चंडीगढ़ मेयर चुनाव में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा अनुच्छेद 142 का उपयोग | 23 Feb 2024

प्रिलिम्स के लिये:

भारत का सर्वोच्च न्यायालय, अनुच्छेद 142, न्यायिक सक्रियता, मौलिक अधिकार, न्यायिक अतिरेक

मेन्स के लिये:

अनुच्छेद 142 का महत्त्व, भारत में न्यायिक सक्रियता की वैधता

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

चर्चा में क्यों?

हाल ही में चंडीगढ़ मेयर चुनाव के परिणाम जारी किये गए तथा सर्वोच्च न्यायालय ने संविधान के अनुच्छेद 142 को कार्यान्वित करते हुए चुनाव के परिणाम रद्द कर दिये जिसके परिणामस्वरूप यह चर्चा का विषय बन गया।

सर्वोच्च न्यायालय ने अनुच्छेद 142 का उपयोग क्यों किया?

  • सर्वोच्च न्यायालय ने चंडीगढ़ मेयर चुनाव में न्याय सुनिश्चित करने और निर्वाचन प्रक्रिया की पवित्रता बनाए रखने के लिये अनुच्छेद 142 कार्यान्वित किया।
    • पीठासीन अधिकारी के अवैध आचरण के परिणामस्वरूप निर्वाचन प्रक्रिया में अनियमितताएँ हुईं जिसमें अधिकारी ने प्रतिद्वंद्वी के पक्ष में प्राप्त आठ मतों को अमान्य कर विजेता की घोषणा की जिसके कारण गलत विजेता की घोषणा हुई।

भारतीय संविधान का अनुच्छेद 142 क्या है?

  • सर्वोच्च न्यायालय को सशक्त बनाना:
    • अनुच्छेद 142 सर्वोच्च न्यायालय को उसके समक्ष लंबित किसी मामले अथवा वाद में पूर्ण न्याय करने के लिये आवश्यक कोई भी डिक्री अथवा आदेश पारित करने का अधिकार देता है।
      • ये डिक्री अथवा आदेश न्यायिक हस्तक्षेप के लिये महत्त्वपूर्ण साधन हैं क्योंकि इन्हें भारत के संपूर्ण राज्य क्षेत्र में कार्यान्वित किया जा सकता है।
  • विधिक सीमाओं से अतिरिक्त शक्ति:
    • अनुच्छेद 142 सर्वोच्च न्यायालय को इसमें शामिल सभी पक्षों के लिये न्याय सुनिश्चित करने के लिये मौजूदा विधियों अथवा विधि के दायरे से परे जाकर न्यायिक हस्तक्षेप करने का प्रावधान करता है।
      • यह न्यायालय को आवश्यकता पड़ने पर कार्यकारी और विधायी भूमिकाओं सहित निर्णय से परे कार्य करने में सक्षम बनाता है।
    • कई अन्य कानून जैसे कि अनुच्छेद 32 (जो संवैधानिक उपचारों के अधिकार की गारंटी देता है), अनुच्छेद 141 (जिसके लिये सभी भारतीय न्यायालयों को सर्वोच्च न्यायालय के निर्णयों का पालन करना आवश्यक है) तथाअनुच्छेद 136 (जो विशेष अनुमति याचिका की अनुमति देता है), अनुच्छेद 142 को समर्थन प्रदान करते हैं।
      • इस सामूहिक ढाँचे को “न्यायिक सक्रियता” शब्द से जाना जाता है। इस विचार के परिणामस्वरूप सर्वोच्च न्यायालय ने "पूर्ण न्याय" प्रदान करने के लिये प्राय: संसदीय कानूनों को खारिज कर दिया है।
  • सार्वजनिक हित के मामलों में हस्तक्षेप करना:
    • यह प्रावधान सर्वोच्च न्यायालय को सार्वजनिक हित, मानवाधिकार, संवैधानिक मूल्यों अथवा मौलिक अधिकारों से जुड़े मामलों में हस्तक्षेप करने का अधिकार देता है।
    • यह संविधान के संरक्षक के रूप में न्यायालय की भूमिका को सुदृढ़ करता है और साथ ही उल्लंघनों के विरुद्ध सुरक्षा सुनिश्चित करता है।
  • अनुच्छेद 142 के अंतर्गत शक्तियों के दायरे को स्पष्ट करने वाले निर्णय:
    • यूनियन कार्बाइड कॉर्पोरेशन बनाम भारत संघ (1991):
      • सर्वोच्च न्यायालय ने UCC को भोपाल गैस त्रासदी के पीड़ितों के लिये मुआवज़े में 470 मिलियन अमरीकी डॉलर का भुगतान करने का आदेश दिया, अनुच्छेद 142 (1) के व्यापक दायरे पर प्रकाश डाला और स्पष्ट किया कि इसकी शक्तियाँ एक भिन्न गुणवत्ता तथा वैधानिक निषेधों के अधीन नहीं हैं।
    •  सर्वोच्च न्यायालय बार एसोसिएशन बनाम भारत संघ (1998):
      • शीर्ष न्यायालय ने इस बात पर ज़ोर दिया कि अनुच्छेद 142 के तहत शक्तियाँ पूरक हैं और इसका उपयोग मूल कानूनों को समाप्त करने के लिये नहीं किया जाना चाहिये।
        • न्यायालय ने स्पष्ट किया कि ये शक्तियाँ उपचारात्मक प्रकृति की हैं और इनका उपयोग वादियों के अधिकारों की अनदेखी करने अथवा वैधानिक प्रावधानों को दरकिनार करने के लिये नहीं किया जाना चाहिये।
    • ए जिदेरनाथ बनाम जुबली हिल्स को-ऑप हाउस बिल्डिंग सोसाइटी (2006):
      • सर्वोच्च न्यायालय ने इस बात पर ज़ोर दिया कि अनुच्छेद 142 के तहत अपनी शक्ति का प्रयोग करते समय, किसी ऐसे व्यक्ति पर कोई अन्याय नहीं किया जाना चाहिये जो मामले में पक्षकार नहीं है।
    • कर्नाटक सरकार बनाम उमादेवी (2006):
      • सर्वोच्च न्यायालय ने स्पष्ट किया कि अनुच्छेद 142 के तहत "पूर्ण न्याय" का अर्थ कानून के अनुसार न्याय है, न कि सहानुभूति, एवं न्यायालय ऐसी राहत नहीं देगी जो विधायी क्षेत्र में अवैधता का अतिक्रमण करती हो।
  • आलोचना:
    • शक्तियों के पृथक्करण का अतिक्रमण करने का जोखिम, न्यायिक सक्रियता की आलोचना को आमंत्रित करना।
    • आलोचकों का तर्क है कि अनुच्छेद 142 न्यायपालिका को पर्याप्त जवाबदेही के बिना व्यापक शक्तियाँ प्रदान करता है, जिससे संभावित रूप से न्यायिक अतिरेक हो सकता है। हालाँकि ये शक्तियाँ असाधारण मामलों के लिये आरक्षित हैं जहाँ मौजूदा कानून अपर्याप्त हैं।
    • न्यायालय के प्राधिकार की सीमा और विधायी या कार्यकारी डोमेन में उसके हस्तक्षेप पर विवादों की संभावना होती है।

