अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989 | 03 Oct 2019

चर्चा में क्यों?

सर्वोच्च न्यायालय ने 20 मार्च, 2018 के फैसले में अपने उन निर्देशों को वापस ले लिया है, जिसने अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989 {The Scheduled Castes & Scheduled Tribes (Prevention of Atrocities) Act, 1989} के तहत गिरफ्तारी के प्रावधानों को प्रभावी रूप से कमज़ोर कर दिया था।

न्यायालय द्वारा की गई समीक्षा:

  • समीक्षा में कहा गया है कि अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति की सामाजिक-आर्थिक स्थितियों में सुधार के विभिन्न उपायों के बावजूद वे कमज़ोर बने हुए हैं।
  • अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति समुदायों द्वारा समानता तथा नागरिक अधिकारों की प्राप्ति के लिये संघर्ष किया जा रहा है।
  • समाज में आज भी उनके प्रति भेदभाव एवं अस्पृश्यता विद्यमान है।

न्यायालय द्वारा जारी दिशा-निर्देश:

  • ऐसे मामलों में किसी भी निर्दोष को कानूनी प्रताड़ना से बचाने के लिये कोई भी शिकायत मिलने पर तत्काल एफआईआर (FIR) दर्ज नहीं की जाएगी। सबसे पहले शिकायत की जाँच डीएसपी स्तर के पुलिस अफसर द्वारा की जाएगी।
  • न्यायालय द्वारा स्पष्ट किया गया है कि यह जाँच पूर्ण रूप से समयबद्ध होनी चाहिये। जाँच किसी भी स्थिति में 7 दिन से अधिक समय तक न चले।
  • इन नियमों का पालन न करने की स्थिति में पुलिस पर अनुशासनात्मक एवं न्यायालय की अवमानना करने के संदर्भ में कार्यवाही की जाएगी।
  • अभियुक्त की तत्काल गिरफ्तारी नहीं की जाएगी। सरकारी कर्मचारियों को नियुक्त करने वाली अथॉरिटी की लिखित मंज़ूरी के बाद ही गिरफ्तारी हो सकती है और अन्य लोगों को ज़िले के एसएसपी की लिखित मंज़ूरी के बाद ही गिरफ्तार किया जा सकेगा।
  • इतना ही नहीं, गिरफ्तारी के बाद अभियुक्त की पेशी के समय मजिस्ट्रेट द्वारा उक्त कारणों पर विचार करने के बाद यह तय किया जाएगा कि क्या अभियुक्त को और अधिक समय के लिये हिरासत रखा जाना चाहिये अथवा नहीं।
  • एससी-एसटी एक्ट की धारा 18 में अग्रिम ज़मानत की मनाही है, लेकिन अदालत ने अपने आदेश में अग्रिम ज़मानत की इजाज़त देते हुए कहा कि पहली नज़र में अगर ऐसा लगता है कि कोई मामला नहीं है या जहाँ न्यायिक समीक्षा के बाद लगता है कि कानून के अंतर्गत शिकायत में दुर्भावना है, वहाँ अग्रिम ज़मानत पर संपूर्ण रोक नहीं है।

क्या है SC/ST (अत्याचार निवारण) संशोधन अधिनियम?

  • अनुसूचित जाति/जनजाति (अत्याचार निवारण) संशोधन अधिनियम, 2015 को अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के खिलाफ अत्याचारों की रोकथाम के लिये लाया गया था। मुख्यतः अधिनियम अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम,1989 का यह संशोधित प्रारूप है।

आगे की राह:

  • लोकतंत्र में प्रत्येक नागरिक को समान अधिकार दिये गए हैं और कानून के समक्ष भी सभी को समान माना गया है। ऐसे में किसी भी नागरिक के अधिकारों का हनन अनुचित है फिर चाहे वह सवर्ण हो या दलित। न्यायालय द्वारा दिया गया निर्णय भी इसी तर्क की पुष्टि करता है।
  • यह शासनतंत्र की ज़िम्मेदारी है कि वह पिछड़े समुदायों और दलितों के संरक्षण हेतु बनाए गए कानूनों का ईमानदारीपूर्वक और भेदभाव रहित दृष्टिकोण अपनाकर अनुपालन सुनिश्चित करे, जिससे इन वर्गों के भीतर उत्पन्न असुरक्षा और उत्पीड़न का डर समाप्त हो सके एवं इनका शासनतंत्र और न्याय प्रणाली में विश्वास बना रहे।
  • सरकार का दायित्व है कि इन कानूनों का दुरुपयोग किसी निरपराध को परेशान करने में न किया जाए और ये आपसी दुश्मनी निकालने का एक 'टूल' बनकर न रह जाएँ।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस