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सूचना का अधिकार | 25 Jan 2017 | अंतर्राष्ट्रीय संबंध

गौरतलब है कि हाल ही में “द हिन्दू” समाचार पत्र द्वारा किये गए एक विश्लेषण में यह पाया गया कि सरकारी एजेंसियाँ तथा संस्थाएँ सूचना के अधिकार अधिनियम, 2005 (Right to Information Act) के अंतर्गत आने वाली सूचनाओं में कमी करने के तरीकों में बढ़ोतरी कर रही हैं| इस विश्लेषण में यह पाया गया कि सूचना तक पहुँच बनाने के लिए लाये गए सूचना के अधिकार अधिनियम का उपयोग करने का नागरिकों का अनुभव संतुष्टि के स्तर से अत्यधिक कम रहा है|

प्रमुख बिंदु

निष्कर्ष

सम्भवतः किसी भी सरकार को यह नहीं भूलना चाहियेए कि किसी भी अन्य अधिनियम की भाँति इस अधिनियम के यदि कुछ सकारात्मक पक्ष है तो कुछ नकारात्मक भी अवश्य होंगे| ऐसी कोई भी सरकार जो लोकतान्त्रिक मूल्यों को बनाए रखने का वादा करती है, को शासन व्यवस्था में पारदर्शिता संबंधी सुधार लाने के सन्दर्भ में हमेशा प्रयासरत रहने चाहिये| साथ ही उसे उन लोगों के प्रति भी अधिक जवाबदेह होने की आवश्यकता है, जिनकी सेवा करने के लिये उसे चुना गया है| इसके लिये आवश्यक है कि सूचना के अधिकार अधिनियम में वर्णित शब्दों एवं भावों का उचित एवं यथार्थवादी उदाहरण प्रस्तुत करते हुए इसका सटीक अनुपालन किया जाना चाहिये|