राज्यसभा द्वारा SC/ST एक्ट में संशोधन पारित | 10 Aug 2018

चर्चा में क्यों?

हाल ही में राज्यसभा द्वारा अनुसूचित जाति और जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम (SC/ST ACT) में संशोधन को मंजूरी दे दी गई। लोकसभा ने पहले ही सर्वोच्च न्यायालय के फैसले को उलटकर अधिनियम में बदलावों को मंजूरी दे दी है।

प्रमुख बिंदु

  • अधिनियम के तहत गिरफ्तारी के खिलाफ सुरक्षा के संबंध में मार्च 2018 के सुप्रीम कोर्ट के फैसले को उलट दिया गया। 
  • संशोधन में यह प्रावधान किया गया है कि अधिनियम के तहत किसी भी व्यक्ति के खिलाफ एफआईआर पंजीकरण के लिये कोई प्रारंभिक जाँच की आवश्यकता नहीं होगी; और यदि आवश्यक हो तो जाँच अधिकारी को गिरफ्तारी के लिये अनुमोदन की आवश्यकता नहीं होगी। 
  • इस संशोधन के तहत सुप्रीम कोर्ट द्वारा अनुमत अग्रिम जमानत के प्रावधान को भी समाप्त कर दिया गया है।
  • संशोधन में एफआईआर दर्ज करने के बाद जाँच पूरी करने और आरोपपत्र दाखिल करने के लिये दो महीने की समय-सीमा शामिल है। चार्जशीट दाखिल करने के दो महीने के भीतर मामलों का निपटारा करना होगा।
  • कई सांसदों ने यह मुद्दा उठाया कि इस कानून को संविधान की 9वीं अनुसूची (न्यायिक समीक्षा के खिलाफ सुरक्षा के लिये) के तहत लाया जाना चाहिये था, अन्यथा अदालत में फिर से संशोधन को चुनौती दी जाएगी।
  • कानून के दुरुपयोग को रोकने, शीघ्र न्याय प्राप्ति हेतु फ़ास्ट ट्रैक कोर्ट की व्यवस्था किये जाने, मामलों की जाँच डीएसपी रैंक एवं उससे ऊपर के अधिकारियों से कराए जाने तथा कानून को दोबारा न्यायिक पुनरावलोकन से बचाने हेतु कदम उठाए जाने संबंधित कई मुद्दे विपक्ष द्वारा उठाए गए।

राज्यों में विशेष अदालतें

अधिनियम के तहत मामलों का फैसला करने के लिये 14 राज्यों ने पहले से ही 195 विशेष अदालतों का गठन किया था। कुछ राज्यों ने ज़िला और सत्र अदालतों को विशेष अदालतों के रूप में घोषित किया है।