क्या लोकसभा, राज्यसभा की तरह सुप्रीम कोर्ट का भी हो चैनल? | 10 Jul 2018

चर्चा में क्यों?

हाल ही में सुप्रीम कोर्ट की कार्यवाही को राज्यसभा और लोकसभा चैनल की तरह लाइव दिखाने की  वरिष्ठ वकील इंदिरा जयसिंह की याचिका पर सुनवाई करते हुए मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा, न्यायमूर्ति ए.एम. खानविलकर और न्यायमूर्ति डी.वाई. चंद्रचूड की पीठ  ने इसे वक्त की ज़रूरत बताते हुए सैद्यांतिक मंजूरी दी है। बेंच ने कहा, अगर हम लाइव प्रसारण की व्यवस्था की ओर जाएँ तो इसे पहले एक कोर्ट में पायलट प्रोजेक्ट के रूप में शुरू किया जाए| उसके बाद उसे देश के दूसरे न्यायालयों में लागू कर दिया जाए|

महत्त्वपूर्ण बिंदु 

  • न्यायालय ने अटार्नी जनरल के.के. वेणुगोपाल से इस बारे में दिशा-निर्देश और सुझाव मांगे हैं| मामले पर 23 जुलाई को फिर सुनवाई होगी|
  • अटार्नी जनरल के.के. वेणुगोपाल ने कहा कि अगर सुप्रीम कोर्ट तैयार होता है तो सरकार लोकसभा या राज्यसभा की तरह अलग से सुप्रीम कोर्ट के लिये चैनल की व्यवस्था कर सकती है।
  • चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा ने कहा कि  रेप के मामलों की लाइव स्ट्रीमिंग नहीं होगी। इसी तरह वैवाहिक मामलों की भी नहीं हो सकती। सभी पक्ष इस संबंध में सुझाव दें।
  • अटार्नी जनरल ने कहा कि सजीव प्रसारण के तौर-तरीके और दिशा-निर्देश तय होने चाहिये|

खुली अदालत में सुनवाई की अवधारणा पर चर्चा 

  • कोर्ट ने खुली अदालत में सुनवाई की अवधारणा पर चर्चा करते हुए कहा कि जब तक किसी मामले की कैमरा के सामने सुनवाई न हो रही हो, हमारे देश में खुली अदालत में सुनवाई की अवधारणा है|
  • खुली अदालत में सुनवाई होने पर मुकदमा लड़ने वालों को पता रहता है कि उनके मामले में अदालत में क्या हुआ| मुकदमा लड़ने वाले जो लोग सुनवाई की तारीख पर कोर्ट में नहीं होंगे सजीव प्रसारण से उन्हें भी पता चल सकेगा कि अदालत में उनके केस में क्या हुआ|

कार्यवाही के प्रसारण का व्यावसायिक इस्तेमाल नहीं 

  • मामले में याची वरिष्ठ वकील इंद्रा जयसिंह ने कहा कि सजीव प्रसारण का आधिकारिक रिकॉर्ड रखा जाना चाहिये और कार्यवाही के प्रसारण का व्यावसायिक इस्तेमाल नहीं होना चाहिये|
  • उन्होंने कहा कि इसके ज़रिये किसी को धन अर्जन की अनुमति नहीं होनी चाहिये|

सुनवाई के दौरान कुछ मामलों का संदर्भ

  • सुनवाई में सुनील गुप्ता बनाम कानूनी मामलों के विभाग (2016) और इंदूर कर्ता छुनगनी  बनाम महाराष्ट्र राज्य (2016) में बॉम्बे उच्च न्यायालय के आदेश का संदर्भ दिया गया है जिसमें इसी तरह की राहत के लिये याचिका खारिज कर दी गई थी| 
  • इसके बाद इंद्रा जयसिंह ने 2015 और 2016 के दो पत्रों का हवाला दिया जो कानून मंत्रालय द्वारा भारत के मुख्य न्यायाधीशों को भेजे गए थे ताकि इस मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट के रुख के बारे में पता चल सके।