             न्यायिक सक्रियता

        न्यायिक अतिरेक

देश की कानूनी तथा संवैधानिक व्यवस्था को संरक्षित करने एवं नागरिकों के अधिकारों को बनाए रखने में न्यायपालिका की सक्रिय भूमिका के रूप में परिभाषित किया गया है।

जब न्यायपालिका अपने कानूनी प्राधिकार या अधिकार क्षेत्र से आगे बढ़कर विधायी या कार्यकारी कार्यों में हस्तक्षेप करती है।

यह सुनिश्चित करता है कि कानून संवैधानिक प्रावधानों का अनुपालन करते हैं।

लोकतंत्र में यह अवांछनीय है क्योंकि यह शक्तियों के पृथक्करण के सिद्धांत का उल्लंघन करता है।

सामाजिक परिवर्तन को बढ़ावा देने के साथ-साथ  कमज़ोर समूहों की सुरक्षा करता है।

लोकतंत्र को कमज़ोर कर सकता है।

विशिष्ट परिस्थितियों के आधार पर न्यायिक सक्रियता की वैधता पर प्राय: बहस होती है।

सामान्य रूप से इसे गैरकानूनी एवं लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं के लिये हानिकारक माना जाता है।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स:

प्रश्न. भारत के संविधान के संदर्भ में सामान्य विधियों में अंतर्विष्ट प्रतिषेध अथवा निबंधन अथवा उपबंध, अनुच्छेद 142 के अधीन सांविधानिक शक्तियों पर प्रतिषेध अथवा निर्बंधन की तरह कार्य नहीं कर सकते। निम्नलिखित में से कौन-सा एक इसका अर्थ हो सकता है? (2019)

(a) भारत के निर्वाचन आयोग द्वारा अपने कर्त्तव्यों का निर्वहन करते समय लिये गए निर्णयों को किसी भी न्यायालय में चुनौती नहीं दी जा सकती।
(b) भारत का उच्चतम न्यायालय अपनी शक्तियों के प्रयोग में संसद द्वारा निर्मित विधियों से बाध्य नहीं होता।
(c) देश में गंभीर वित्तीय संकट की स्थिति में भारत का राष्ट्रपति मंत्रिमंडल के परामर्श के बिना वित्तीय आपात घोषित कर सकता है।
(d) कुछ मामलों में राज्य विधानमंडल, संघ विधानमंडल की सहमति के बिना विधि निर्मित नहीं कर सकते।

उत्तर: b