आकाशीय बिजली पर रिपोर्ट | 04 Jan 2021

चर्चा में क्यों?

क्लाइमेट रेज़िलिएंट ऑब्ज़र्विंग सिस्टम प्रमोशन काउंसिल ( Climate Resilient Observing Systems Promotion Council- CROPC) द्वारा प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार,  बिजली गिरने से होने वाली मौतों की संख्या में वर्ष 2019-20 में लगभग 37% की कमी आई है।

  • CROPC एक गैर-लाभकारी संगठन है जो भारत मौसम विज्ञान विभाग (India Meteorological Department- IMD) के समन्वय से कार्य करता है।

प्रमुख बिंदु:

डेटा विश्लेषण: 

  • वर्ष 2019-20 में प्राकृतिक आपदाओं की वजह से कुल मौतें 33% आकाशीय बिजली के कारण हुई थी।

जिम्मेदार कारक: 

  • पर्यावरण के तेजी से क्षरण जैसे- ग्लोबल वार्मिंग, वनों की कटाई, जल निकायों का क्षरण, कंक्रीटाइज़ेशन (Concretisation), बढ़ता प्रदूषण और एरोसोल  ने जलवायु परिवर्तन को चरम स्तर पर पहुँचा दिया है तथा आकाशीय बिजली इन जलवायु चरम सीमाओं का प्रत्यक्ष प्रभाव है।

सुझाव:

  • राज्यों को लाइटनिंग रेज़िलिएंट इंडिया कैंपेन (Lightning Resilient India Campaign) में भाग लेना चाहिये और  व्यापक रूप से अधिक लाइटनिंग जोखिम प्रबंधन सुनिश्चित करना चाहिये।
    • IMD ने CROPC के साथ-साथ लाइटनिंग रेज़िलिएंट इंडिया कैंपेन नाम से एक संयुक्त अभियान शुरू किया है और इसे भारतीय मौसम विज्ञान सोसायटी (Indian Meteorological Society- IMS), गैर-सरकारी संगठनों, IIT दिल्ली तथा अन्य संबंधित संस्थानों द्वारा विधिवत समर्थन दिया गया है।
  • किसानों, मवेशी पालकों, बच्चों और खुले इलाकों में लोगों को आकाशीय बिजली के संबंध में शुरुआती चेतावनी दी जानी चाहिये।
    • आकाशीय बिजली एक निश्चित अवधि में लगभग समान भौगोलिक स्थानों पर समान रूप से गिरती है। 
    • कालबैशाखी - नोर्वेस्टर, जोकि आकाशीय बिजली के साथ आने वाले तेज़ तूफान हैं, काफी हिंसक होते हैं - इस प्रकार के तूफ़ान साधारणत: बंगाल में आते हैं।
  • लाइटनिंग प्रोटेक्शन डिवाइसेस की तरह एक स्थानीय लाइटनिंग प्रोटेक्शन वर्क प्लान को लागू किया जाना चाहिये।
  • क्षति को रोकने के लिये आकाशीय बिजली से होने वाली मौतों को एक आपदा के रूप में अधिसूचित किया जाना चाहिये।
    • इस बात पर ध्यान दिये जाने की जरूरत है कि आकाशीय बिजली को केंद्र ने आपदा के रूप में अधिसूचित नहीं किया है।
  • यद्यपि राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (National Disaster Management Authority- NDMA) ने राज्यों को कार्य योजनाओं के लिये व्यापक दिशा-निर्देश जारी किये हैं परंतु बड़ी संख्या में हुए नुकसान के आँकड़े दर्शाते हैं कि योजनाओं के कार्यान्वयन के लिये विभिन्न विभागों के अभिसरण के अलावा, "वैज्ञानिक और समुदाय-केंद्रित दृष्टिकोण" की आवश्यकता है।
  • बिजली की आवृत्ति, वर्तमान तीव्रता, ऊर्जा सामग्री, उच्च तापमान और अन्य प्रतिकूल प्रभावों के संदर्भ में सटीक जोखिम की पहचान करने में आकाशीय बिजली की मैपिंग एक बड़ी सफलता है।
    • इससे भारत के लिये एक लाइटनिंग रिस्क एटलस मैप बन सकेगा, जो एक लाइटनिंग रिस्क मैनेजमेंट प्रोग्राम का आधार बनेगा।

आकाशीय बिजली

अर्थ

  • आकाशीय बिजली का अभिप्राय वातावरण में बिजली के बहुत तीव्र और व्यापक पैमाने पर निर्वहन से है। यह बादल और ज़मीन के बीच अथवा कभी-कभी एक बादल के भीतर भी बहुत कम अवधि के लिये और उच्च वोल्टेज के प्राकृतिक विद्युत निर्वहन की प्रक्रिया है।
  • इंटर-क्लाउड और इंट्रा-क्लाउड (IC) आकाशीय बिजली को आसानी से देखा जा सकता है और यह हानिरहित होती है।
  • क्लाउड टू ग्राउंड (CG) आकाशीय बिजली, बादल और भूमि के बीच उत्पन्न होती है और हाई इलेक्ट्रिक वोल्टेज व इलेक्ट्रिक करंट के समान हानिकारक होती है, जिसके संपर्क में आने से किसी व्यक्ति की मृत्यु भी हो सकती है।

