निष्पक्ष सुनवाई का अधिकार | 07 Dec 2019

मेन्स के लिये:

निष्पक्ष सुनवाई का अधिकार, भारतीय संविधान के तहत एक अभियुक्त के अधिकार, नियमित अभ्यास, निर्णय

चर्चा में क्यों?

हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय ने यह माना है कि जाँच एजेंसियों द्वारा दस्तावेजों को सीलबंद लिफाफे में पेश करने की नियमित प्रथा और न्यायाधीशों द्वारा उन्हें न्यायिक निष्कर्षों के रूप में पुन: पेश करना, अभियुक्त की निष्पक्ष सुनवाई के अधिकार को प्रभावित करेगा।

Right To A Fair Trial

प्रमुख बिंदु:

  • नियमित अभ्यास:
    • सर्वोच्च न्यायालय ने केंद्रीय जाँच ब्यूरो (Central Bureau of Investigation- CBI) और प्रवर्तन निदेशालय जैसी एजेंसियों द्वारा जाँच के दौरान आरोपियों के खिलाफ सबूत के रूप में इकट्ठा किये गए दस्तावेज़ों को सीलबंद लिफाफे में अदालतों में पेश किये जाने के चलन पर तीव्र प्रतिक्रिया व्यक्त की
    • स्थिति तब और खराब हो जाती है जब न्यायाधीश इन दस्तावेज़ों में जाँच एजेंसियों के निष्कर्षों को अपने स्वयं के न्यायिक निष्कर्षों में परिवर्तित करते हैं और आरोपी की जमानत से इनकार करते हुए उन्हें न्यायिक आदेश में पुन: पेश करते हैं।
  • निर्णय
    • सर्वोच्च  के दोषी या निर्दोष होने के मामले को मुकदमे के लिये छोड़ दिया जाना चाहिये, जहाँ अभियुक्त अपना बचाव कर सकता है।

भारतीय संविधान के तहत एक अभियुक्त के अधिकार

  • भारतीय संविधान का अनुच्छेद 22 साधारण कानून के तहत गिरफ्तार व्यक्ति को निम्नलिखित अधिकार देता है :
  • गिरफ्तारी के कारणों के बारे में सूचित किये जाने का अधिकार।
  • कानूनी चिकित्सक के साथ परामर्श और इलाज़ का अधिकार।
  • पुलिस द्वारा हिरासत में लिये जाने के 24 घंटे के भीतर मजिस्ट्रेट के सामने पेश किया जाने का अधिकार।
  • मजिस्ट्रेट द्वारा हिरासत की अवधि न बढाये जाने पर 24 घंटे के बाद रिहा किये जाने का अधिकार।
  • यह ध्यान देने की आवश्यकता है कि उपरोक्त सुरक्षा उपाय किसी विदेशी शत्रु या निवारक निरोध कानून के तहत गिरफ्तार व्यक्ति के लिये उपलब्ध नहीं हैं।

स्रोत- द हिंदू