हरियाणा की समय पूर्व रिहाई संबंधी नीति | 18 Jul 2020

प्रीलिम्स के लिये

CrPC की धारा 433-A, अनुच्छेद 72, अनुच्छेद 161 

मेन्स के लिये 

राष्ट्रपति और राज्यपाल की क्षमादान की शक्तियों से संबंधित मुद्दे

चर्चा में क्यों?

न्यायमूर्ति यू यू ललित की अध्यक्षता वाली खंडपीठ ने समय पूर्व रिहाई से संबंधित हरियाणा सरकार की नीति की वैधता के विषय को एक बड़ी खंडपीठ को हस्तांतरित किया है।

प्रमुख बिंदु

  • वर्ष 2019 में संस्थापित हरियाणा सरकार की नीति के अनुसार, हत्या के एक मामले में आजीवन कारावास की सजा पाए पुरुष कैदियों को 75 वर्ष की आयु होने और कम-से-कम 8 वर्ष की सज़ा पूरी करने के पश्चात् रिहा कर कर दिया जाएगा।
  • इससे पूर्व न्यायालय ने हरियाणा सरकार को नोटिस जारी कर अपनी नीति के संबंध में स्पष्टीकरण देने के लिये कहा था।

विवाद

  • गौरतलब है कि न्यायालय एक हत्या के दोषी (आजीवन कारावास की सज़ा) के एक मामले पर सुनवाई कर रहा था, जो कि राज्य द्वारा गठित एक क्षमा नीति (Remission Policy) के लागू होने के पश्चात् 8 वर्ष की सज़ा पूरी होने पर रिहा हो गया था।
  • अब न्यायालय की बड़ी खंडपीठ इस तथ्य की जाँच करेगी कि हरियाणा सरकार की यह नीति आपराधिक दंड प्रक्रिया संहिता (CrPC) की धारा 433-A के विपरीत है अथवा नहीं।
    • उल्लेखनीय है कि आपराधिक दंड प्रक्रिया संहिता (CrPC) की धारा 433-A के अनुसार, यदि किसी दोषी को उम्र कैद की सज़ा हुई है तो उसे कारावास से तब तक रिहा नहीं किया जा सकता है, जब तक वह कम-से-कम 14 वर्ष की सज़ा पूरी न कर ले।
    • इस प्रकार हरियाणा सरकार द्वारा बनाई गई नीति स्पष्ट तौर पर CrPC की धारा 433-A का उल्लंघन करती है।
  • इसके अलावा इस नीति का प्रयोग करते हुए मामले से संबंधित कोई भी तथ्य अथवा सामग्री राज्यपाल के समक्ष प्रस्तुत नहीं की गई, इस प्रकार राज्यपाल को अपराध की गंभीरता, अपराध करने का तरीका और समाज पर इसके प्रभाव जैसे पहलुओं पर विचार करने का अवसर नहीं मिला, जबकि भारतीय संविधान का अनुच्छेद-161 राज्य के राज्यपाल को ही क्षमादान की शक्ति प्रदान करता है।
    • इस प्रकार हरियाणा सरकार की क्षमा नीति (Remission Policy) भारतीय संविधान के अनुच्छेद 161 का भी उल्लंघन करती है।

राष्ट्रपति और राज्यपाल की क्षमादान की शक्ति

  • भारतीय संविधान के अनुच्छेद 72 और अनुच्छेद 161 के तहत भारतीय राष्ट्रपति और राज्य के राज्यपाल को अपराध के लिये दोषी करार दिये गए व्यक्ति को क्षमादान देने अर्थात् दंडादेश का निलंबन, प्राणदंड स्थगन, राहत और माफी प्रदान करने का अधिकार दिया गया है।
  • गौरतलब है कि राष्ट्रपति को संघीय विधि के विरुद्ध दंडित व्यक्ति के मामले में, सैन्य न्यायालय द्वारा दंडित व्यक्ति के मामले में और मृत्यदंड पाए हुए व्यक्ति के मामले में क्षमादान देने का अधिकार है।
  • वहीं राज्य के राज्यपाल को दंडादेश को निलंबित करने, दंड अवधि को कम करने एवं दंड का स्वरूप बदलने का अधिकार प्राप्त है।
  • ध्यातव्य है कि क्षमादान का उद्देश्य किसी निर्दोष व्यक्ति को न्यायालय की गलती के कारण दंडित होने से बचाना है।

स्रोत:  इंडियन एक्सप्रेस