प्रक्रिया

  • यह बादल के ऊपरी हिस्से और निचले हिस्से के बीच विद्युत आवेश के अंतर का परिणाम है।
    • बिजली उत्पन्न करने वाले बादल आमतौर पर लगभग 10-12 किमी. की ऊँचाई पर होते हैं, जिनका आधार पृथ्वी की सतह से लगभग 1-2 किमी. ऊपर होता है। वहाँ तापमान -35 डिग्री सेल्सियस से -45 डिग्री सेल्सियस तक होता है।
  • चूँकि जलवाष्प ऊपर की ओर उठने की प्रवृत्ति रखता है, यह तापमान में कमी के कारण जल में परिवर्तित हो जाता है। इस प्रक्रिया में बड़ी मात्रा में ऊष्मा उत्पन्न होती है, जिससे जल के अणु ऊपर की ओर गति करते हैं। जैसे-जैसे वे शून्य से कम तापमान की ओर बढ़ते हैं, जल की बूँदें छोटे बर्फ के क्रिस्टल में बदल जाती हैं। चूँकि वे ऊपर की ओर बढ़ती रहती हैं और तब तक एक बड़े पैमाने पर इकट्ठा होती जाती हैं, जब तक कि इतने भारी न हो जाए कि वे नीचे गिरना शुरू कर दें।
  • इससे एक ऐसी प्रणाली का निर्माण होता है, जहाँ बर्फ के छोटे क्रिस्टल ऊपर की ओर जबकि बड़े क्रिस्टल नीचे की ओर गति करते हैं। इसके चलते इनके मध्य टकराव होता है और इलेक्ट्रॉन मुक्त होते हैं जो एक विद्युत स्पार्क के समान कार्य करता है। गतिमान मुक्त इलेक्ट्रॉनों में और अधिक टकराव होता जाता है तथा ज़्यादा इलेक्ट्रॉन बनते जाते हैं जो एक चेन रिएक्शन का निर्माण करता है।
  • इस प्रक्रिया के कारण एक ऐसी स्थिति उत्पन्न होती है जिसमें बादल की ऊपरी परत धनात्मक रूप से चार्ज हो जाती है, जबकि मध्य परत नकारात्मक रूप से चार्ज होती है। 
  • इससे थोड़े ही समय में दो परतों के मध्य एक विशाल विद्युतधारा (लाखों एम्पीयर) प्रवाहित होने लगती है।
    • इससे ऊष्मा उत्पन्न होती है जिससे बादल की दोनों परतों के बीच मौजूद वायु गर्म होने लगती है। 
    • इस ऊष्मा के कारण दोनों परतों के बीच वायु का खाका बिजली कड़कने के दौरान लाल रंग का नज़र आता है। 
    • गर्म हवा विस्तारित होती है और आघात उत्पन्न करती है जिसके परिणामस्वरूप गड़गड़ाहट की आवाज़ आती है।

पृथ्वी पर बिजली कैसे गिरती है?

  • पृथ्वी विद्युत की सुचालक है। यह बादलों की मध्य परत की तुलना में अपेक्षाकृत धनात्मक रूप से चार्ज होती है। परिणामस्वरूप बिजली का अनुमानित 20-25 प्रतिशत प्रवाह पृथ्वी की ओर निर्देशित हो जाता है। 
    • यह विद्युत प्रवाह पृथ्वी पर जीवन और संपत्ति को नुकसान पहुँचाता है।
  • आकाशीय बिजली के ज़मीन पर ऊँची वस्तुओं जैसे कि पेड़ों या इमारतों से टकराने की संभावना अधिक रहती है।
    • लाइटनिंग कंडक्टर एक उपकरण है, जिसका उपयोग इमारतों को बिजली के प्रभाव से बचाने के लिये किया जाता है। यह एक धातु की छड़ होती है जिसे इमारत के निर्माण के दौरान ऊँचाई पर लगाया जाता है।
  • माराकाइबो झील (वेनेज़ुएला) के तट पर सबसे अधिक आकाशीय बिजली की गतिविधियाँ देखी जाती हैं।
    • कैटाटुम्बो नदी, जहाँ मराकाइबो झील में मिलती है उस स्थान पर औसतन एक वर्ष में 260 तूफान आते हैं और अक्तूबर माह में इस स्थान पर प्रत्येक मिनट में 28 बार बिजली चमकती है, इस घटना को ‘बीकन ऑफ मैराकाइबो’ या ‘द एवरलास्टिंग स्टॉर्म’ के रूप में जाना जाता है।

कंक्रीटाइज़ेशन (Concretisation)

  • काॅन्क्रीटाइज़ेशन अथवा पक्की या कंक्रीट की सतह में वृद्धि के कारण पेड़-पौधों पर गंभीर प्रभाव पड़ता है, जिससे शहरों का भू-जल स्तर काफी गिर जाता है और वे एक ‘अर्बन हीट लैंड’ में परिवर्तित हो जाते हैं। 
    • ‘अर्बन हीट लैंड’ वह सघन जनसंख्या वाला नगरीय क्षेत्र होता है, जिसका तापमान उपनगरीय या ग्रामीण क्षेत्रों की तुलना में 2°C अधिक होता है।
    • कंक्रीट की सतह, चाहे इमारतें हों, सड़कें या फुटपाथ, शाम के समय ‘हीट वेव’ को रेडिएट करती हैं, जिससे रात का समय भी दिन जैसा ही गर्म होता है और अधिकतम एवं न्यूनतम तापमान के बीच का अंतर कम हो जाता है, जिसके परिणामस्वरूप शहरी क्षेत्र ‘अर्बन हीट लैंड’ में परिवर्तित हो जाते हैं।
  • कंक्रीटाइज़ेशन के दौरान मिट्टी में संग्रहीत कार्बन वायुमंडल में पहुँच जाता है, जो कि ऑक्सीकरण की प्रकिया के बाद कार्बन डाइऑक्साइड में परिवर्तित हो जाता है। कार्बन डाइऑक्साइड एक प्रमुख ग्रीनहाउस गैस है जो कि तापमान में वृद्धि का मुख्य कारण है।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस