए अधिकरण सुधार अधिनियम, 2021 के प्रमुख प्रावधान क्या हैं?

  • नियुक्ति के लिये न्यूनतम आयु 50 वर्ष: इसे मनमाना माना गया और यह योग्य युवा अधिवक्ताओं एवं विशेषज्ञों को पात्रता से वंचित करता था, इसलिये इसे रद्द कर दिया गया।
    • यह पहले के SC निर्णयों का उल्लंघन था, जिनके अनुसार 10 वर्षों का अभ्यास करने वाले अधिवक्ता पात्र होते थे।
  • अध्यक्ष और सदस्यों का चार वर्षीय कार्यकाल: इसे अवैध घोषित किया गया क्योंकि छोटा कार्यकाल न्यायिक स्वतंत्रता और संस्थागत निरंतरता को कमज़ोर करता है। SC ने न्यूनतम पाँच वर्षीय कार्यकाल को पुनः स्थापित किया।
  • सरकार के लिये प्रत्येक रिक्त पद पर दो नामों की पैनल: इसे रद्द किया गया क्योंकि यह नियुक्तियों पर कार्यकारी प्रभुत्व को पुनर्स्थापित करता था।
    • न्यायालय ने निर्देश दिया कि प्रत्येक पद के लिये केवल एक नाम ही खोज-सह-चयन समिति (Search-cum-Selection Committee, SCSC) द्वारा अनुशंसित किया जाए, ताकि नियुक्तियों में अत्यधिक कार्यकारी विवेक को सीमित किया जा सके।
  • सिविल सेवकों के समान सेवा-शर्तें: अधिकरण के सदस्यों द्वारा कार्यकारी नहीं, बल्कि न्यायिक कार्य किये जाते हैं। उन्हें सिविल सेवकों के समकक्ष मानना शक्तियों के पृथक्करण के सिद्धांत का उल्लंघन था, इसलिये इसे अवैध घोषित किया गया।
  • सर्वोच्च न्यायालय के निर्णयों को विधायी रूप से निष्प्रभावी करना: यह अधिनियम मूलतः वर्ष 2021 के अधिकरण अध्यादेश के प्रावधानों को पुनः प्रस्तुत करता था, जिन्हें सर्वोच्च न्यायालय पहले ही निरस्त कर चुका था।
    • न्यायालय ने स्पष्ट किया कि न्यायिक समीक्षा संविधान की मूल संरचना का हिस्सा है और संसद पहले से अवैध घोषित किये गए प्रावधानों को दोबारा लागू करके बाध्यकारी निर्णय को निरस्त नहीं कर सकती।
    • संसद का कर्त्तव्य है कि वह दोष को दूर करे, न कि अवैध ठहराए गए प्रावधानों को पुनः दोहराए। न्यायालय के निर्देशों को दरकिनार करने का यह प्रयास संवैधानिक सर्वोच्चता का उल्लंघन था।

अधिकरण क्या है?

  • परिचय: अधिकरण अर्द्ध-न्यायिक निकाय होते हैं, जिनका उद्देश्य नियमित न्यायालयों पर पड़ने वाले बोझ को कम करना और विशिष्ट विवादों में तकनीकी विशेषज्ञता प्रदान करना होता है।
  • संवैधानिक प्रावधान: 42वाँ संविधान संशोधन अधिनियम,1976 भारत के संविधान में भाग XIV‑A को सम्मिलित करता है, जिसमें अनुच्छेद 323A और 323B शामिल हैं, जो अधिकरण की स्थापना के प्रावधान प्रदान करते हैं।
    • अनुच्छेद 323A संसद को यह अधिकार देता है कि वह केंद्र, राज्य, स्थानीय निकायों, सार्वजनिक निगमों और अन्य सार्वजनिक अधिकरणों के कर्मचारियों के सेवा संबंधी मामलों के लिये प्रशासनिक अधिकरण स्थापित कर सके।
    • अनुच्छेद 323B संसद और राज्य विधानसभाओं को कराधान, भूमिसुधार और औद्योगिक विवादों जैसे विषयों पर अधिकरण बनाने की अनुमति देता है।
    • वर्ष 2010 में सर्वोच्च न्यायालय ने स्पष्ट किया कि विधानमंडल केवल अनुच्छेद 323B में निर्दिष्ट विषयों तक सीमित नहीं है, बल्कि किसी भी विषय पर अधिकरण स्थापित कर सकते हैं जो सातवींअनुसूची में सूचीबद्ध है।
  • महत्त्व:
    • न्यायालयों का बोझ कम करना: ये अधिकरण विशिष्ट क्षेत्रों के मामलों को नियमित न्यायालयों से ग्रहण करते हैं।
    • सुलभता में वृद्धि: इनकी पीठ अक्सर पूरे देश में उपलब्ध होती हैं, जिससे वादियों के लिये पहुँच आसान होती है।
    • विशेषज्ञ ज्ञान: न्यायाधीश और तकनीकी सदस्य जटिल मुद्दों को अधिक प्रभावी ढंग से हल करते हैं।
      • केंद्रीय प्रशासनिक अधिकरण (CAT) जैसे निकाय सरकारी कर्मचारियों के लिये विवादों के शीघ्र निपटान में सहायक होते हैं।

भारत की अधिकरण प्रणाली से संबंधित प्रमुख मुद्दे क्या हैं?

  • न्यायिक स्वतंत्रता के लिये खतरा: अधिकरण सुधार अधिनियम, 2021 में केंद्र सरकार को अधिकरण सदस्यों की नियुक्तियों, कार्यकाल, वेतन और सेवा-शर्तों पर प्रमुख नियंत्रण प्रदान किया।
    • चूँकि सरकार अधिकरणों के समक्ष सबसे बड़ी वादी है, इस कार्यकारी प्रभुत्व से निष्पक्ष और स्वतंत्र निर्णय की आवश्यकता प्रभावित होती है और यह न्यायिक स्वतंत्रता के संवैधानिक सिद्धांतों, जो संविधान की मूल संरचना का हिस्सा हैं, का उल्लंघन करता है।
  • केंद्रीकृत निगरानी तंत्र का अभाव: न्यायालयों (जहाँ राष्ट्रीय न्यायिक डेटा ग्रिड मौजूद है) के विपरीत, अधिकरणों में वास्तविक समय के प्रदर्शन आँकड़ों की कमी है। 
    • एक पर्यवेक्षी निकाय की अनुपस्थिति पारदर्शिता, सुधार और साक्ष्य-आधारित नीति निर्माण को कमज़ोर करती है।
  • उच्च लंबित मामले: कई अधिकरणों पर लंबित मामलों का भार है। उदाहरण के लिये, केवल आयकर अपीलीय अधिकरण में वर्ष 2024 तक 6.7 ट्रिलियन रुपए विवादों में फँसे थे, जिससे राजस्व संग्रह और निवेशक विश्वास प्रभावित हुआ।
    • लंबे समय तक बनी रहने वाली रिक्तियाँ और नियुक्तियों की मंद गति विलंब को और बढ़ाती है, जिससे दक्षता प्रभावित होती है।
  • अल्प अवधि: न्यायाधिकरण के सदस्य अक्सर अल्पकालिक अवधि के लिये कार्य करते हैं, साथ ही उन्हें पुनर्नियुक्ति की संभावना रहती है। इससे कार्यपालिका का प्रभाव बढ़ जाता है, क्योंकि सदस्य पुनर्नियुक्ति सुनिश्चित करने हेतु सरकार के अनुरूप चलने का दबाव महसूस कर सकते हैं।
  • असमान प्रक्रियाएँ: विभिन्न न्यायाधिकरण विभिन्न नियमों, प्रारूपों और प्रक्रियाओं का पालन करते हैं। इस असमानता के कारण न्याय वितरण में असंगति होती है तथा वादी/प्रतिवादी के लिये भ्रम उत्पन्न होता है।
  • अधिकार क्षेत्र का ओवरलैप: कुछ मामलों में अधिकरणों के अधिकार क्षेत्र नियमित अदालतों के अधिकार क्षेत्र के साथ ओवरलैप कर जाते हैं। इसका परिणाम अधिकार क्षेत्र के संघर्ष, देरी और यह भ्रम होता है कि कुछ मामलों को कहाँ सुना जाना चाहिये।
  • न्यायाधिकरणों-विशिष्ट डेटा और अनुसंधान की कमी: न्यायाधिकरणों के लिये विशेष डेटा तथा अनुसंधान प्रणाली की कमी के कारण सुधार असंगठित एवं धीमी गति से होते हैं। इस कमी के कारण योजना बनाना, संसाधनों का आवंटन व साक्ष्य-आधारित नीतियों का मूल्यांकन कमज़ोर हो जाता है।

भारत के न्यायाधिकरण प्रणाली को कौन से उपाय मज़बूत कर सकते हैं?

  • राष्ट्रीय अधिकरण आयोग: सर्वोच्च न्यायालय ने केंद्र सरकार को निर्देश दिया है कि वह एक राष्ट्रीय अधिकरण आयोग स्थापित करना, जो अधिकरणों की नियुक्ति, प्रशासन और संचालन में स्वायत्तता, पारदर्शिता तथा एकरूपता सुनिश्चित करने के लिये एक आवश्यक संरचनात्मक सुरक्षा के रूप में काम करेगा।
  • प्रौद्योगिकी का उपयोग: दक्षता और पारदर्शिता बढ़ाने के लिये ई-फाइलिंग, आभासी सुनवाई, डिजिटल रिकॉर्ड और AI-आधारित केस प्रबंधन का विस्तार करना।
  • प्रक्रियाओं को सुगम बनाना: न्यायाधिकरणों में समानता सुनिश्चित करने, देरी कम करने और उपयोगकर्त्ता अनुभव बेहतर बनाने के लिये प्रक्रियात्मक नियमों को मानकीकृत करना।
  • अधिकार क्षेत्र की सीमाओं को स्पष्ट करना: भ्रम और फोरम शॉपिंग कम करने के लिये स्पष्ट विधायी दिशा-निर्देशों के माध्यम से अधिकरणों और अदालतों के बीच ओवरलैपिंग शक्तियों से बचें।
  • प्रशिक्षण और क्षमता निर्माण को बढ़ावा देना: निर्णयों की गुणवत्ता तथा निरंतरता सुधारने हेतु न्यायिक एवं विशेषज्ञ सदस्यों दोनों के लिये नियमित कानूनी व तकनीकी प्रशिक्षण प्रदान करना।

निष्कर्ष

सर्वोच्च न्यायालय का यह निर्णय इस बात को मज़बूत करता है कि न्यायाधिकरणों को वास्तविक स्वतंत्रता के साथ काम करना चाहिये और उन्हें कार्यकारी प्रभाव से मुक्त होना चाहिये। राष्ट्रीय न्यायाधिकरण आयोग और मानकीकृत प्रक्रियाओं के माध्यम से स्वायत्तता को मजबूत करना सार्वजनिक विश्वास बहाल करने के लिये आवश्यक है। एक सुधारित न्यायाधिकरण प्रणाली विशेष क्षेत्रों में तेज़, न्यायसंगत तथा अधिक प्रभावी न्याय प्रदान कर सकती है।

दृष्टि मेन्स प्रश्न:

प्रश्न. भारत की न्यायाधिकरण प्रणाली में संवैधानिक और संस्थागत चुनौतियों की समीक्षा करें। एक राष्ट्रीय न्यायाधिकरण आयोग इन मुद्दों को कैसे हल कर सकता है?

अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQs)

भारत में अधिकरण निर्माण में कौन-से संवैधानिक नियम लागू होते हैं?

अनुच्छेद 323A और 323B (42वें संशोधन से जोड़े गए) संसद तथा राज्य विधानसभाओं को महत्त्वपूर्ण फैसलों के लिये प्रशासनिक और विषय-विशिष्ट अधिकरण निर्माण का अधिकार प्रदान करते हैं।

उच्चतम न्यायलय ने ट्रिब्यूनल रिफॉर्म्स एक्ट, 2021 के नियमों को क्यों रद्द कर दिया?

न्यायालय ने पाया कि अधिनियम ने अपॉइंटमेंट, समय और सेवा की शर्तों पर बहुत ज़्यादा एग्जीक्यूटिव कंट्रोल दिया है — जो न्यायिक स्वतंत्रता को कमज़ोर करता है और शक्तियों के विभाजन का उल्लंघन करता है।

कोर्ट ने नेशनल ट्रिब्यूनल कमीशन के लिये क्या सुझाव दिया है?

अधिकरण नियुक्ति, प्रशासन और कामकाज में स्वायत्तता, पारदर्शिता और एक समान रूप देने के लिये एक प्रस्तावित स्वतंत्र पर्यवेक्षण निकाय।

UPSC सिविल सेवा परीक्षा विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)

प्रिलिम्स:

प्रश्न. राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण अधिनियम, 2010 भारतीय संविधान के निम्नलिखित में से कौन-सा/से प्रावधान के आनुरूप्य अधिनियमित हुआ था? (2012)

  1. स्वस्थ पर्यावरण का अधिकार के आनुरूप्य, जो अनुच्छेद 21 के अंतर्गत जीवन के अधिकार का अंग माना जाता है
  2. अनुच्छेद 275(1) के अंतर्गत अनुसूचित जनजातियों के कल्याण हेतु अनुसूचित क्षेत्रों में प्रशासन का स्तर बढ़ाने के लिये प्रावधानित अनुदान के आनुरूप्य 
  3. अनुच्छेद 243(A) के अंतर्गत उल्लिखित ग्राम सभा की शक्तियों और कार्यों के आनुरूप्य

नीचे दिये गए कूटों के आधार पर सही उत्तर चुनिये:

(a) केवल 1
(b) केवल 2 और 3
(c) केवल 1 और 3
(d) 1, 2 और 3

उत्तर: (a)


मेंस

प्रश्न. आप इस बात से कहाँ तक सहमत हैं कि अधिकरण सामान्य न्यायालयों की अधिकारिता को कम करते हैं? उपर्युक्त को दृष्टिगत रखते हुए, भारत में अधिकरणों की संवैधानिक वैधता तथा सक्षमता की विवेचना कीजिये?