NBFCs के लिये भारतीय रिज़र्व बैंक के नए नियम | 25 May 2019

चर्चा में ?

भारतीय रिज़र्व बैंक (Reserve Bank of India-RBI) ने गंभीर नकदी संकट का सामना कर रही बड़ी गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनियों (Non Banking Financial Companies-NBFCs) को संकट से बाहर निकालने के लिये नए दिशा-निर्देश प्रस्तावित किये हैं ताकि IL&FS जैसे संकट की पुनरावृत्ति को रोका जा सके।

  • RBI ने अपने मसौदा परिपत्र "NBFCs और कोर निवेश कंपनियों के लिये तरलता जोखिम प्रबंधन फ्रेमवर्क” [Liquidity Risk Management Framework for NBFCs and Core Investment Companies (CICs)] में इन दिशा-निर्देशों का प्रस्ताव किया है।
  • नए प्रावधानों के अनुसार, NBFCs के परिसंपत्ति-देयता प्रबंधन (Asset-Liability Management-ALM) ढाँचे को मज़बूत करने और इनके वर्तमान स्तर को ऊपर उठाने के लिये, गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों में भी बैंकों की तरह तरलता कवरेज़ अनुपात (Liquidity Coverage Ratio-LCR) की व्यवस्था शुरू की जानी चाहिये।

भारतीय रिज़र्व बैंक के दिशा-निर्देश

  • RBI के प्रस्तावित नियमों के अनुसार, जमा स्वीकार करने वाली सभी NBFCs तथा जमा स्वीकार नहीं करने वाली NBFC (जिनका आकार 5,000 करोड़ रुपए हो) के लिये तरलता कवरेज़ अनुपात (LCR) व्यवस्था शुरू की जाएगी।
  • बेसल-III मानकों के तहत LCR एक मांग है जिसके अंतर्गत बैंकों को उच्च गुणवत्ता वाली तरल संपत्ति (High-Quality Liquid Assets-HQLA) के रूप में एक निश्चित राशि बनाए रखने की आवश्यकता होती है जो 30 दिनों तक नकदी बहिर्वाह के लिये निधि प्रदान करने हेतु पर्याप्त है।
  • HQLA ऐसी तरल संपत्तियाँ हैं जिन्हें आसानी से बेचा जा सकता है या अल्प नुकसान अथवा बिना किसी हानि के तत्काल नकदी में परिवर्तित किया जा सकता है या उधार के प्रयोजनों के लिये संपार्श्विक (Collateral) के रूप में इनका इस्तेमाल किया जा सकता है।
  • उच्च गुणवत्ता वाली तरल परिसंपत्तियों के रूप में NBFCs द्वारा सरकारी प्रतिभूतियों में अंशधारिता को अनिवार्य किया जाना चाहिये।
  • जोखिम को कम करने के लिये व्यापक नीतियाँ: आपदा जोखिम न्यूनीकरण नीतियों को लागू करने के लिये 5,000 करोड़ रुपए से अधिक की संपत्ति वाली सभी NBFCs के बोर्ड को तरलता जोखिम कम करने के लिये परिसंपत्ति देयता प्रबंध समिति (Asset Liability Management Committee), परिसंपत्ति जोखिम प्रबंध समिति (Asset Risk Management Committee) और परिसंपत्ति-देयता प्रबंधन में सहायता के लिये समूह (Asset-Liability Management Support Group) का गठन करना आवश्यक है।
  • आस्तियों और देयताओं का असंतुलन NBFC के कुल आउटफ्लो के 10% से अधिक नहीं होना चाहिये।
  • NBFCs के लिये तरलता संकट के प्रबंधन उपकरण के रूप में अपनी आकस्मिक निधि योजना तैयार करने की आवश्यकता है जो उन्हें तरलता संकट की स्थिति में धन के वैकल्पिक स्रोतों के ज़रिये मदद करेगा और धन के एकल स्रोत पर निर्भरता पर रोक लगाएगा क्योंकि ऐसा माना जाता है कि वाणिज्यिक पत्र (Commercial Papers) पर NBFCs की अधिक निर्भरता के कारण अतीत में इनके द्वारा जारी किये गए एक लाख करोड़ वाणिज्यिक पत्र डिफ़ॉल्ट की स्थिति में पहुँच सकते हैं।

वाणिज्यिक या तिजारती पत्र (Commercial Paper) एक अल्पकालिक, आरक्षित वचन पत्र होता है जो बेचान (Endorsement) के द्वारा अंतरणीय एवं परक्राम्य/बेचनीय (Negotiable) है तथा परिपक्वता अवधि के बाद एक इनकी सुनिश्चित (स्थिर) अंतरण या सुपुर्दगी होती है।

वाणिज्यिक पत्र कंपनियों द्वारा एक वर्ष तक की अवधि के लिये धन जुटाने हेतु जारी किये जाते हैं।

  • एक ग्रैनुलर मेच्योरिटी बकेट प्रणाली (Granular Maturity Bucket System) का प्रस्ताव किया गया है ताकि वह पूरे कार्यकाल के दौरान आस्तियों और देयताओं के असंतुलन पर नज़र रख सके। नए मानदंडों के तहत, 1-30 दिनों के बकेट को 1-7 दिनों, 8-14 दिनों और 15-30 दिनों की बकेट में विभाजित किया जाएगा। इसके अलावा NBFC को अपने बोर्डों की मंज़ूरी के साथ आंतरिक विवेकपूर्ण सीमा स्थापित कर 1 वर्ष तक के अन्य सभी समय की बकेट में उनके आस्तियों तथा देयताओं के संचयी असंतुलन की निगरानी करना आवश्यक होगा।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस